रविवार, 17 जनवरी 2021

कुंआरे बिछुये ( कहानी )

                                                  कुंआरे बिछुये  ( कहानी )                                                                                                                    अंग्रेजों से स्वतन्त्रता मिलने के बाद नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की यह पहली जयन्ती थी |  पूरा नगर बड़े उत्साह से तैयारियों  में जुटा था | जनपद के समस्त स्वन्त्रता सेनानी , आजाद हिन्द फ़ौज के सदस्य , गण मान्य व्यक्ति ,अधिकारी गण व सभी राजनैतिक दलों के सदस्यों को आयोजन में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया गया था | राजकीय इन्टर कॉलेज के क्रीडा स्थल पर प्रात: ११ बजे कार्य क्रम प्रारम्भ हुआ | सबसे पहले सैनिकों की परेड प्रस्तुत की गई |    अग्रिम पंक्ति में पुलिस बैंड था और उसके बाद क्रमश : आजाद हिन्द फ़ौज के सैनिक , पुलिस और फिर महिला सन्गठन द्वारा प्रशिक्षित पूर्ण सैनिक वेश में छात्राएं थी | जिनका नेतृत्व एक इंटरमीडिएट की छात्रा काजल वर्मा कर रही थी | उसका कमांड इतना आकर्षक और प्रभावशाली था कि सबकी निगाहें बस उसी पर टिक कर रह गई थीं | परेड समाप्त होने के बाद कई आगंतुकों के भाषण हुए ; लेकिन जो जोश , उत्साह और देश प्रेम की सच्ची भावना काजल के भाषण में थी , वह कहीं और दिखाई नहीं दी | उसका वक्तव्य समाप्त होते ही जन समूह ने खड़े होकर तालियों से उसका विशेष अभिनन्दन किया और समाजवादी नेता जलज ठाकुर सहित कई सम्माननीय व्यक्तियों ने उसके पास जाकर उसे खुले मन से बधाई दी |                                                                                 इसके कुछ दिन बाद जब एक दिन शाम को काजल घर के पास ही रहने वाली अपनी सहेली शर्मिष्ठा के घर गई तो वहाँ जलज पहले से बैठा हुआ था | उसे देखते ही सरिता के पिताजी ने उसे तुरंत अपने पास बुलाया और जलज से उसका परिचय कराते हुए बोले -`` बेटी ये जलज है | इसके पिता मेरे बचपन के साथी हैं | इसने देश सेवा के लिए अपना जीवन दान किया है | इसे पार्टी ने हमारे शहर में काम करने का दायित्व सौपा है | यह इस समय किराये पर एक कमरे की तलाश में है | क्या तुम्हारे यहाँ कोई कमरा खाली है |``                                           काजल ने कहा - `` अंकल , आप माँ से पूछ कर  देख लीजिये | अगर आप उनसे कहेंगे तो शायद वह कभी मना नहीं करेंगी |``पिताजी के कहने से जलज को प्रथम तल पर एक कमरा किराये पर  मिल गया | दरअसल  काजल का घर काफी बड़ा था | भूमि तल पर ५ और प्रथम तल पर दो दिशाओं में तीन कमरे थे |  पूर्व दिशा वाले  बड़े कमरे में काजल  लडकियों को योग सिखाती थी | और पश्चिम दिशा वाले दो कमरों में से एक में उनका कुछ अपना सामान रखा था | इसलिए जलज को वहाँ  दूसरा खाली  कमरा दिया गया |                                               काजल के पिताजी नहीं थे | चार साल पहले लू लगने से उनकी मृत्यु हो गई थी | इस समय उसके घर में दो  भाई , एक बहिन व उसकी सीधी सच्ची माँ थी | हर्ष उससे चार साल छोटा था और हाई स्कूल में पढ़ रहा था | उससे तीन साल छोटी सुमन थी और फिर उससे तीन साल छोटा आठ साल का अखिल था | इसलिए सबसे बड़ी होने के कारण मात्र अठारह साल की वय में ही  घर की सबसे अधिक जिम्मेदारी उसी के कंधों पर आ गई थी |  पर वह बड़ी कर्मठता से अपनी भजन गायन व योग विद्या के द्वारा धन भी अर्जित कर  रही थी और अपनी व भाई बहिन की पढ़ाई भी आगे बढ़ा रही थी |                                                               जलज एक बहुत ही सम्वेदनशील व संकोची स्वभाव का नव युवक था | जिसके कारण उसने बहुत जल्दी काजल की माँ व  सभी भाई बहिनों का मन जीत लिया | बस जब भी घर में कोई जरा सी  समस्या आती वह उसे तुरंत हल कर देता | | पहले काजल ही घर बाहर  के सारे काम  करती थी | पर अब जलज के आ जाने से उसकी बहुत सी चिंताएं दूर हो गई |                                                  काजल की छोटी बहिन सुमन बहुत ही चंचल और हंसमुख स्वभाव की थी | उसे जब भी जलज की कोई बात खलती वह तुरन्त उसे सुधारने का मार्ग खोज लेती | क्योंकि जलज संकोचशील होने के कारण न किसी से बात करता  था , न किसी के साथ घुलने मिलने का प्रयास करता था | इसलिए जब माँ १०-१५ दिन में उसे बाजार से लाने के लिए कुछ सामान की सूची देती तो सुमन हर बार एक दो चीजे उसमें नीचे और बढा  देती | कभी लिखती -- एक रुपये की थोड़ी सी मुस्कुराहट  ,कभी एक रुपये का खेलने का समय , कभी एक रुपये के गाँवों के रोचक अनुभव | जब जलज सूची पढ़ता तो हल्का सा मुस्काकर कहता---`` मैं लिस्ट का सब सामान शाम को ले आऊँगा |’’                              एक दिन मौसम बहुत ही गर्म व उमस भरा था | न जरा सी हवा चल रही थी , न तकनीकी खराबी के कारण बिजली आ रही थी | इसलिए सब शाम होते ही छत पर पहुंच गये | वहाँ बंद कमरे में दो फोल्डिंग , तीन चारपाई और ओढने बिछाने के पर्याप्त कपड़े रखे थे | जलज के आने के बाद सब उस दिन कई महीने बाद छत पर पहुचे थे | इसलिए सभी को अपनी ही छत बहुत  नई नई सी लग रही थी | सब बहुत गर्मी होते हुए भी काफी देर आपस में बातें करते रहे और मुश्किल से आधी रात बाद ही सो पाये |                                                                                                                              पर शायद उस दिन सोना उनके भाग्य में था | बस कुछ देर बाद ही aअचानक आकाश में काले बादल घिरे  , बिजली चमकने लगी और तेज हवा के साथ बारिश शुरू हो गई | सब भाई बहिन जल्दी से अपने अपने बिस्तर कमरे में बाहर से ही फ़ेंक कर नीचे भाग गये | पर काजल फोल्डिंग व चारपाइयाँ कमरे में रखने के कारण छत पर ही बारिश में घिर गई और भीगने से बचने के लिए जलज के कमरे में चली  गई | जलज उस समय पानी की बोछारों को रोकने के लिए खिड़कियाँ बन्द  कर रहा था | पर हवा इतनी तेज थी कि वह खिड़कियाँ बंद करते करते भी बोछारों से बुरी तरह भीग गया | काजल पहले तो कुछ देर द्वार पर खड़े खड़े बारिश के रुक जाने का इन्तजार करती रही पर जब उसे लगा वह अभी रुकने वाली नहीं है तो वह जलज के पलंग की पट्टी पर कुछ सिकुड़ कर बैठ गई | खिड़कियाँ बंद करने के बाद जब जलज ने काजल को देखा तो वह कुछ हल्का सा हंसते हुए बोला -`` आज तो आप बुरी तरह फंस गई | पहले कैसे नीची गर्दन किये चुप चाप कमरे के सामने से निकल जाया करती थी | पर आज तो आपको कमरे के अंदर बैठना ही पड़ गया |``                                                               `` नहीं , ऐसी तो कोई बात नहीं है |`` काजल ने बड़े सहज भाव से कहा --``योग करने के बाद इतनी थकन हो जाती है कि फिर कुछ भी करने का मन नहीं होता | फिर आपसे तो आते जाते मिलना होता ही रहता है |``                                                                    जलज बोला--`` दरअसल मैं आपसे कई दिन से एक बात कहना चाह रहा था | पर सोच नहीं पा रहा  था कि आप पता नहीं स्वीकार करेंगी कि नहीं | क्योंकि मैंने आपको आस पास के स्थानों पर दिन के कार्य क्रमों में तो जाते हुए देखा है ; पर शहर से बाहर कहीं तीन  चार दिन के लिए नहीं |``                                                               तभी हवा के तेज झोंकों के साथ दरवाजे से पानी की बोछारें कमरे के अंदर आने लगीं | जिससे जलज के पलंग का बिस्तर भीगने लगा | तो जलज ने तुरंत उठ कर दरवाजा भीतर से बंद करते हुए कहा--`` आज तो बारिश कमाल कर रही है |`` दरवाजा बंद होजाने से काजल स्वयं को बहुत असहज महसूस कर रही थी | फिर भी अपने को सामान्य प्रदर्शित करते हुए बोली --``कहाँ है तीन चार दिन कार्यक्रम ?''                                                                          `` देहरादून में |`` जलज ने कहा --`` वहाँ पार्टी का चार दिन का राष्ट्रीय अधिवेशन है | कुछ लोगों  कहना  हैं कि यदि अधिवेशन के अंतराल में  प्रति दिन सुबह योग का कार्य क्रम रख दिया जाए तो सभी कार्य करता उसके लालच में जल्दी उठ भी जायेंगे और तरो ताजा भी महसूस करेंगे | अगर आप हाँ कर देंगी तो मेरा पूरा विश्वास  कि आपके सहयोग से अधिवेशन अधिक जन समूह उमड़ने से एक दिन में ही अपनी सर्वोत्तम ऊँचाई छू लेगा और फिर  पार्टी भी आपको भारी पारिश्रमिक देने में संकोच नहीं करेगी |``                                                        काजल पहले तो कुछ क्षण चुप रही , फिर बोली -`` मैं सुबह माँ से पूछ कर देखती हूँ | अगर वह कह देंगी तो फिर अखिल के साथ चली चलूंगी |``     तेज हवा व पानी बरसने से मौसम बहुत ठंडा हो गया था और सारे दिन उमस भरी गर्मी तथा बिजली न आने से दोनों एक पल आराम नहीं कर पाए थे | इसलिए पहले तो दोनों असहाय से कुछ देर बे मन से बातें करते रहे | फिर बस जैसे ही बारिश कुछ हलकी हुई काजल सिर पर चुन्नी रख कर तेज चाल से नीचे आ गई |                                                                   देहरादून का अधिवेशन उसके लिए एक मील का पत्थर सिद्ध हुआ | जलज ने उसे वहाँ  कोई असुविधा नहीं होने दी और हर पल उसका पूरा ध्यान रखा | उसने भी अपने कार्य क्रम की प्रस्तुति में कहीं जरा सी कोई कमी नहीं रहने दी और हर दिन उसे ऐसा नया स्वरूप प्रदान किया कि पार्टी के ही नहीं अपितु दूर दूर  से बाहर के लोग भी बड़ी संख्या में उसमें सम्मिलित होने के लिए रोज सुबह शाम पंडाल में जुटने लगे | जिससे  अधिवेशन  दो गुना आकर्षक हो गया | वह योग आसनों से पहले रोज एक दो नये भजन प्रस्तुत करती | फिर आसनों के बाद अंत में कुछ देश भक्ति के गीत सुनाती | जिससे उसकी प्रस्तुति में सौ चाँद लग गए थे |                                         काजल के कारण अधिवेशन को तो अभूतपूर्व सफलता मिली ही , जलज भी उसके कारण पार्टी  के बड़े नेताओं की आँखों का तारा बन गया | सभी  उसे कोई बड़ी जिम्मेदारी सौपने के प्रस्ताव पर गम्भीरता से विचार करने लगे | जलज बहुत खुश था |   अप्रत्याशित प्रशंसा व सम्मान पाकर वह फूला नहीं समा रहा था | मन ही मन उसे जैसे काजल में अपना उज्ज्वल  भविष्य भी दिखाई देने लगा था |                                                   जलज के मन में वैसे तो काजल के प्रति पहले से ही अत्यधिक सम्मान की भावना थी | पर अब उसके ह्रदय में उसका स्थान और भी अधिक ऊंचा हो गया | वह हर समय बस यही सोचता कि वह कैसे क्या करे जिससे काजल की पारिवारिक चिंताओं कुछ कम हो सकें |                                                              इसके कुछ दिन बाद जब वह घर पहुंचा तो काजल के घर के सब लोग गर्मी अधिक होने के कारण बाहर लान में बैठे हुए थे और काजल कमरे में अकेली ` पानी मिट्टी की पट्टियों से चिकित्सा `की पुस्तक पढ़ रही थी | वह उसके पास ही बैठ गया और बोला -`` आप इतनी गर्मी में यहाँ क्यों पढ़ रही हैं  ? पंखे से भी देखिये  कितनी गर्म हवा निकल रही है | यह तो आपको बीमार डाल देगी |``                                काजल ने कहा -`` जब किसी  काम के करने की मन में सच्ची लगन हो तो फिर गर्मी सर्दी कुछ महत्व नहीं रखती | पर आप यहाँ पसीने में क्यों तर हो रहे हैं ?