रविवार, 22 अगस्त 2021

उपहार - ( कहानी )

 

      जन्म लेते ही कूड़े में फैंक दी गई लडकी की कहानी                      

            उपहार - ( कहानी ) आलोक सिन्हा                                                                      कई दिन बाद अभी अभी बारिश रुकी थी | पर आकाश में अब भी घने बादल घिरे थे और तेज ठंडी हवा चल रही थी | ऋचा बाहर का दृश्य देखने जैसे ही द्वार पर आई तो उसे एक भिखारी एक बच्ची के साथ सामने से आता दिखाई दिया | पास आते ही वह उससे हाथ जोड़ कर बोला – “ माई ! बारिश के कारण इस बच्ची को दो दिन से खाने को कुछ नहीं मिला है | इसे तेज बुखार है | क्या इसके लिए कुछ दूध या चाय मिलेगी ?’’                                                                                  ऋचा कुछ शिकायत भरे शब्दों में उससे बोली –“ जब इसे बुखार है तो इतनी ठंड में साथ लिए क्यों घूम रहे हो | अगर इसे घर छोड़ कर मुझसे चाय दूध लेने आते तो क्या तब मैं मना कर देती |’’                                                            “ माँ जी ! अगर घर छोड़ आता तो शायद यह मुझे मुर्दा भी नहीं मिलती | दो पैरों वाले भेड़िये  इसका मांस क्या हड्डियां भी चूस चूस कर खा जाते | माँ जी आस पास के कुछ लड़के बस इस इन्तजार में हैं कि यह उन्हें किसी दिन अकेली मिल जाये | इसे तो मैं कई बार उनके चंगुल से भी बचा चुका हूँ | ’’                                                                              फिर ऋचा ने कुछ चिंताकुल होकर उससे पूछा “ तो क्या यह अपने घर में बिलकुल अकेली ही है | इसकी माँ भाई बहिन कोई नहीं है |                        भिखारी बोला –   माँ जी इसका ही क्या अब तो मेरा भी इस दुनिया में कोई नहीं है | मैं आपको सच बताऊँ | आज से छ: साल पहले एक दिन जब मैं सुबह कुछ अँधेरे से में उठ कर सूखी लकड़ी बीनने जंगल की तरफ जा रहा था तो यह बड़े शिव मन्दिर के कूड़े घर के पास कपड़ों में लिपटी पड़ी थी | शायद कोई इसे जन्म लेते ही कुछ देर पहले वहां फैंक कर चला गया था | मैं इसे उठा कर अपने साथ ले आया | तब से अब तक इसे बड़े प्यार से पाल रहा था | पर अब इसे कैसे बुरी नजरों से बचाऊँ , मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा है |’’                                                                       ऋचा बोली –“ अच्छा तुम इसे लेकर अंदर यहाँ पौरी में बैठो | बाहर तो बहुत तेज ठंडी हवा है | मैं इसके लिए रसोई से कुछ गर्म दूध करके लाती हूँ |’’ पर कुछ देर बाद जब वह दूध और बिस्कुट लेकर वापस आई तो लडकी तो सिकुड़ी हुई सी दीवार से कमर लगाये बैठी थी , पर भिखारी वहां नहीं था | ऋचा ने तुरन्त उससे पूछा –“ तुम्हारे बाबा कहाँ गए |  लडकी बड़ी धीमी और पतली आवाज में बोली – “ जी यहीं कहीं गए होंगे | कह रहे थे  कि तू यहाँ बैठ | मैं अभी आता हूँ |’’                                                                   ऋचा फिर उसके पास ही बैठ गई और एक एक बिस्कुट देकर उसे दूध पिलाने लगी | तभी सलिल तीन बजे की ट्रेन पास करा कर स्टेशन से आ गए और ऋचा को इस तरह जमीन पर पौरी में बैठे हुए देख कर बोले – ये लडकी कौन है ?’’  जब उसने उसकी सारी कहानी उसे बताई तो वह बड़े सहज होकर उससे बोले कि जब इसे बुखार है तो इसे यहाँ ठंड में लिए क्यों बैठी हो | अन्दर ले जा कर हीटर क्यों नहीं लगा देती | मैं इसके लिए अलमारी से दवा लाकर देता हूँ |’’                                                                 जब काफी अँधेरा घिर जाने के बाद भी भिखारी लडकी को लेने नहीं आया तो ऋचा घबरा कर सलिल से बोली कि अब कल भी वह इसे लेने कोई नहीं आया तो फिर हम क्या करेंगे ?’’ सलिल ने कहा “ इसके बुखार व तेज ठंड को देख कर शायद बह लेने नहीं आया होगा | मानवता के नाते अभी इसको लेकर ज्यादा चिंता मत करो | उसके बाद जैसी परिस्थिति होगी कोई रास्ता निकाल लेंगे |’’                                                             सलिल हमीरपुर में स्टेशन मास्टर थे और शादी के ३५ साल बाद भी उनके कोई सन्तान नहीं थी | फिर भी ऋचा और उनमें इतना प्यार और सामंजस्य था कि कभी बच्चे का सन्दर्भ उनके मधुर सम्बन्धों के मध्य नहीं आता था | दोनों एक दूसरे के लिए इतने समर्पित थे कि जरा सी विलगता की बात तो दूर , अधिक देर दूसरे की चुप्पी भी उनसे सहन नहीं होती थी |                                                           जब चार दिन बाद सुबह सुबह ऋचा चाय लेकर लडकी के पास पहुँची तो उसे बिलकुल बुखार नहीं था | वह बहुत खुश सी होकर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली – “ आज तो तुम बिलकुल ठीक लग रही हो | अब जरा सा भी बुखार तुम्हें नहीं है |’’ ऋचा के मुहं से इतना सुनते ही लडकी को लगा कि शायद वह अब उससे घर से जाने को कहने वाली है तो वह एक साथ उसके दोनों पैर पकड कर  गिडगिडाते हुए बोली –   माँ जी मुझे आप घर से मत निकालना | बाबा को छोड़ कर मुझे किसी और को मत सौंपना | माँ जी फिर मैं एक दिन जिन्दा नहीं बच पाऊँगी | हमारे वहां के लड़के बहुत बुरे हैं | बहुत गंदी गंदी बात करते हैं | रतिया दीदी मुझसे दो साल बड़ी थीं | मेरे साथ रोज खेलती थीं | एक दिन जब वह घर में अकेली थी तो दो लड़के झूठ बोलकर कि उनके पापा उन्हें बाजार में बुला रहे हैं , कह कर अपने साथ ले गये | दो दिन बाद वह पुरानी टूटी इमारत में मरी हुई मिली | उनकी हालत इतनी खराब थी कि बाबा ने मुझे उन्हें देखने को भी नहीं जाने दिया | मैं आपके घर के सब काम कर दिया करूंगी | पर आप मुझे घर से मत  निकालना |’’                                                             एक छोटी सी लडकी का डर व घबराहट देख कर ऋचा अपनी ममता पर एक पल अंकुश नहीं रख सकी और एक साथ उसे जोर से वक्ष से चिपटा कर बोली – “ मैं तुझे कभी तेरे बाबा के अतिरिक्त किसी को नहीं सौपूंगी | जब तक तेरे बाबा तुझे लेने नहीं आते हैं तू मेरे साथ इसी घर में रहेगी | अब बस सब डर मन से निकाल कर तू जल्दी से पूरी तरह ठीक हो जा | मैं तेरे लिए नहा कर बदलने के लिए कपड़े ढूंढ कर लाती हूँ | पर हाँ तू अपना नाम तो बता | तेरा नाम क्या है ?’’                                                                             जी भूरी | मैं भूरे में मिली थी ना |’’                              क्या भूरी ? अरे ! यह भी कोई नाम होता है | तू बाबा को भूरे में मिली थी तो क्या हुआ | हीरे भी तो कोयले की खान में ही मिलते हैं | मैं तो तुझे वर्तिका कहूंगी | भगवान की आरती के दिए की पवित्र बाती | घर आंगन ही नही मन के भीतर की भी परत दर परत आलोकित करने वाली -- वर्तिका |’’                                                            नहा कर जब वह बाथ रूम से बाहर आई तो ऋचा ने रसोई में बैठे बैठे ही उससे तेज आवाज में कहा कि “ आज तुम बीमारी के बाद पहली बार नहाई हो ज़रा भगवान के सामने जाकर हाथ जोड़ लेना |’’                                  वर्तिका ने कभी भगवान् की पूजा नहीं की थी | इसलिए वह जैसे ही घर के मन्दिर के सामने पहुँची तो उसने हाथ जोड़ कर अपना प्रिय भजन गाना शुरू कर दिया | उसकी आवाज और गाने की धुन इतनी मधुर व आकर्षक थी कि सलिल और ऋचा से एक पल नहीं रुका गया और वह तुरन्त उसके पास पहुँच गए | भजन समाप्त होने के बाद सलिल उसे सीने से लगाते हुए बोले  – “ इतना अच्छा भजन तुमने किससे सीखा ?’’                                                                                           बाबू जी ! जब बाबा भीख मागते थे तो वह गाया करते थे | तब मैं भी उनके साथ गाती थी |’’                            तो क्या तुम्हें और भी भजन आते हैं ?’’                            जी , तीन चार और आते हैं |’’                                         बहुत बढिया | अच्छा देखो | अब तुम हमारे साथ रात दिन इस घर में रह रही हो | इसलिए अब ये तुम्हारा बाबू जी , माँ जी कहना कुछ ठीक नहीं लगता | तुम तो अब बेटी हो हमारी | हमें मम्मी पापा कहा करो |’’                                                                सलिल की बात सुन कर वर्तिका की एक साथ आँखें भर आईं और उसने जोर से सलिल को बाँहों में जकड़ लिया | बोली – आप बहुत अच्छे हैं |                                                                   दो सप्ताह बाद भी जब वर्तिका को लेने कोई नहीं आया तो फिर ऋचा ने उसका पालन पोषण अपने अनुसार करना प्रारम्भ कर दिया | पहले उसके लिए कुछ नये कपड़े खरीदे फिर उसे पास बिठलाकर पढाई लिखाई के महत्व को अच्छी तरह समझा कर उसे रोज कुछ देर पढने के लिए तैयार कर लिया | वर्तिका ने प्रारम्भ में तो पढाई में अधिक रूचि नहीं ली | पर ऋचा के प्यार और अपनेपन को देख कर वह कभी उसकी किसी बात को अनसुना या अनदेखा नहीं करती थी | जिससे फिर कुछ दिन बाद उसे पढने में आनन्द आने लगा | उसके बाद ऋचा भी उसके रुझान को देख कर उसे अधिक से अधिक समय देने लगी |                                                    दस बारह दिन तो यह कार्य क्रम बड़े सुचारू रूप से चला पर उसके बाद एक दिन जब रात को सब सोने के लिए अपने बिस्तरों पर लेटे तो दस बज रहे थे | ऋचा वर्तिका को लेटे लेटे पहाड़े याद करा रही थी और वह अपनी धुन में गा गा कर उसे दोहरा रही थी | जब यह क्रम चलते १५ – २० मिनट हो गए तो सलिल ने ऋचा से कहा – “ क्या पढाई के बहाने इस जरा सी लडकी की जान निकल जाने के बाद ही इसका पीछा छोडोगी | सुबह से देख रहा हूँ | सब्जी काट रही हो तो ये पास बैठ कर पढ़ रही है | खाना पका रही हो तो यह रसोई में सामने किताब लिए बैठी है | अब यह तो देखो कि साढे दस बजने जा रहे हैं | क्या कल सुबह होने की उम्मीद नहीं है |’’                                                                             सलिल की बात सुनकर ऋचा सन्न रह गई | ३५ साल के वैवाहिक जीवन में उसने कभी ऐसे रूखे शब्द उसके मुख से कभी नहीं सुने थे | वह कुछ देर तो बिलकुल चुप चाप वर्तिका को वक्ष ले लगाये गुमसुम