बुधवार, 24 फ़रवरी 2021

जिसकी रज ने गोद खिलाया ,

 शादी के बाद ससुराल से एक बेटी की अपनी माँ को भावनात्मक पाती --

               

                 गीत                 

 जिसकी रज ने गोद खिलाया ,

 पैरों को चलना सिखलाया .

       जहाँ प्यार ही प्यार भरा था - वह आंगन बहुत याद आता है |    

     सुबह सुबह आँखें खुलते ही ,

     तेरा वह पावन सा चुम्बन |  

     फिर दोनों बांहों में भरकर.

     हलका हलका सा आलिंगन |

 बाबा की मीठी सी गोदी ,

 दादी का हंस हंस बतियाना |      

 पापा का कांधों पर लेकर .

 बाहर फूलों से बहलाना |

   कैसे सब घर  परिधि बनाकर ,

   मेरे लिए खेल रचता था |        

  और जरा सा गिर जाने पर ,

   चींटी के सौ शव गिनता था |

    माँ  वह बेलों , बूटे वाला ,  

                            पावन मंगल गोटे वाला ,

         जिसने मेरे आंसू पोंछे - वह दामन बहुत याद आता है |    

 कैसे  मधुरिम थे वो सब दिन ,         

 कितनी प्यारी सी सखियाँ थीं |          

 कैसे चिंता रहित विचरते , 

 हर पग पर बिखरी खुशियाँ थीं |

      कभी खेलते आँख मिचोनी ,

    गुड़ियों की हम शादी करते |         

     झूठ मूठ के व्यंजन रच कर ,

     सबसे आ खाने को कहते |

        तीजें आतीं , महदी रचती ,

        पेड़ों पर नव झूले पड़ते |                               

        सखियाँ मेघ मल्हारें गाती ,

         हम पेंगों से नभ को छूते |

                  माँ  वह मधुर बयारों वाला ,

                            शीतल मंद फुहारों वाला ,

              जिसमें जीवन के सब रंग थे - वो सावन बहुत याद आता है |                                                                                              .                              तितली जुगनू पाने को जब ,

               मैं शूलों में अभय विचरती |            

 तो अगाध ममता के कारण ,

 कभी न क्रोध जरा सा करतीं |

      कितना दिल था बड़ा तुम्हारा ,

      कैसे सबका  मन रखती थीं |           

      मैं थोड़ा भी सुस्त दिखूं तो , 

      सारी रात साथ जगती थीं |

 बीस बरस जो हर पल  पाया ,

               कैसे अब वह  प्यार भुलाऊँ |            

               किसकी गोदी में सर रख कर ,

               अपनी हर पीड़ा दुलराऊँ |

                    माँ वह तेरा भोला भाला ,

                                    सबकी चिंता करने वाला ,

              जिसमें ममता ही ममता थी ,  वो आनन बहुत याद आता है |

           स्वरचित  आलोक सिन्हा

 

53 टिप्‍पणियां:

  1. आलोक जी, आपने तो बचपन की मधुर स्मृतियां ताजा कर दी। बहुत सुंदर।

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद आभार ज्योति जी

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  3. कुमार गौरव जी बहुत बहुत धन्य्वा आभार

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  4. आपकी यह रचना बेटियों की आँखे गीली कर जाएंगी। आपको बहुत-बहुत बधाई।

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  5. बहुत बहुत धन्यवाद आभार वीरेंद्र जी

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  6. हम सभी के बचपन की याद को ताजा कर गई, कोमल भावों की कहानी कविता की जुबानी, बेहतरीन रचना, नमस्कार, बधाई हो आपको

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद आभार ज्योति जी ।

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  8. बहुत सुंदर भाव 🙏 भोलेबाबा की कृपादृष्टि आपपर सदा बनी रहे।🙏 महाशिवरात्रि पर्व की आपको परिवार सहित शुभकामनाएं

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आभार राजपुरोहित की शुभ कामनाओं के लिए ।

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  9. वाह , कितने सुंदर भाव । सच वो आँगन तो इतनी उम्र बीत जाने पर भी याद आता है म

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  10. बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुन्दर टिप्पणी के लिए

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  11. बहुत बहुत आभार धन्यवाद रचना सम्मान देने के लिए।

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  12. हृदय स्पर्शी रचना।
    ससुराल में आई विवाहिताके बेटी के रूप में एहसास और आत्मा से जुड़े सुंदर उद्गार

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  13. माननीय कुसुम जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार ।

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  14. नयनों को भिगो देने वाले इस गीत की प्रशंसा किन शब्दों में करूं आलोक जी ?

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    1. जितेन्द्र की बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुंदर टिप्पणी के लिए

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  15. ह्रदय स्पर्शी व प्रभावशाली, नमन सह आदरणीय ।

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  16. शांतनु जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार गीत अच्छा लगने के लिए

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  17. ससुराल में बेटी के माँ और मायके की यादों का उसको अन्तर्मन की कोमल भावों का बहुत ही हृदयस्पर्शी भावपूर्ण शब्दचित्रण ....
    लाजवाब सृजन।

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  18. सुधार जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुन्दर टिप्पणी के लिए ।

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  19. बचपन की यादें समेटे बेटी के मन के कोमल और हृदयस्पर्शी भावों का जीवंत चित्रण ।

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  20. मीना जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  21. पढ़ते हुए निराला सम प्रतीति होने लगी ।अति सुन्दर सृजन हेतु हार्दिक आभार ।

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  22. बहुत बहुत धन्यवाद आभार अमृता जी

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  23. बहुत बहुत धन्यवाद आभार भाई साहब

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  24. बहुत सुंदर यादों का खजाना जैसा मिल गया, भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।

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  25. बहुत बहुत धन्यवाद आभार जिज्ञासा जी

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  26. बहुत बहुत धन्यवाद आभार हिमकर जी

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  28. उमेश जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  29. सिन्हा साहब नमस्‍कार, आपने तो पूरा का पूरा बचपन इस कैनवास पर खींच द‍िया---अद्भुत

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  30. अलखनंदा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सार्थक टिप्पणी के लिए |

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  31. बेहतरीन कविता भाव से परिपूर्ण

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  32. विभारती जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  33. वाह!खूबसूरत भावों से सजी अनुपम रचना ।

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  34. शुभा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  35. माँ की ममता की मर्म स्पर्शी स्मृति!!!

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  36. बहुत बहुत धन्यवाद आभार भाई साहब

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  37. आपने तो सीधे मायके ही पहुंचा द‍िया आलोक जी, बहुत खूब ल‍िखा जैेसे कि‍ हम अपनी मां से ही बात कर रहे हों---वाह

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  38. अलकनंदा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  39. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना

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  40. अनीता जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार टिप्पणी के लिए |

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  41. ह्रदय स्पर्शी सुन्दर भावपूर्ण सृजन - - साधुवाद सह।

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  42. बहुत बहुत धन्यवाद आभार टिप्पणी के लिए

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  43. अतुलनीय पत्र मां के नाम - - भावपूर्ण ममतामयी सजल रचना - - अभिनंदन व साधुवाद आदरणीय।

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  44. शांतनु जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुन्दर टिप्पणी के लिए

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  45. हर लडकी के मन की बात कहता पत्र।
    बहुत आभार

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  46. पलाश जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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