``                                                              जलज बोला -`` दरअसल मैं कई दिन से आपसे एक बात कहना चाह रहा था | पर आप अकेली ही नहीं मिल पा रही थीं | अब अकेली मिली हैं तो यह डर  लग रहा है कि कहीं आप उसका बुरा न मान जाएँ |``                                `` आप नि:संकोच कह दीजिये , मैं बुरा नहीं मानूगी | ऐसी क्या बात है जिसे कहने में आप इतना डर रहे हैं |’’                                                   `` मैं आपसे शादी करना चाहता हूँ |``                                       `` यह बात तो आप माँ  से कहिये | इस विषय में तो निर्णय लेने का अधिकार बस उन्ही को है |``                                                            `` अगर उन्होंने हाँ कर दी तो फिर आपको तो कोई आपत्ति नहीं होगी |``              जलज के इस प्रश्न पर वह  कुछ हंसते हुए बोली -``आप पहले मां से तो बात करिये | तब मैं सब बता दूंगी | अब आप घर में कोई नये तो हैं नहीं | शायद फरवरी में आपको यहाँ आये दो साल हो जायेंगे |``                                       अगले दिन ही जब जलज ने माँ के सामने अपना प्रस्ताव रखा तो उन्होंने कहा -`` तुम पहले कुछ कमाना तो शुरू करो | तुम्हारे पास न अभी कोई घर है , न कोई आमदनी का साधन | कैसे गृहस्थी चलाओगे |``                              जलज का बस एक छोटा भाई था - सागर | बहिन कोई नहीं थी | सागर की बचपन में ही चेचक से एक आँख बुरी तरह खराब हो गई थी और दूसरी आँख से भी उसे बहुत कम दिखाई देता था | इस लिए उसने शादी करने से बिलकुल मना कर दिया था | वह बस अपने फल फूलों से सजे अपने फार्म की ही देख रेख में सारा जीवन व्यतीत करने में रूचि रखता था |                                                      कुछ दिन बाद जब जलज के पिताजी इस विषय में माँ से मिले तो उन्होंने  भी उनसे यही  कहा कि वह गाँव के अवश्य हैं | पर उनके यहाँ  किसी चीज की कोई कमी नहीं है | जहां तक मकान की बात है उसके लिए उन्होंने जमीन तो खरीद ली है बस अब जैसे ही  मौका मिलेगा वह उसे बनाने का काम भी जल्दी ही शुरू कर देंगे |                                            इसके बाद माँ ने शादी के लिए हाँ  कर दी जलज बहुत खुश था और एक तरह से काजल का बहुत अहसानमंद भी | इसके बाद उसने काजल का कुछ ज्यादा ही ध्यान रखना प्रारम्भ कर दिया | बस जब भी कहीं से उसका कोई कार्य क्रम आता तो वह उसके वहाँ  रहने खाने पीने की पूरी व्यवस्था करने का प्रयास करता | अगर वह कोई बिलकुल  अनजान जगह होती तो स्वयं उसके साथ चला जाता |                                                                      शादी तय हो जाने के तीन चार महीने बाद एक दिन काजल को रोहतक और दिल्ली  से एक साथ दो निमन्त्रण पत्र  मिले | दोनों जगह ही एक दिन बीच में छोड़ कर दोपहर में  कार्य  क्रम रखे गये थे | उसने उन्हें अपनी स्वीकृति  तो तुरन्त भेज दी पर रोहतक जाने का कौन सा मार्ग है और वहाँ  पहुंचने के लिए किस मार्ग व वाहन से जाना अधिक सुविधा जनक रहेगा यह उसकी समझ में नहीं आ रहा था | शाम को जब जलज घर आया और जब काजल ने उसे दोनों निमन्त्रण दिखाए तो वह उससे  बड़े सहज रूप में बोला  कि वह इस बारे में जरा सी चिता न करे | वह स्वयं उसके साथ रोहतक चला चलेगा |                                                            कार्य क्रम के दिन काजल सुबह ९ बजे अखिल को लेकर दिल्ली पहुँच गई | वहाँ जलज पहले से उसकी प्रतीक्षा कर रहा था | वह उसे देखते