लेटी रही | फिर जब वह सो गई तो वह सलिल के बिस्तर पर जाकर उसकी कमर दबाने लगी | अपने मन ही मन में बोली --– मुझे माफ़ कर दो | मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई है | मैं वर्तिका को पढ़ाने के उत्साह में अपने सारे दायित्व भूल गई थी | अब कल से ऐसा नहीं होगा |                                                                   कुछ देर बाद जब सलिल ने करवट बदली और उसे रोते हुए देखा तो वह तुरन्त उठ कर बैठ गया और उसके आंसू पौंछते हुए बोला – अरे तुम तो जरा सी बात का इतना बुरा मान गई |’’                                                                 " नहीं , मैं बुरा नहीं मानी हूँ |” ऋचा ने उसके कंधे पर सिर रखते हुए कहा  – “ अपनी गलती का प्रायश्चित कर रही हूँ | मैंने आपका दिल दुखाया है ना  | आपके हिस्से के प्यार में कटौती की है ना |’’                                                                                   तुम भी एक छोटी सी बात को जाने कहाँ से कहाँ ले जाती हो |’’        " मेरे माननीय सलिल जी मुझे आपके साथ रहते ३५ साल हो गए हैं | मुझे अच्छी तरह पता है कि आपको कब और कहाँ मेरे सहयोग की कितनी आवश्यकता है | कब किस काम में मेरी कितनी जरूरत है | मैं किस समय क्या करूं जिससे आपकी सारी मानसिक व शारीरिक थकन एक पल में घट कर शून्य हो जाये | मेरे इसी ज्ञान ने तो हम दोनों के शिशु विहीन जीवन में इतनी मिठास घोली है और कभी कोई अभाव या नीरसता अनुभव नहीं होने दी | अब मुझे अपनी भूल का पूरा अहसास हो गया है | अब कल से आपको कैसी भी किसी शिकायत का अवसर नहीं मिलेगा |’’                                       ऋचा का अनुमान बिलकुल सही निकला | उसने जैसे ही सलिल की ओर पहले की तरह पूरा ध्यान देना प्रारम्भ किया तो उसके दो दिन बाद ही वह पूरी तरह बदल गया और वर्तिका की पढाई में भी उसका हर तरह सहयोग करने लगा | कभी वर्तिका के पास बैठ कर उसे हिन्दी इंगलिश के अक्षर कैसे सुन्दर बनाये जाएँ सिखाने लगता , कभी अर्द्ध विराम पूर्ण विराम इंगित करते हुए कैसे गद्य पढना चाहिए यह समझाने लगता | वर्तिका का मस्तिष्क बहुत अच्छा था | वह कोई भी बात एक बार समझा देने के बाद उसे कभी नहीं भूलती थी |                                             जुलाई में जब विद्यालयों का नया सत्र प्रारम्भ हुआ तो ऋचा ने उससे किसी स्कूल में प्रवेश लेने के लिए बहुत कहा पर वह मन में बसे डर के कारण किसी कीमत पर तैयार नहीं हुई | पर जब २ साल बाद सलिल सेवा निवृत होने के बाद अपने पुश्तैनी मकान में रहने झांसी पहुंचा तो उसने वहां तुरन्त एक पास के स्कूल में खुशी खुशी प्रवेश ले लिया | वह पढने में तो तेज थी ही , अपने मधुर , शालीन व्यवहार व भजन गायन की अभूतपूर्व प्रतिभा के कारण कुछ ही दिन में पूरे विद्यालय की आँखों का तारा बन गई | अब ऋचा और सलिल अपने नाम से कम बल्कि वर्तिका के मम्मी पापा के रूप में अधिक पहचाने जाने लगे | जब हाई स्कूल के बाद उसकी  इन्टरमीडिएट में भी प्रथम श्रेणी आई तो सलिल ने उसे शाबाशी देते हुए पूछा – “ अब क्या करना चाहोगी – ऍम बी ए , इंजीनियरिंग या ऍम बी बी एस |’’                                                             वर्तिका ने बड़े संकोच के साथ कहा –“ मैं तो पापा जीवन भर आपकी मम्मी की सेवा करना चाहती हूँ | बस हमेशा आपके पास रहना चाहती हूँ | मुझे और कुछ नहीं चाहिये |’’                                         तो फिर ऐसा करते हैं | मैं तुम्हें झांसी मेडिकल में प्रवेश दिलाये देता हूँ | फिर तुम यहीं हमारे साथ भी रहोगी और ५ साल में अपना ऍम बी बी एस पूर्ण करके  डॉक्टर भी बन जाओगी | फिर चाहे सरकारी सर्विस ज्वाइन कर लेना या अपना खुद का क्लीनिक खोल लेना |’’                                               वर्तिका ने मेडिकल में प्रवेश ले लिया | पर जैसे ही उसने एम.बी बी एस पूर्ण करने के बाद एम डी में प्रवेश लिया कि उसकी घरेलू  परेशानियां प्रारम्भ हो गई | पहले तो फेफड़ों में पानी भर जाने के कारण एक महीने मम्मी अस्पताल में रही | फिर उसके बाद एक हलकी सी दुर्घटना में सलिल के पैर की हड्डी में बाल आ जाने के कारण वह बिस्तर पर पड़ गये | जिससे घर बाहर के सभी कामों का दायित्व उसके कंधों पर आ गया |                                                              इसी बीच जब एक दिन वह रात को गहरी नींद में सो रही थी तो अचानक किसी ने उसका जोर से दरवाजा खटखटाया | उसकी जब आँख खुली तो घड़ी में १२ बज रहे थे | उसकी कुछ समझ में नहीं आया कि इस समय आधी रात को इतनी ठंड में कौन हो सकता है | कुछ देर बाद जब फिर दरवाजे पर दस्तक हुई और उसने द्वार खोला तो सामने उससे एक वर्ष सीनियर ऍम एस पूर्ण करने के बाद  इंटर्नशिप करने वाला डा. प्रणय खड़ा था | वह उससे अंदर आने का इशारा करते हुए बोली –“ आप इतनी ठंड और बारिश में यहाँ कैसे |’’                                                       प्रणय पायदान से अपने गीले जूते पौंछते हुये बोला –“ एक मरीज की जिन्दगी बचाने के लिए या ये कहूं आपसे एक व्यक्ति की जिन्दगी मांगने के लिए |’’                                                 आप साफ़ साफ़ बताइए ना | मैं आपकी बात बिलकुल नहीं समझी |’’                फिर प्रणय ने बड़े संकोच के साथ कहा –  दरअसल आज अभी कुछ देर पहले हॉस्पिटल में एक कार दुर्घटना का केस आया है | तीन लोगों में एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति की हालत बहुत नाजुक है | उसका बहुत रक्त बह गया है और अभी भी रुक नहीं रहा है | उसे खून की तुरन्त आवश्यकता है पर उसका ओ नेगेटिव ग्रुप का खून होस्पिटल में नहीं है | जब मैंने और डॉक्टर तनेजा सर ने अपने वर्तमान स्टूडेंट्स के ब्लड ग्रुप की लिस्ट देखी तो केवल आप ही ऐसी हैं जिसका ब्लड ग्रुप ओ नेगेटिव है | तो अगर आप मेडिकल चल कर उसके लिए अपना कुछ रक्त दान कर दें तो उसकी जान बच  सकती है |’’                                                   वर्तिका पहले तो कुछ देर बिलकुल चुप रही फिर धीरे से बोली –“ मैं इतनी रात और बारिश में कैसे चल सकती हूँ | पापा तो मुझे सामान्य मौसम में भी शाम को ९ बजे बाद घर से बाहर कहीं नहीं जाने देते हैं | दरअसल वह आये दिन अखबार में उल्टी सीधी वारदातें पढ़ते रहते हैं ना कि कही कोई ओटो में जा रही लडकी का अपहरण करके ले गया , कही किसी सडक पर जा रही लडकी को दो लड़के बाइक पर बल पूर्वक उठाकर ले गये | तो वह बहुत डरे हुए हैं |’’                                                          प्रणय बोला – “ मैं आपको अपने साथ लेकर चल रहा हूँ | आपके जीवन व सम्मान की रक्षा की सारी जिम्मेदारी मेरी है | मेरा वादा है आपसे , मैं अपनी जान दे दूंगा पर आप पर जरा सी खरोंच नहीं आने दूंगा |’’                  प्रणय वास्तव में एक बहुत ही शांत और गम्भीर स्वाभाव का लड़का था | वर्तिका की उससे कोई विशेष जान पहचान या घनिष्टता तो नहीं थी | पर जब वह उसे अपनी सहेलियों के साथ बात करते देखती थी तो उसका व्यवहार और बात करने का तरीका उसे बहुत अच्छा लगता था | वह इतनी शालीनता व अपनेपन से सबसे बात करता था कि बिलकुल यह नहीं लगता था कि वह उनका सगा भाई नहीं है | उसने तुरन्त मम्मी पापा को सारी बात बताई और उनसे अनुमति लेकर प्रणय के साथ चल दी | जब दोनों घर से बाहर आकर गाडी की ओर चले तो प्रणय वर्तिका से बोला – आपको ड्राइविंग आती है ?’’                                                           “ हाँ , चला तो लेती हूँ | पर ज्यादा एक्सपर्ट नहीं हूँ | क्योंकि मम्मी पापा अधिक उम्र की वजह से कही आते जाते ही नहीं हैं | फिर मैं भी गाडी के बजाय स्कूटर से ही मेडिकल चली जाती हूँ | इसलिए ड्राइविंग किये कभी कभी बहुत दिन हो जाते हैं |’’                       “ तो आज फिर आप ही चलाइये |’’                                 “ नहीं , मैं नहीं चला पाऊँगी | पता नहीं जाने क्यों इस समय बहुत घबराहट सी हो रही है | ये पहली बार बिना मम्मी पापा के बिना इतनी रात को अकेले जाने के कारण है या रक्त देने की वजह से , वह मैं नहीं जानती | पर सच मन बिलकुल स्थिर नहीं है |’’                                             इसके बाद प्रणय ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और गाडी स्टार्ट करते हुए बोला - आप अपने को अकेला क्यों समझ रही हैं | क्या  मैं आपके साथ नहीं हूँ | ’’                                         वर्तिका ने कहा “ नहीं यह बात नहीं है | आपके साथ होने के कारण ही तो जा रही हूँ | कोई और होता तो शायद एक से लाख कहने पर भी घर से बाहर कदम नहीं रखती |’’                                                                        प्रणय हँस कर बोला –  यह मुझमें अटूट विश्वास जताने और इतना बड़ा सम्मान देने के बदले मैं आपको क्या दूं ? चलिए भगवान् को साक्षी मानकर आपको एक वचन दिया | जीवन में कभी भी आप मुझसे अपने लिए कुछ भी मांग लीजिये | ’’                                            तभी अचानक दोनों को सामने कुछ दूरी पर दो लोग बीच सडक पर उन्हें रुकने का इशारा करते दिखाई दिए | दोनों ने सिर पर  कपड़े बाँध रखे थे और हाथ में बंदूकें ले रखी थी | वर्तिका डर से काँप उठी और प्रणय से कुछ सट कर उसके कंधे पर सर रख कर कांपती आवाज में बोली – “ ये कौन लोग हो सकते हैं | आप ऐसा करिए | मुझे यही उतार दीजिये | मैं आस पास कहीं झाड़ियों में छिप जाऊंगी |’’                                  प्रणय ने हिम्मत बंधाते हुए कहा –  नहीं आप यहीं बैठिये | आप कहीं नहीं जायेंगी | आप मेरे साथ हैं और अगर कुछ बुरा होता है तो वह मेरे जीते जी आपके साथ कभी  नहीं होने दूंगा | ‘’ गाडी जैसे ही उनके पास पहुँची प्रणय ने उनके कहने पर उसे साइड से लगा दिया | हलकी हलकी बारिश अब भी हो रही थी | फिर उनमें से एक व्यक्ति छतरी लगाये प्रणय के पास आया और बड़े सहज रूप में बोला – “ सर  जरा डिग्गी खोलिए , गाडी की तलाशी लेनी है | वैसे आप जा कहाँ रहे हैं ?’’