ही बोला -`` आपकी बस तो अभी  ५ मिनट पहले ही गई है | अब अगली बस दो घंटे बाद जायेगी | चलिए  इस बीच आपको श्री अमित बोस साहब से मिलवा दूं | सच दोनों बुजुर्ग पति पत्नी बहुत ही शिष्ट और सह्रदय हैं | यहाँ से बस ५ मिनट का रास्ता है | शाम को लौट कर आप ठीक समझें  तो उनके पास ही ठहर जाइये |``                                    जब रिक्शे से सब उनके घर पहुंचे तो उन्होंने काजल को देखते ही पहचान लिया और बोले -`` अरे यह तो वही लडकी है जो अधिवेशन में भजन सुनाती थी , सबको सुबह सुबह योग कराती थी  |``फिर काजल के सर पर हाथ रखते हुए जलज से बोले-`` देखो , शाम को जब रोहतक से लौटो तो इसे पूर्व वाले दुर्गा मन्दिर जरूर ले जाना | आज माँ दुर्गा की पूजा का दिन है | उनका आशीर्वाद मिलने के बाद काजल को किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए कोई कठिनाई सम्मुख  नहीं आयेगी | मन्दिर जाने के पवित्र वस्त्र उस कोने वाले बाक्स में रखे हैं | बेटी उन्हें ही पहन कर जाना | इस मन्दिर की ऐसी ही परम्परा है | इन वस्त्रों को धारण करने पर ही फल की प्राप्ति होती है | वैसे बेटी मेरा मन तो यह है कि तुम दोनों अब भी जल्दी से जाकर एक एक फूल दुर्गा माँ के चरणों में चढा आओ तो तुम्हें आज के कार्य क्रम में भी दुगनी सफलता मिलेगी | फूल वहाँ सामने डलिया में रखे हैं |                  रोहतक का कार्य क्रम वास्तव में काजल के लिए अभूतपूर्व ही नहीं उसके भविष्य के लिए भी एक आशा की किरन सिद्ध हुआ | जिस स्कूल में यह आयोजन था उसके संस्थापक वहाँ की एक बहुत बड़े उद्योगपति थे | वह काजल के योग प्रदर्शन  व भजनों की प्रस्तुति से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसे १० हजार रूपये का पुरूस्कार और भविष्य में हर महीने के चतुर्थ शनिवार को स्कूल में योग कराने की घोषणा कर दी                    कार्य क्रम ४ बजे समाप्त हो गया | इसलिए जलज उसे वहाँ बिना विश्राम कराए दिल्ली वापस ले आया | जब ५.३० बजे  वो बोस साहब के बंगले पर पहुंचे तो वहाँ ताला लगा हुआ था | बोस साहब अचानक एक फोन आने के बाद घर की चाबियां गार्ड को देकर कलकत्ता चले गये थे |                                             जलज ने जब घर खाली देखा तो वह काजल से बोला-`` आप आराम करिये | मैं चाय नाश्ते का प्रबन्ध करके  आता हूँ | फिर हाथ मुंह धोकर मन्दिर चलेंगे |``               जलज  को चाय लाने में कुछ समय लग गया | इसलिए नाश्ता करते करते ही अन्धेरा घिरने लगा | जब मुंह हाथ धोकर काजल ने पूजा के कपड़े पहनने के लिए बोस साहब का सन्दूक खोला तो वस्त्र देख कर चकित रह गई | उसमें अधिकतर कपड़े  नई दुलहन के कपड़ों जैसे थे | वह तुरन्त जलज  से बोली -`` जरा इधर देखिये  | ये कपड़े तो शादी की पोशाक जैसे हैं | इन्हें मैं कैसे पहनूंगी ?``                               जलज बोला -`` अब जैसे भी हैं पहन लो | जब बोस साहब बता कर गये हैं तो मन्दिर में ये ही पहने जाते होंगे | फिर अगर दुलहन के भी  हैं तो उसमें हर्ज क्या है | आज नहीं तो कल हमारी शादी तो होने ही वाली है |``                                  ‘’ नहीं `` काजल ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा -``बात विवाह की नहीं है | वह तो मेरे लिए बहुत मंगलमय दिन होगा | पर ये  बताइए कि विवाह से पहले दुलहन के वस्त्र पहन कर मन्दिर जाना क्या अजीब सा नहीं लगेगा | बीच मार्ग या मन्दिर में कोई परिचित मिल गया तो वह क्या सोचेगा | क्या आप शादी से पहले  दूल्हे के वस्त्र पहन  कर कहीं जा सकते हैं |``                                                      जलज बोला -`` आप पूजा करने जा रही हैं | पूजा में कहीं भी तर्क या संकोचों के लिए कोई जगह नहीं होती | जो प्रावधान है , हमें उसका ज्यों का त्यों ही अनुसरण करना होता है | सच , अगर मेरे लिए भी इस तरह के कपड़े बाक्स में हैं तो वो आप मेरे लिए निस्संकोच निकाल दीजिये | मैं उन्हें पहनने में एक पल नहीं लगाऊंगा |`` इसके बाद जलज स्वयं आगे बढ़ा और सन्दूक में काफी नीचे रखे लडके के पहनने वाले कपड़े उसने बाहर निकाल लिए |                                 मन्दिर वास्तव में बहुत भव्य था | दोनों ने पूर्ण समर्पित भाव व विधि विधान से वहाँ बहुत देर पूजा अर्चना की और अन्य भक्तों की तरह ढेरों चित्र भी खिचवाये | दोनों ही बहुत उत्साहित और ह्रदय से प्रसन्न थे | लौटते समय काजल ने जलज से कहा-`` सच , मैं तो ये वस्त्र पहन  कर बहुत ही डर रही थी कि कहीं कोई देख न ले | पर मन्दिर में सभी को इस पोशाक में देख कर सब डर समाप्त हो गया | सच वहाँ सब कितने अच्छे लग रहे थे | और कितने ज्यादा खुश दिख रहे थे | वास्तव में मेरा तो अभी मन्दिर से आने को बिलकुल मन नहीं कर रहा था | मैं कह नहीं सकती कि वहां आज मुझे कितना मजा आया | पूजा की विधि ने तो मुझे कितना रोमांचित किया मैं कह नहीं सकती | पंडित जी कैसे पुरुषों को को अंजुरी में और महिलाओं को  आंचल में एक पुष्प के साथ प्रसाद देने के बाद दोनों पर पंखुरी बिखरा रहे थे  |``                         जलज बोला -`` आप ही संकोच कर रही थी ये वस्त्र पहनने में |`` काजल ने जलज के मुंह पर हाथ रख कर उसे आगे बोलने से रोकते हुए कहा -`` अब आप आज से मुझे आप मत कहा करिये | मैं तो आपसे उम्र में बहुत छोटी हूँ और कुछ ही दिन में आपकी वैधानिक पत्नी भी बनने वाली हूँ |``                                     “ तो उसमें क्या हुआ `` जलज ने कुछ गंभीर होकर कहा -`` क्या पत्नी आदरणीय नहीं होती | काजल जी पत्नी बन जाने के बाद तो आप मेरे ह्रदय का ही नहीं आत्मा का भी एक अमूल्य आभूषण हों जायेंगी | कृपया मुझसे यह तुम कहने की बात मत कहिये | शायद में अभ्यास करके भी यह काम नहीं कर पाऊंगा | अच्छा अब चलिए कुछ और बातें करते हैं | आप सच सच यह बताइए कि  अगर हम ये पूजा के कपड़े पहन कर मन्दिर नहीं जाते तो फिर कैसे लगते ?``                                                         `` आप बिलकुल सच कह रहे हैं | पूरी तरह अनपढ़ और अशिष्ट से लगते | यह तो सब इन कपड़ों का ही कमाल था जो हम वहां खुलकर इतना आनन्द उठा सके |``                                                                 घर आ गया था | सब कमरे में पहुंचते ही निढाल से सोफे पर बैठ गये | अखिल को बहुत तेज नीद आ रही थी | वह जूते पहने पहने ही बिस्तर पर लेट गया | काजल ने जब उसके जूते उतार कर उसे उढ़ाने के लिए रजाई खोली तो वह बहुत ही हल्की वाली जयपुरी रजाई थी | जिससे उसने वहाँ दूसरी रजाई भी उसके ऊपर डाल दी और फिर बड़े कमरे में आकर  श्रृंगार मेज के सामने अपने पूजा  वाले आभूषण उतारने लगी | तो जलज तुरंत उसके पास आकर बोला -`` प्लीज इन्हें अभी मत उतारिये | सच इस रूप में आप बहुत अच्छी लग रही हैं | मझे इस सुन्दरता को जरा कुछ देर तो और देख लेने दीजिये |``                                                               `` तो फिर `` उसने पीछे घुमते हुए कहा -`` आप भी तब तक ये वस्त्र नहीं बदलेंगे जब तक मैं नहीं बदलूंगी |``                                                  इस पर जलज ने कुछ हल्का सा मुस्कुराते हुए उससे कहा -`` अरे आप  अगर इन कपड़ों में मेरे पास रहें तो मैं जीवन भर ये वस्त्र न उतारूं और हर पल बस आपके पास बैठ कर आपको ही देखता  रहूँ |``  जलज की बात सुन कर काजल जोर से हंस पड़ी और बोली -`` अच्छा अब ये हंसी मजाक खत्म | चलिए थोड़ा सा कुछ खा लेते हैं | बहुत तेज भूख लग रही है |``                                                             खाना खा  लेने के बाद जब दोनों बस वाश बेसिन पर हाथ धो ही रहे थे कि बिजली चली गई | जलज  कुछ देर तो मोबाइल की टार्च जलाए रहा फिर काजल से बोला-`` आप छोटे कमरे में अखिल के पास लेट जाइये aअगर उसकी नींद खुल गई तो वह कहीं  अँधेरे में डर न जाए | मैं बस दो मिनट में पास के बाजार से मोमबत्ती लेकर आता हूँ |``                                                          काजल अखिल के पास लेट कर पहले तो कुछ देर प्यार से उसका सर सहलाती रही फिर भरक लेने  के लिए उससे चिपट कर मन ही मन  बोली -`` अखिल मैं आज बहुत खुश हूँ | आज दुर्गा माँ  हर पल मेरे पास हैं | देख मुझे कितना बड़ा इनाम मिला है | यह सब बोस अंकल के कारण हुआ है | न वह मुझे सुबह फूल चढाने मन्दिर भेजते , न मुझे माँ का आशीर्वाद प्राप्त होता | वैसे सच कहूं - इस उपलब्धि में जलज का भी कम योगदान नहीं है | वास्तव में वो एक बहुत अच्छे इंसान हैं | मैं आज के बाद उन्हें जीवन में कभी कोई कष्ट नहीं होने दूंगी | चाहे उनकी खुशी के लिए मुझे कुछ भी क्यों न करना पड़े |``

    तभी जलज बाजार से  वापस आ गया और एक बड़ी मोमबत्ती कमरे में जलाते हुए बोला -`` बाहर लोग कह रहे हैं कि बिजली अब १२ बजे से पहले नहीं आयेगी | इसलिए में ६ बड़ी  मोमबत्तियों और कुछ अगरबत्ती व धूप  बत्ती ले आया हूँ |``                               `` पर बिजली के बिना ’’ काजल कुछ चिन्तित सी होकर बीच में उसे टोकते हुए बोली – “ जब रूम हीटर नहीं चलेगा तो इस तेज  ठंड में नींद कैसे आयेगी | यहाँ तो चार रजाइयाँ हैं और वह भी जयपुर वाली पतली पतली | उनमें से दो तो मैंने अकेले अखिल को उढा दी हैं |

 जलज बोला -`` चलिए मैडम जब मैं आपको यहाँ लाया हूँ तो आपके हर कष्ट का निवारण करना भी तो मेरा ही काम है | मैं  अभी इसका कुछ हल निकालता हूँ |`` इसके बाद वह तुरन्त एक पास ही स्थित  पूजा सामग्री विक्रेता की दूकान पर गया और वहाँ से एक बड़ा हवन कुंड समिधा कच्चे कोयले व कुछ हवन का आवश्यक सामान लाकर कमरे में प्रवेश करते हुए बोला -`` लीजिये मैडम आपकी  सर्दी दूर करने के लिए हीटर आ गया है | अब जल्दी से बताइए कि इसे कहाँ रखूं  | मेरे विचार से ये बड़े कमरे में ही अधिक ठीक रहेगा | क्योंकि यदि छोटे कमरे में इसे रखा तो धुएं से कभी भी अखिल की नीद खुल सकती है | ''                                                                   इसके बाद वह बड़े कमरे में दीवार के पास  दो आसन बिछा कर व उसके पास हवन कुंड तथा  दुकान से लाया सब सामान रख कर बोला -`` देवी आइये | दिशि दिशाओं में अपनी अप्रतिम शोभा विकीर्ण करता विवाह मण्डप तैयार है | आप शीघ्र  आकर अपना बाईं ओर वाला आसन ग्रहण कीजिये | अग्नि प्रज्वलित हो गई है | रजत पात्रों में पुष्प मालाएं , समिधा हवन सामग्री अक्षत कुमकुम आदि समस्त वस्तुएं रख दी गई हैं | अब बस आपकी कमी है | देवी ! यहाँ समस्त उपस्थित जन समूह पलक पांवड़े बिछाये बड़ी आकुलता से आपकी प्रतीक्षा कर रहा है |  पाणि ग्रहण का शुभ मुहूर्त अब केवल आठ पल ही शेष है | एक ओर वर पक्ष आपके सौन्दर्य सुषमा की  एक झलक देखने को आकुल है तो दूसरी ओर वर आपके साथ यह चिर स्मरणीय पानी ग्रहण के पवित्र अनुष्ठान में सम्भागी बनने के लिए ह्रदय से उत्सुक |``                                                   जब काजल अखिल के पास से उठ कर बड़े कमरे में आई तो वहां एक नया द्रश्य देख कर स्तब्ध रह गई | हवन कुंड के चारों तरफ फूलों की पंखुरी सजी हुई थी | कुंड के बाईं तरफ एक छोटी प्लेट में अक्षत कुमकुम और  दाएँ तरफ के पात्र में फूल मालाएं रखी थी | जलज हवन कुंड  में समिधा रख रहा था | वह धीरे से उसके बाईं तरफ जाकर बैठ गई और बोली -`` पंडित जी अब मुझे क्या करना है ?