  प्रणय ने अपना परिचय पत्र दिखाते हुए उससे कहा कि हम दोनों डॉक्टर हैं और एक इमरजेंसी केस अटेन्ड करने मेडिकल कॉलिज जा रहे हैं |’’ तो वह एक साथ बोला – “ सर ऐसे समय में आप अपने मेडिकल की ऐम्बोलेंस से ही निकला करो | आज कल बड़ी सख्त चैकिंग चल रही है | कप्तान साहब का सभी गाड़ियाँ चेक करने का आदेश है | ऐम्बोलेंस होगी तो फिर आपको कोई नहीं रोकेगा |’’                                                इसके बाद जब फिर दोनों आगे चले तो प्रणय बोला –“ मेरा निर्णय ठीक रहा ना |’’                                                                      वर्तिका ने कहा –“ आप वास्तव में बहुत हिम्मत वाले हैं | मैं तो सच बहुत अधिक डर गई थी | क्या आप अपनी जैसी ये हिम्मत थोड़ी सी मुझे नहीं दे सकते ? ’’                                                                 प्रणय हँसते हुये बोला –“  आप थोड़ी सी की बात कह रही हैं , आप सारी की सारी ही ले लीजिये | पर उसके बाद जैसे मैं आपको संरक्षण देने की बात कह रहा हूँ फिर वह संरक्षण आपको मुझे देना पड़ेगा | ’’ इस पर वर्तिका जोर से ठहाका लगाकर हंसते हुए बोली –“ तब तो फिर रहने दीजिये | ऐसे ही ठीक है |’’                                                    अस्पताल आ गया था | दोनों गाडी से उतर कर आपरेशन रूम में चले गए | रक्त देने के बाद वर्तिका अधिक रात होने के कारण घर नहीं आई और अस्पताल में ही रुक गई | सुबह जब वह सोकर उठी तो एक नर्स उसके पास बैठी हुई थी और प्रणय कमरे के बाहर किसी से बात कर रहा था | नर्स ने जैसे ही उसे बिस्तर से उठने का प्रयास करते देखा वह तुरन्त प्रणय से बोली – “ डॉक्टर साहब ! मेम जग गई हैं |’’ प्रणय तुरन्त उसके पास आ गया और उसके माथे पर हाथ रखकर ज्वर देखने के बाद उसके रक्त चाप मापक यंत्र की बाजू में पट्टी बांधते हुए बोला –“ आज आपने बहुत बड़ा काम किया है | एक ९९ प्रतिशत मृत्यु के मुंह में जाने वाले मरीज की जान बचाई है | सच अगर आप उसे  ब्लड नहीं देतीं तो उसे कोई नहीं बचा सकता था | पर उसे बचाने में मुझसे एक बहुत बड़ी भूल हो गई | जब आपका निर्धारित ब्लड लेने के बाद मुझे मरीज को कुछ और ब्लड देने की आवश्यकता लगी और उसे लेने मैं जब आपके पास आया तो आप गहरी नींद में सो रही थी | नीडिल आपकी नस में लगी ही हुई थी तो मैंने फिर डा तनेजा सर से बिना पूछे ही आपका एक बोतल ब्लड और ले लिया | जिससे बस कुछ देर बाद आपका रक्त चाप इतना गिर गया कि फिर मुझे आपको तुरन्त ट्रिप लगानी पडी | अब मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि अपनी इस गलती के लिए आपसे किस तरह माफी मांगूं | अपने दोनों कान पकड़ कर साँरी कहू या सजा की बात आप पर छोड़ दूं कि आप जो भी दंड देना चाहें मुझे दे दें |’’                                                     इस समय भी वर्तिका का रक्त चाप सामान्य से काफी कम था | वह कुछ नहीं बोली और चुपचाप लेटी रही | फिर प्रणय उसे थर्मस से चाय देने के बाद उसका मोबाइल से वीडिओ बनाते हुए बोला – “ आपने मेरी बात का कोई उत्तर नहीं दिया | तो वह कुछ मुस्कुराते हुए बोली –  इस समय तो आप बस मुझे ऐम्बोलेंस से घर छुडवा दीजिये | आपकी गलती पर निर्णय तो बाद में सम्पूर्ण विवरण का सूक्ष्मता से अध्ययन  करने के बाद किया जाएगा | क्योंकि प्रकरण एक लडकी की जिन्दगी और मौत से जुडा है | आपकी लापरवाही से उसकी जान तक जा सकती थी , वह लकवा ग्रस्त हो सकती थी ,  कौमा में जाने तक का दुःख भोग सकती थी |’’                          वर्तिका बात अवश्य कर रही थी पर अभी सामान्य बिलकुल नहीं थी | उसे आवश्यकता से अधिक कमजोरी महसूस हो रही थी | गाडी में बैठने के बाद प्रणय ने उससे कई बार उसकी तबियत के बारे में पूछा पर उसने उसका भी कोई उत्तर उसे नहीं दिया और निढाल सी ही सीट पर आँख बंद किये बैठी रही | घर पहुँच कर भी वह उससे अधिक नहीं बोली और एक दो बार बैठने को कह कर बिस्तर पर लेट गई |’’                                      रात भर जागने के कारण प्रणय भी कुछ सामान्य स्थिति में नहीं था | बस वह जैसे ही घर पहुंचा नहाकर खाना खाने के बाद बिस्तर पर लेट गया | पर कोशिश करके भी बहुत देर तक उसे नींद नहीं आई | बस बार बार यही सोचने लगता कि अगर वर्तिका को कुछ हो गया तो वह किसी को क्या उत्तर देगा | उसने ये कदम क्यों उठाया |  जब हम इधर से अस्पताल गए थे तो कैसे हंसते मजाक करते गए थे | अब लौटते समय तो वह एक शब्द बोलने की स्थिति नहीं थी |                                                  कुछ देर बाद जब उसे नींद आई तो सपनों में भी उसे बिस्तर पर पडी वर्तिका ही दिखाई दी | वह उसके पास कुर्सी पर बैठा उसकी नब्ज देख रहा है और माँ उसके बालों में उंगली फिराते हुए उससे कह रही हैं बेटा यहाँ ऐसे बैठे रहने से कुछ नहीं होगा | जा बराबर वाले मन्दिर में भगवान् के सामने माथा टेककर उनसे प्रार्थना कर | कहते हैं भगवान सच पर चलने वाले बच्चों की विनती को कभी नहीं ठुकराते  | पर जब वह पूजा करके मन्दिर से वापस आया तो उसे घर के बाहर से ही  स्त्रियों के जोर जोर से रोने की आवाज सुनाई पडी | जिससे उसका रोम रोम काँप उठा और एक साथ नींद खुल गयी |                                                        इसके बाद वह उदास सा बिस्तर पर लेटे लेटे ही मोबाइल पर वर्तिका का सुबह वाला अस्पताल का वीडीओ देखने लगा | फिर बस जैसे ही उसने उसे यह कहते सुना कि ---“ आपकी गलती पर निर्णय तो बाद में सम्पूर्ण विवरण का सूक्ष्मता से अध्ययन करने के बाद किया जाएगा | क्योंकि प्रकरण एक लडकी की जिन्दगी और मौत से जुडा है | आपकी लापरवाही से उसकी जान तक जा सकती थी | वह लकवा ग्रस्त हो सकती थी , कौमा में जाने तक का दुःख भोग सकती थी |’’                              वह एक साथ भावुक हो गया और उसकी आँखों में आंसू भर आये | तभी अचानक उसके पापा कमरे में आ गए और उसे रोता हुआ देख कर उससे बोले –“ क्या बात है ? इतने परेशान क्यों हो ?’’                             प्रणय ने उनसे कुछ नहीं छिपाया और हर छोटी बड़ी बात उन्हें विस्तार से बता दी | यहाँ तक कि गाडी में निरंतर उसके निढाल पड़े रहने , उसकी किसी बात का उत्तर  न देने की बात भी उसने उनसे नहीं छिपाई |                                                                     कर्नल पृथुल तनेजा उसकी कमर थपथपाते हुए बोले –“ शाम को मैं और तुम्हारी मम्मी उनके घर जाते हैं | चिंता मत करो | सब ठीक हो जाएगा | तुमसे लापरवाही ही तो हुई है | उससे कुछ अनिष्ट तो नहीं हुआ है |’’                                                           जब शाम को वह दोनों वर्तिका के घर पहुंचे तो वह तभी तभी नहा कर मेज पर चाय नाश्ता लगा रही थी | कॉल बैल बजने के बाद उसने जैसे ही दरवाजा खोला तो मम्मी बोली   हम प्रणय के मम्मी पापा है |’’ इतना सुनते ही वर्तिका एक साथ आत्म विभोर सी हो गई और उन्हें बाँहों में भरकर गले मिलते हुए बोली –“ आप ऐसे बिलकुल अचानक | मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि आपका कैसे वैलकम करूं | प्रणय क्यों नहीं आये आपके साथ |’’                                                                  “ बेटी ‘’ कर्नल पृथुल  बोले –“ उसकी वजह से ही तो हमें अचानक यहाँ आना पड़ा | वह सुबह से तुम्हारी तबियत को लेकर बहुत परेशान है और बस जब भी मोबाइल में तुम्हारा वी डी ओ देखता है तो रोने  लगता है | कह रहा है कि मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई | पापा अगर वर्तिका को जरा सा भी कुछ हो गया तो मैं कभी अपने को माफ़ नहीं कर पाऊंगा | वह  मुझ पर भरोसा होने के कारण ही तो  मेरे साथ गई थी और मैंने उसकी ये हालत कर दी |’’                                                     वर्तिका ने कहा –“ पर अंकल प्रणय जी ने जो कुछ किया वह कोई बुरी भावना से थोड़े ही किया था | किसी की जान बचाने के लिए किया था | उसमें मेरा थोड़ी सी देर को कुछ रक्त चाप कम हो गया तो उससे क्या हुआ | मेरे जरा से कष्ट से कम से कम एक मरीज की जान तो बच गई | मैं अभी फोन पर उनसे बात करती हूँ |’’                           घंटी जाने के बाद प्रणय के हेलो कहते ही वह उससे बोली -“  अंकल आन्टी के साथ आप क्यों नहीं आये | मेरी तबियत को लेकर अगर इतने ही परेशान थे  तो  वह मुझे देखने के बाद ही तो दूर  होती | पर सर अब आप मेरी सारी चिंता मन से निकाल दीजिये | मैं पहले से काफी ठीक हूँ और यदि भगवान् ने चाहा तो सुबह तक पूरी तरह सामान्य हो जाऊंगी |’’                                                                             पृथुल केवल वर्तिका ही नहीं पूरे परिवार से मिलकर इतने खुश हुए कि उन्होंने अगले ही दिन शाम को सबको चाय पर आने के लिए निमंत्रित कर लिया और घर पहुँचते ही प्रणय से बोले –“ बेटा तुम वर्तिका के सुस्त होने व उसके न बोलने के कारण इतने परेशान हो रहे थे | पर वह तो बिलकुल ही अलग तरह की लडकी है | इतनी कमजोरी महसूस होने पर भी कितनी मीठी बोली में और अपनेपन से बात कर रही थी | यह लगता ही नहीं था कि हम उससे पहली बार मिले हैं | सच इस समय मैं यहाँ आ जरूर  गया हूँ पर वहां सबकी मीठी बातें , आदर पूर्ण व्यवहार एक पल को आँखों से ओझल नहीं हो रहा है | अगर पहली बार न गया होता तो एक आध घंटे अभी और उनके घर बैठ कर आता |’’                                                                                                    पापा ‘’प्रणय बोला –“ मैं उसकी इसी सरलता और सीधेपन के कारण ही तो इतना परेशान हो रहा था | वह एक बहुत सच्चे और कोमल ह्रदय की इंसान है | कल मैंने वैसे ही कार में उसके मम्मी पापा की तबियत के बारे में पूछ लिया तो एक साथ उसकी आँखों में आंसू भर आये | बोली जब वह दोनों बीमार पड़े थे तो वह रात रात भर नहीं सोती थी | अगर उन्हें कुछ हो जाता तो वह एक दिन नहीं जी पाती | उन्होंने जो प्यार और अपनापन उसे दिया है , वह उसे कभी नहीं भुला सकती | उसने उनकी सेवा करने के लिए ही डॉक्टर बनने का निश्चय किया है |’’          पृथुल  – “ तुम उससे शादी करोगे |’’                                   प्रणय – “ यह बात तो आप पहले वर्तिका और उसके पापा से पूछिये | शायद अभी उन्होंने इस विषय में कुछ नहीं सोचा है |’’                    पृथुल  –“ मैं फौरन शादी की बात थोड़े ही कर रहा हूँ | वह जब होगी , तब हो जायेगी | पर हम सम्बन्ध तो तय कर ही सकते है | चलो कल जब ये सब आयेंगे तब बात करके देखता हूँ |’’                                               इसके बाद जब वर्तिका अगले दिन सुबह अस्पताल के जनरल वार्ड में पीड़ित परिवार को देखने पहुँची तो बैड पर लेटे वृद्ध व्यक्ति ( प्रतीक ) ने उसे बताया कि वह हमीरपुर के रहने वाले हैं और वहां उनकी कोठी कपड़ा नाम से एक कपड़े की दुकान हैं | हमीरपुर का नाम सुनकर वह एक साथ चौंक पडी और उसने घर आते ही अपने पापा को उनके बारे में सब कुछ बता दिया | सलिल उन्हें अच्छी तरह जानते थे और सारा कपड़ा उन्हीं की दुकान से खरीदा करते थे | इतना ही नहीं दोनों के बीच केवल जान पहचान वाले नहीं अपितु एक अच्छे मित्र जैसे सम्बन्ध थे |                  सलिल ने जैसे ही प्रतीक का नाम सुना तो वह एक साथ उससे मिलने के लिए आतुर हो उठे और वर्तिका से बोले –“ तुम्हारे अस्पताल में क्या मरीजों से मिलने का कोई निश्चित समय है या कभी भी कोई मिलने  जा सकता है |’’                                                                     वर्तिका ने हँस कर कहा –“ आप क्यों परेशान हो रहे हैं | मैं अभी शाम को आपको उनके पास ले चलूगी | मुझे भी हॉस्पिटल में अपने दो तीन अधूरे काम पूरे करने हैं | पर पापा फिर यहाँ मम्मी ही अकेली क्या करेंगी | उन्हें भी साथ न ले चलें | प्रतीक अंकल भी आप दोनों को साथ देख कर खुश हो जायेंगे |’’                                                        सलिल जब अस्पताल पहुंचे तो प्रतीक बैड पर तकिया ऊंचा करके बैठे अखबार पढ़ रहे थे | अचानक सलिल को सामने देख कर उनकी आँखें भर आईं और दोनों बाहें फैला कर बोले – “ अब मेरा भाई आ गया | अब मेरे सारे बुरे ग्रह शांत हो जायेंगे | बिना गंगा नहाये समझो इसके दर्शन से मेरे सारे पाप धुल गए |’’                                              सलिल गले मिलते हुए हंसकर बोले  – “ क्या वाकई कोई बड़ा पाप हो गया जो भगवान ने तुम्हें यहाँ अस्पताल भेज दिया |’’                          प्रतीक एक साथ कुछ गम्भीर हो गए और सलिल का हाथ अपने हाथ में लेकर बोले –“ सच कहूं | वैसे तो पाप धुलने वाली बात मैंने मजाक में कही थी | पर कभी कभी सच अपने आप मुंह से निकल जाता है | भाई साहब , यह तो आपको पता ही है कि मेरे लगातार चार बेटियाँ हुईं और मैं उन्हें जरा सा भी प्यार नहीं करता था | वह मुझे बोझ ही नहीं दुश्मन जैसी लगती थीं | पर आज मैं अगर जिन्दा हूँ , तो  अपनी इन बेटियों की वजह से ही हूँ | आपके हमीरपुर से चले जाने के बाद पता नहीं जाने कैसे एक दिन दुकान में आग लग गई | कुछ नहीं बचा | सब राख हो गया | मैं एक एक पैसे को तरसने लगा | दुकान फिर से शुरू करने की बात तो दूर उसकी मरम्मत कराने की भी मुझमें सामर्थ्य नहीं थी | बस ले दे कर ग्राहकों पर उधारी के पैसों से घर का काम चल रहा था | जब यह बात बेटियों को पता चली तो सब एक साथ भागी चली आईं और सबने एक एक लाख रुपये देकर मेरा दुबारा काम शुरू करवाया |’’                                                    प्रतीक अपने बुरे दिन याद करके बुरी तरह भावुक हो गए और सलिल के कंधे पर सिर रखकर सिसकियों से रोने लगे | कुछ देर चुप रहने के बाद फिर रुमाल से अपने आंसू पौंछते हुये भरे गले से बोले –“ भाई साहब लडकियों से नफरत होने के कारण मुझसे एक और ऐसा पाप हुआ जिसे शायद मुझे भगवान् सात जनमों तक भी माफ़ नहीं करेंगे | शादी के बाद जैसा कि आप ही नहीं सब जानते हैं कि मेरे लगातार चार  बेटियाँ हुई  और फिर उसके चार साल बाद बेटा हुआ | पर यह पूरा सच नहीं है | मेरे पांचवी भी बेटी ही हुई थी और बेटा मेरी छटी सन्तान है | हुआ यह कि जब पांचवें  बच्चे के आने के नक्षत्र बने तो पत्नी को देख कर सब यही कहते थे कि इस बार तो निश्चित बेटा ही होगा | अंत तक कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि एक प्रतिशत भी इस बार लडकी हो सकती है | पर जब आधी रात के बाद लडकी का जन्म हुआ तो मैं सहन नहीं कर सका और उसे गुस्से में उसकी माँ के पास से चुपचाप उठाकर महादेव मन्दिर के कूड़े घर के पास फैंक आया | पर अब सोचता हूँ कि काश यदि मैंने ऐसा न किया होता तो आज मेरे हर सुख दुःख में साथ देने वाली मेरी पांच बेटियाँ होती |’’                     तभी अपने काम समाप्त कर वर्तिका वहां आ गई | लोहे के स्टूल पर बैठीं मम्मी के दोनों कंधों पर हाथ रखते हुए बोली –“ आपकी बातें समाप्त हो गई हों तो अब घर चलें | पृथुल अंकल के घर भी तो जाना है |’’  

 प्रतीक के मुंह से पांचवीं बेटी का प्रकरण सुनकर सलिल और ऋचा दोनों के ही मन  बुरी तरह अस्थिर हो गये थे | पर दोनों कुछ निश्चय नहीं कर पा रहे थे कि वो प्रतीक को यह बताएं कि नहीं कि अब यहाँ भी अपना खून दे कर उसकी जान बचाने वाली कोई और नहीं उसकी अपनी बेटी ही है |                                                                         अस्पताल से बाहर आकर जब सब घर जाने के लिए गाडी में बैठने लगे तो सलिल वर्तिका के मन को टटोलने के विचार से उससे बोले – बेटी ! अगर तुम्हें अपने असली माता पिता के बारे में जानने की उत्सुकता हो तो मैं प्रतीक से बात करके देखूं | क्योंकि वह उसी क्षेत्र का रहने वाला है , जहां तुम अपने बाबा को कूड़े में पडी मिली थीं |

  पापा !” वर्तिका गाडी स्टार्ट करते हुए बोली – मैं उन माता पिता के विषय में जानकर क्या करूंगी जिन्होंने मुझे जन्म लेते ही कुत्तों को नोच नोच कर खाने के लिए कूड़े में फैंक दिया | हमारे देश में तो मृत्यु दण्ड के क्रूर से क्रूर अपराधी को भी न्यायालय यातनाएं देने की अनुमति नहीं देता | पर मेरे विषय में तो यह तक नहीं सोचा गया कि मैं कितनी छोटी हूँ | जब तीन तीन चार चार कुत्ते अपने तेज बड़े डांतों से मुझे नौचेंगे तो मैं कितना चीखूंगी , कैसे छटपटाऊँगी तडपूंगी | जब कोई कुत्ता मेरी टांग खीचेगा , कोई हाथ ,कोई मेरा पेट जबड़े में भरेगा और कोई मेरा मुह - तो मुझ पर क्या बीतेगी | अगर बाबा उजाला होने से पहले मुझे न देखते और अपनी कुटिया पर मुझे नहीं लाते तो यही सब तो मेरे साथ होता |

पापा मुझे जीवन देने वाले तो मेरे बाबा हैं और मेरा पालन करने वाले मम्मी पापा आप दोनों हैं | मैं किसी और को कुछ नहीं जानती और न जानना चाहती हूँ |

      पापा आपको पता है जब बाबा मुझे कुटिया पर लेकर आये तो मैं इतनी भूखी थी कि बस जोर जोर से रोये ही जा रही थी | तो बाबा ने पड़ोस से दूध लाकर मुझे चम्मच से पिलाने की बहुत कोशिश की पर मुझसे पिया ही नहीं जा रहा था | फिर वह मुझे लेकर दसियों झुग्गियों में घूमे कि कहीं कोई छोटे बच्चे वाली दूध पिलाने वाली माँ मिल जाये | सौभाग्य से कुछ देर बाद उन्हें चंपा चाची मिल गईं | उनके पास उस समय एक साल का छोटा बेटा था | बस फिर उन्होंने मुझे जब तब न जाने कितनी बार दूध पिलाया | जब बाबा को कहीं कोई नहीं मिलता था तो वह मुझे उन्हीं के पास ले जाते थे | फिर कुछ दिन बाद बुधिया दादी ने मुझे रुई की बत्ती से दूध पीना सिखाया | पर बाबा कह रहे थे कि उससे मेरा पेट नहीं भरता था |

       मम्मी अब मैं जब किसी महिला को अपने नवजात बच्चे को पालते हुए देखती हूँ तो मुझे एक साथ बाबा की याद आ जाती है | सोचती हूँ कि न जाने कैसे उन्होंने मेरी देख भाल की होगी | सच छोटे बच्चे का पालना  कितना कठिन और जिम्मेदारी भरा होता है | बेचारे बाबा न जाने कैसे मेरे रात भर के गंदे कपड़े , मेरा बिस्तर धोते होंगे ,न जाने कैसे मुझे रोज नहलाते होंगे |

कुछ देर चुप रहने के बाद वर्तिका फिर धीरे से ऋचा से बोली – मम्मी एक बात पूछूं आपसे | मेरे जन्म देने वाले माता पिता का पता लगाने के बहाने कहीं आपका मन मुझे घर से निकालने का तो नहीं है |                                                                      अरे बेटी – ऋचा बोली – अब अठारह साल बाद मैं तुझे घर से निकालूंगी | तू तो मुझे बाबा का दिया सबसे कीमती उपहार है | मेरी जिन्दगी है | दोनों आँखों की रोशनी है | तुझे क्या पता मैं जब कभी सोचती हूँ कि शादी के बाद जब तू ससुराल चली जायेगी तो तेरे बिना मैं कैसे हूँगी | सच कह रही हूँ जब तू घर में नहीं दिखेगी तो मैं तो दो दिन भी नहीं जी पाऊँगी |

वर्तिका बोली- मम्मी मैं शादी वादी नहीं करूंगी | मैं तो हमेशा आपके पास रहूँगी | जीवन भर बस आपकी पापा की व झुग्गी झौपडी में रहने वाले जैसे गरीबों की सेवा करूंगी |

       मम्मी बोली – देख मैंने आज तक तुझे न किसी बात पर टोका है न किसी बात के लिए जोर डाला है | आज भी कुछ नहीं कहूंगी | पर तुझे एक वचन मुझे अवश्य देना पडेगा कि अगर तुझे कभी कोई लड़का ऐसा लगे कि वह तुझे जीवन भर सहारा दे सकता है , तू उसके साथ सुखी रह सकती है तो मुझे बताने में जरा सा संकोच नहीं करेगी | 

वर्तिका बोली – आपकी यह बात पूरे मन से आत्मा से मानी | पर मम्मी मैं ये वचन आपको आपके सिर पर हाथ रख कर दूं , या पैर छू कर | वर्तिका की बात सुनकर सब एक साथ जोर से हंस पड़े |

गाडी अब एक छोटे से बाजार से गुजर रही थी | वर्तिका उसे कुछ धीमी कर पीछे की ओर मुड़ कर बच्चो की तरह बोली – पापा ! बड़ी भूख लग रही हैं | क्या कुछ खाने के लिए यहाँ से ले लूं | वैसे आगे चल कर यहाँ एक बीकानेर वालों की चाट की भी बहुत  अच्छी दुकान है | मेरा विचार है कि आप भी कुछ खा लीजिये | वर्ना फिर आपका भी रक्त चाप बिगड़ जाएगा |

सलिल बोले – पहले जाकर यह देखो कि वहां क्या क्या ताजा बना है | हम दोनों के लायक कुछ है भी कि नहीं |

वर्तिका जब दुकान में अंदर पहुँची तो सामने प्रणय को खड़ा देख कर अचम्भित रह गई | उसने हाथ में वस्तुओं की एक लम्बी सूची ले रखी थी और उन्हें एक एक कर कर्मचारी से पैक करा रहा था | वह उसके हाथ से सूची लेकर बोली – आप इतना सारा सामान किसके लिए खरीद रहे हैं | क्या घर पर कुछ और लोग भी आने वाले हैं |

नहीं और तो कोई नहीं आ रहा | पर पापा का कहना हैं कि आज उनकी बहुत प्यारी बेटी पहली बार घर आ रही है तो  उसके खाने पीने में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए |

सच , अंकल भी कमाल करते हैं | हम कोई मेहमान थोड़े ही हैं | पर अब यह तो बताइए कि आप इतना सारा सामान बाइक से घर ले कैसे जायेंगे | आप ऐसा करिये , मेरी गाडी में रख दीजिये | मैं बस कपडे बदल कर पांच मिनट में ही तो आपके घर पहुँच रही हूँ |

कपडे बदल कर |प्रणय ने आश्चर्य से पूछा – कपडे बदल कर क्या करोगी | एक डॉक्टर के लिए इससे अच्छे और कीमती कपडे क्या कोई दूसरे हो सकते हैं | ये एप्रन पहनने के लिए पता है कितनी बड़ी प्रतियोगिता से गुजरना होता है | पांच साल कितनी कड़ी मेहनत करनी पड़ती है |

अच्छा ठीक है | वर्तिका मुस्कुराते हुए बोली –  तो मैं नहीं बदलती | पर अब जल्दी से आप सामान तो गाडी में रखवाईये | सच बहुत तेज भूख लग रही है |

          जब सब घर पहुंचे तो कर्नल साहब बड़ी बेचैनी से सब का इन्तजार कर रहे थे | उन्होंने तुरन्त जल्दी से मेज पर नाश्ता लगवाया और फिर कुछ  वैसे ही औपचारिक बात करने के बाद सलिल से बोले –   आपने वर्तिका बेटी की पढाई पूरी हो जाने के बाद इसके बारे में क्या सोचा है | इसे सरकारी नौकरी में भेजेंगे या इसकी शादी करेंगे ?

सलिल – अभी तो इन बांतों पर कुछ ख़ास सोचा नहीं है | वैसे शादी के लिए तो ये बिलकुल मना कर रही है | कहती है कि मैं कभी शादी नहीं करूंगी | मैं तो बस जीवन भर आपकी व गरीबों की सेवा करूंगी |

 कर्नल साहब फिर वर्तिका से बोले –  बेटी तुम्हें अपने मम्मी पापा के प्यार और सुख भरे जीवन को देख कर अपनी शादी के लिए कभी जरा सी प्रेरणा नहीं मिली | तुम्हारा कभी यह मन नहीं हुआ कि तुम्हारा भी ऐसा ही मिठास भरा आगे का जीवन हो |

          वर्तिका बोली – अंकल ! मन में जो हो क्या वह सब मिल जाता है | मुझे तो कम से कम अपने बारे में ऐसा बिलकुल नहीं लगता | मेरी तो जिन्दगी की शुरुआत ही बड़े अजीब ढंग से हुई है | पर पापा मम्मी ने मुझे जो प्यार दिया अब मुझे उसे पाकर कुछ पाने की इच्छा नहीं है | मम्मी कहती हैं कि लड़कियों के लिए शादी बहुत जरूरी है | पर अंकल जब मैं अपने साथ की कुछ विवाहित लड़कियों से उनके दैनिक जीवन की दुःख भरी अजीब अजीब बातें सुनती हूँ तो शादी के लिए हाँ करने की बिलकुल हिम्मत नहीं होती | अंकल ! लडकियां भी तो इंसान ही होती हैं | क्या उनसे गलतियाँ नहीं हो सकती |

    एक सहेली कह रही थी कि एक दिन उससे दाल में कुछ नमक ज्यादा डल गया तो सारे घर में हंगामा हो गया | उसकी माँ तक को उसमें घसीट लिया गया – इसकी माँ ने इसे नमक तक डालना नहीं सिखाया | कैसी परवरिश की है इसकी | एक बता रही थी कि एक दिन उससे बाथ रूम की खूंटी पर टंगे पति देव के अंडर विअर बनियान धुलने से रह गए तो दोनों में खूब झगडा हुआ और दोनों तीन चार दिन एक दूसरे से बिलकुल नहीं बोले | अंकल मुझे अगर ऐसा घर मिल गया तो फिर मैं  तो दो दिन में ही मर जाऊंगी | मैंने तो अब तक अपनी मम्मी का मन्दिर जैसा घर और इनका प्यार देखा है | अंकल आप विशवास नहीं करेंगे  मम्मी ने मुझे बचपन से ले कर आज तक पिटाई की बात तो दूर कभी तेज आवाज में डाट तक नहीं लगाईं |  मैं आपको एक दिन की बात बताऊँ | एक बार जब मैं कॉलिज से घर आई तो टी टी ई नूर मोहम्मद अंकल कुछ देर पहले ही चाय पी कर गए थे और मम्मी आंगन में चारपाई पर धूप में लेटी अखबार पढ़ रही थीं | मैं जब धीरे धीरे दबे पाँव इन्हें विस्मित करने की दृष्टि से इनके पास पहुँची तो मेरा पैर चारपाई के नीचे रखे खाली चाय के प्याले से लग गया और वह एक पल में टूट कर खण्डित हो गया | मैंने जब उसे जल्दी से उठाया तो नए सेट का प्याला देख कर मैं सन्न रह गई | पर मम्मी मुझ पर बिलकुल नाराज नहीं हुई | बस धीरे से बोली – कुछ नीचे भी देख कर चला करो | यह तो प्याले में ठोकर लगी थी | सोचो अगर उसकी जगह मसाले कूटने का लोहे का इमामदस्ता होता तो क्या होता | कई दिन के लिये या तो बिस्तर पर पड़ जाती या हफ्ते भर लंगडा लंगडा कर चलतीं |   

  अंकल मैं कुछ नहीं बोली | बस चुपचाप अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर आँखें बंद कर के लेट गई | बस बार बार यही सोच कर रोना आता रहा कि मेरी इतनी अच्छी मम्मी हैं  कि इतना बड़ा नुक्सान हो जाने पर भी उन्होंने मुझसे कुछ नहीं कहा | उन्हें अपने टी सेट का जरा सा दुःख नहीं है बल्कि मेरे पैर की अधिक  चिंता है | पर मैं न जाने क्यों आये दिन उनका दिल दुखा देती हूँ | सेट अभी दो तीन दिन पहले ही तो आया था और मैंने बर्बाद कर दिया | जब मम्मी ने काफी देर तक मुझे कमरे से बाहर आते नहीं देखा तो वह मेरे पास ही आ गई और मुझे रोता हुआ देख कर बोलीं – अरे तुम मेरी जरा सी बात का इतना बुरा मान गई कि तब से बराबर रोये जा रही हो | मैंने तुमसे कुछ कहा थोड़े ही था बस थोडा सा समझाया ही तो था |

      मैंने कहा मम्मी मैं इसीलिए तो रो रही हूँ कि आपने मुझे डाटा क्यों नहीं , इतना नुक्सान हो जाने पर भी मुझे कोई सजा क्यों नहीं दी ?  इस पर मम्मी बड़े प्यार से बोलीं – क्या डाटने या बुरा भला कहने से प्याला जुड़ जाता | बेटी , तुझे अपनी भूल महसूस हो गई , बड़ों के डाटने या प्यार से समझाने का यही तो खास उद्देश्य होता है | चल उठ | कुछ खा पी ले | भूख लग रही होगी |

      वर्तिका की बात सुनकर तनेजा बोले – अरे बेटी तेरी मम्मी और पापा की यही बातें तो हैं जिनके कारण आस पास के सारे लोग यही कहते हैं कि दाम्पत्य जीवन हो तो स्टेशन मास्टर साहब जैसा हो | कितने प्यार से रहते हैं दोनों | कभी इन्हें झगड़ते क्या मुह फुलाए बैठे भी नहीं देखा |

वैसे बेटी मेरा व उपमा का भी घरेलू जीवन सलिल बाबू जैसा तो नहीं पर काफी कुछ  मधुर और मान सम्मान भरा रहा | शादी के बाद हम में कभी कोई झगडा या छोटा बड़ा मन मुटाप नहीं हुआ | हम दोनों ने प्रेम विवाह किया था | हम एक ही कॉलोंनी में रहते थे | हुआ यह कि जब ये अठारह उन्नीस साल की थीं तो एक दिन रात को तीन चार चोर खिड़की तोड़ कर इनके घर में आ गए | पहले उन्होंने इनकी माँ और इनके हाथ पैर बाँध कर सारा कीमती सामान बाँधा फिर सबने बड़ी बेरहमी के साथ बारी बारी से इनका रेप किया | इनकी माँ बताती हैं कि हाथ पैर खुलने के बाद जब उन्होंने इन्हें देखा तो ये बिलकुल अचेत अवस्था में थी और इनका चेहरा व ऊपर से नीचे तक सारा बदन इतना शतविक्षत था कि देखा नहीं जाता  था | इसके बाद ये इतनी टूट गई कि न किसी से ये  मिलती थीं , न किसी से बात करती थीं |

  इसी बीच जब एक बार मैं अपनी पढाई पूरी करने के बाद अपने घर गया तो माँ ने  मुझे इनकी सारी कहानी बताई | मैंने इन्हें हर तरह मानसिक बल और सहारा देने का निश्चय किया | मुझे अपने इस धर्म – कार्य में एक साल तो अवश्य लगा | पर मैंने इन्हें शादी के लिए तैयार कर लिया | अब इनके साथ और सहयोग से जीवन के सारे सुख मेरे पास है |                           उपमा की कहानी सुन कर बहुत देर तक हॉल में पूरी तरह चुप्पी छाई रही | कोई एक शब्द नहीं बोला | फिर कर्नल तनेजा ही प्रसंग बदलते हुए वर्तिका से बोले –  बेटी मैं कई दिन से सोच रहा था कि अब कुछ ही दिन बाद प्रणय की पढाई पूरी होने जा रही है | तो क्यों न मैं अपना एक निजी अस्पताल शुरू कर दूं | इससे प्रणय हमेशा अपनी माँ के पास भी रहेगा और इस भौतिक संसार की चकाचौद में फंसने से भी बच जाएगा | बेटी , दरअसल मैं सीमा पर लड़ने वाला कर्नल नहीं हूँ | मैं सैनिक अस्पताल से रिटायर एक ई एन टी विशेषग्य हूँ | अगर तुम और प्रणय मेरे साथ आ जाओ तो हम सब मिलकर बहुत बड़ी संख्या में मरीजों की सेवा कर सकते हैं | क्या तुम मेरे साथ काम करना पसंद करोगी |

                   अंकल आप कैसी बात कर रहे हैं | आप प्रणय जी के पापा हैं और हर तरह मेरे आदरणीय हैं | आपके और प्रणय जी के साथ काम करके तो मुझे हमेशा गर्व ही अनुभव होगा | प्रणय जी को तो मैं पिछले पांच छ: साल से रोज अपने मेडिकल में  देख रही हूँ | ये जूनियर डॉक्टर्स में पूरे मेडिकल की एक शान हैं | उसके एक रत्न जैसे हैं | कभी किसी का सहयोग करने से ज़रा सा मना नहीं करते | सबसे ऐसे मिलते हैं जैसे न जाने उसके कितने निकट के सम्बन्धी हैं | मैं उस दिन बीच रात में इनके आचरण व व्यवहार को देख कर ही तो इनके साथ मेडिकल चली गई थी | शायद कोई और होता तो उसके लाख कहने पर भी घर से बाहर कदम नहीं रखती |

 तनेजा बोले – बेटी  अगर मैं गलत नहीं हूँ तो मुझे लगता है कि यदि सलिल बाबू को प्रणय जैसे आचार विचार वाला कोई लडका मिल जाए तो तुम शादी के लिए शायद अधिक मना नहीं करोगी |

इस पर वर्तिका कुछ नहीं बोली | बस अंकल से अलग होकर पास ही खडी अपनी मम्मी  के कंधे पर सिर रख कर खडी हो गई | नाश्ता करने के बाद जब  सब हाल में बैठ कर गप शप करने लगे तो उपमा वर्तिका को वहां से उठा कर अपने पूजा घर में ले गई | वहां उन्होंने पहले तो मन्दिर के दिए से उसकी आरती  की फिर कई बार नजर उतारने के बाद वहीं दराज में रखी काजल की डब्बी खोलते हुए उससे बोली – बेटी अगर बुरा न मानों तो कनपटी के पास तुम्हारे माथे पर ज़रा सा डिठौना लगा दूं | तुम सच बहुत सुन्दर लग रही हो और मेरी किसी को भी बहुत जल्दी नजर लग जाती है |

              आन्टी आप कैसी बात कर रही है | आप तो मेरी मम्मी जैसी हैं | आप जैसे चाहें लगा दीजिये | इसके बाद उन्होंने प्रणय को बुलाया और उससे बोली कि वह हरिद्वार वाली दो अष्ट धातु की अंगूठियाँ कहाँ रखी हैं , जरा उन्हें वर्तिका को लाकर दे | इसे भी तो बुरी हवाओं से बचने के लिए उसकी जरूरत है |

      जब प्रणय अंगूठी लेने दूसरे कमरे में चला गया तो उपमा कुछ अधिक ही भाव विभोर हो गई | उसने पहले तो वर्तिका का माथा चूमा फिर आँखों में आंसू भर कर उसे वक्ष से चिपटाते हुए बोली – अब आगे जरा जल्दी आना | तुम नहीं जानती हम सभी यहाँ तुम्हें कितना याद करते हैं | प्रणय के पापा तो अब सुबह से शाम तक तुम्हारे सिवा और कोई बात ही नहीं करना चाहते | यह जो अस्पताल वह बनवा रहे है ना वह भी  सिर्फ तुम्हारी वजह से ही बनवा रहे हैं | क्योंकि तुम्हारी इच्छा है कि तुम हमेशा अपने मम्मी पापा के पास रहो और गरीबों की सेवा करो |   

प्रणय ने जब उसे अंगूठियों लाकर दीं तो उनमें से कोई भी उसकी उँगलियों में ठीक नहीं आई | या तो कोई बहुत ढीली थी या कोई बहुत कसी | इस पर उपमा प्रणय से बोली – तू ऐसा कर इसे अपनी अंगूठी दे दे | वह अभी दो दिन पहले ही तो तूने पहनी है | ये नई ही तो है | उसे ज़रा गंगा जल से और धो दे तो बिलकुल शुद्ध हो जायेगी | अपने लिए कल सुनार से छोटी करा कर दूसरी पहन लेना |

            वर्तिका जब उसकी अंगूठी उंगली में डालने लगी तो प्रणय उसका हाथ देख कर एक साथ बोला – अरे ये आपकी गोल्ड की अंगूठी का नग तो बिलकुल निकलने वाला है | इसमें तो अब बस एक काँटा ही रह गया है | इसे तुरन्त उतार कर मुझे दीजिये | मैं जब कल अपनी अंगूठी बनवाने जाऊंगा तो इसे भी ठीक करा लाऊँगा |

वर्तिका बड़े संकोच के साथ बोली – ये बुरी तरह फंस गई है | मैंने कई बार कोशिश की पर उतरती ही नहीं है |’’

लाइए , मुझे दिखाइए | ऐसे कैसे हो सकता है कि अंगूठी उतरेगी ही नहीं | फिर उसने मन्दिर के दीपक से थोड़ा सा तेल लिया और उसे उंगली पर लगाने के बाद धीरे धीरे खिसका कर अंगूठी उतार दी और फिर कुछ हँस कर उससे बोला कि अब मुझे अच्छी सी शाबाशी दीजिये , मैंने आपकी कितनी बड़ी समस्या हल कर दी |

वर्तिका – मैं आपको शाबाशी दूंगी | मैं तो आपसे बहुत छोटी हूँ | शाबाशी तो बड़े लोग छोटों को देते हैं |                     

उपमा हँस कर उसकी उतरी हुई अंगूठी उसे देते हुए बोली – ले इसे इसकी किसी उंगली में पहना दे | ये तेरी इसे शाबाशी भी हो जायेगी और इसके जेब में न रखने पर कहीं गिरने से भी बच जायेगी |

वर्तिका जब प्रणय को अंगूठी पहनाने लगी तो उपमा उसका बिना सोने की अंगूठी का हाथ देख कर बड़ी उदास सी हो कर बोली – अरे तुम्हारा हाथ तो बिना अंगूठी के पूरा सूना हो गया | यह तो अब बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा है | मैं अभी तुम्हें कुछ लाकर देती हूँ | और फिर वह जल्दी से उठ कर तेज चाल से अपने बैड रूम में चली गई |

    माँ के जाने के बाद वर्तिका प्रणय से बोली –आपसे एक बात पूछूं , सच सच बताएँगे | आन्टी कह रही थी कि यहाँ घर में सबको मेरी बहुत याद आती है | क्या आपको भी आती है ?

 - हाँ ! बहुत आती है | पता नहीं आप में जाने क्या बात है कि बस दो दिन कुछ घंटे आपके साथ रहा हूँ और अब बस हर समय आपकी ही मीठी मीठी बातें कानों में गूंजती रहती हैं |                                      वर्तिका - आन्टी कह रही थीं कि जब मैं  ब्लड की कमी के कारण बीमार हो गई थी तो आप किसी से नहीं बोलते थे और रह रह कर बस रोते रहते थे |          

प्रणय - हाँ , जाने क्यों हर समय आपको लेकर मन में बहुत बुरे बुरे विचार आते थे | सोता था तो सपनों में भी बस आप ही कभी वेंटीलेटर पर बेहोश पडी दिखाई देती थीं , कभी पेरेलेसिस से ग्रस्त तो कभी विक्षिप्त अवस्था में दुबली पतली निरीह सी | एक दिन तो --- कहते कहते उसका गला भर आया | पुरानी बातें याद कर एक साथ आँखों में आंसू उमड़ आये | वह बड़ी मुश्किल से बोला – प्लीज कोई और बात कीजिये |                                                                    वर्तिका फिर उसका हाथ अपनी हथेलियों में दबाकर बोली -सॉरी , सच मुझे पता नहीं था कि आप मेरे बारे में इतना सोचते हैं | मेरा ज़रा सा दुःख आपको भीतर तक कितना आहत कर देता है | पर देखिये अब तो मैं आपके सामने बैठी हूँ और बिलकुल ठीक हूँ |’’ तभी प्रणय ने जब माँ को अपनी तरफ आते देखा तो वह फिर जल्दी से आंसू पौंछता हुआ हॉल की तरफ चला गया |

 उपमा इस समय बहुत खुश थी | आते ही वर्तिका को अपनी सोने की अंगूठी पहनाते हुए बोली – बेटी यह मेरी बहुत शुभ और भाग्यवान अंगूठी है | ये मुझे तनेजा जी ने मेरे शादी के लिए हाँ करने पर अपने हाथ से पहनाई थी | सच कह रही हूँ इसे पहनने के बाद कभी कोई दुःख मेरे जीवन में नहीं आया | बेटी इसे उतारना मत | न अपनी अंगूठी ठीक हो जाने पर  इसे प्रणय को लौटाना | यह मेरी तरफ से तुम्हें गिफ्ट है | 

हर व्यक्ति से अलग अलग एक नई तरह का प्यार पाकर वर्तिका एक अनजान से स्वप्न लोक में खो गई थी | यहाँ का प्यार उसके अपने मम्मी पापा के प्यार से बिलकुल अलग था | वह सोच नहीं पा रही थी कि वह इसके लिए सब का किस तरह आभार व्यक्त करे | प्यार की भागीरथी में ऊपर से नीचे तक भीगी जब वह उपमा के साथ हॉल में पहुची तो वहां सब उसके बारे में ही बात कर रहे थे | तनेजा  ने जैसे ही उसे देखा तो तुरन्त उसके लिए सोफे पर जगह बनाने के बाद उसे अपने पास बिठलाते हुए बोले – बेटी ! जब से तुम और तुम्हारे मम्मी पापा ने घर में कदम  रखा है , सच मुझे खुशियाँ ही खुशिया मिल रही हैं | मैं अपने प्लाट के बराबर वाली जिस जमीन के लिए बहुत परेशान था ना , वह तो सलिल बाबू की ही निकली और ये खुशी खुशी उसे अस्पताल के लिए दे रहे हैं | अब हम अस्पताल के साथ अपने रहने के लिए भी एक बड़ा सा घर वहीं बनायेंगे और सब साथ साथ रहेंगे |

   बेटी अब एक अन्य बहुत महत्वपूर्ण बात और है जो तुमसे जुडी है | बेटी तुम हम तीनों को ह्रदय से नहीं आत्मा से हर तरह पसंद हो | तुम्हारे मम्मी पापा भी प्रणय से तुम्हारी शादी के लिए तैयार हैं | अब तुम और हाँ कर दो तो हम किसी दिन अंगूठी की रस्म पूरी कर दें | वैसे हमें शादी की कोई जल्दी नहीं है | वह तो तब होगी जब तुम्हारे मम्मी पापा कहेंगे | अब तुम आराम से सोच कर अपने पापा को अपना निर्णय बता देना | हम तुम्हारी राय जानने के लिए कल शाम तुम्हारे घर आयेंगे |

        वर्तिका बोली – अंकल ! अगर आप बुरा न माने और मुझे गलत न समझें तो मैं आपसे एक बात कहूं | मेरी बहुत आग्रह के साथ आपसे विनती है कि आप अगर कल राय जानने के लिए घर आना चाह रहे हैं तो कृपया मत आइये |                                                                                 वर्तिका की बात सुन कर सब सन्न रह गए | सभी के प्रश्न वाचक चिन्ह लगे चेहरे देखने लायक थे | क्या वर्तिका को प्रणय पसंद नहीं है ? क्या वह इस रिश्ते के लिए साफ़ मना कर रही है ? पर तभी वर्तिका धीरे से बोली – अंकल कल आप राय जानने के लिए नहीं , स्टेशन मास्टर साहब की बेटी के मंगेतर के पिता के रूप में चाय पीने आइये |

वर्तिका की बात सुनकर उपमा ने उसे एक साथ बाँहों में जकड़ लिया | उसके बाद  तनेजा व उसके मम्मी पापा भी उसके पास पहुँच गए और सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देते हुए बोले – बेटी सदा सुखी रहो और ऐसे ही सबको खुशियाँ देती रहो |                                                     इसके बाद प्रणय जो कुछ दूर खडा था वर्तिका के पास आकर बोला – क्या मैं भी पापा के साथ आ सकता हूँ ?

नहीं , प्लीज आप पापा के साथ मत आइये | आप अगर उनसे एक घंटा पहले आ पायें तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा | अंकल , आप ही बताइए मैं चाय नाश्ते का सामान बीकानेर वालों की दुकान से अकेली कैसे लाऊंगी |

                                               समाप्त                                                                                स्वरचित मौलिक --- आलोक सिन्हा

 

 

उपहार - ( कहानी )

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