``                                          जलज ने फिर काजल को बाईं हथेली में चम्मच से कुछ जल देते हुए कहा -`` अब आप सीधे हाथ की उँगलियों से यह जल स्पर्श करके हम जहां जहां कहें लगाती जाइये | ओम वाक् वाक् (ओठों पर लगाइए ) ओम प्राण प्राण ( नासिका के दोनों ओर लगाइए ) ओम चक्षु : चक्षु : ( दोनों नेत्रों से ) ओम श्रोत्रं श्रोत्रं ( कानों से ) ओम ह्रदयम ( ह्रदय से ) ओम  बाहुभ्यां  यशे बलम ( भुजाओं से ) ओम करतल कर पृष्ठे ( जल पीठ पीछे छिडक दीजिये )                                                            इसके बाद जलज ने एक फूल काजल की अंजुरी में रखते हुए कहा-`` देवी ! अब आप कुछ देर धैर्य धारण करें | क्योंकि पहले हम कुछ मंगल कारी श्लोकों का उच्चारण करेंगे | फिर उसके बाद कुछ अनुष्ठान से सम्बन्धित मन्त्र पढ़ेंगे | उसके बाद बस हम जो कहते जाएँ आप वह करती जाएँ | पर कृपया अनुष्ठान के मध्य में न  कुछ बोले , न कुछ पूछें | अन्यथा अनुष्ठान अशुभकारी हो सकता है |''                                          `` ठीक है पंडित जी `` काजल ने दायें हाथ से जलज का हाथ दबाते हुए कहा-`` आप जो भी करने को कहेंगे , मैं वैसा ही करूंगी | पर कृपया इस पावन अनुष्ठान को अशुभकारी हो जाने की बात मत कहिये |''                                             इसके बाद जलज ने जोर जोर से मन्त्र पढने प्रारम्भ किये -`` ओम भूर्भुव: स्व: तत्स वितुर्व रेणयम भर्गोदेवस्य धीमहि धियो यूं न: प्रचोदयात ||                                   इसके बाद पंडित जी हवन कुंड  की अध् जली लकड़ियां ठीक करते हुए काजल से बोले -`` देवी ! जब मन्त्र पढने में वर महोदय हमारा हर पल सहयोग कर रहे हैं तो कम से कम आपको  हमारा न सही अपने वर का तो साथ देना ही चाहिए | जब भविष्य में आपको हर पल हर निमिष कदम से कदम मिला कर साथ चलना है तो आप यह शुभ कार्य अभी से  प्रारम्भ क्यों नहीं कर देती हैं | काजल ने कहा-`` भूल हो गई पंडित जी | भविष्य में मैं आपके मार्ग दर्शन का सदैव ध्यान रखूंगी |``                                            अब जलज ने फिर मन्त्र पढना प्रारम्भ किया -`` ओम विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव | यद भद्रम तन्न आ सुव |                                                                 य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिशम यस्य देवा:| यस्य छाया अम्रतं यस्य मृत्यु कस्मै देवाय हविषा विधेम |                                              गजाननं  भूत गणादी सेवितं , कपित्त जम्बू फल चारु भक्षणम ,                    उमा सुतं शोक विनाश कारकं , नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजं  ||                 कर फूरि गौरं करुणावतारं , संसार सारं भुजगेन्द्र हारं , सदा बसम्तम ह्राद्यार्विंदे , भवम भवामी  सवितं नमामि ||                                                                                                                  त्वमेव माता च पिता त्वमेव , त्वमेव बन्धु च सखा त्वमेव , त्वमेव विद्या द्रविड्म त्वमेव , त्वमेव सर्वम मम देव देव: ||                                                                                                                              ``  अच्छा अब वर कन्या दोनों खड़े होकर एक दूसरे के गले में जयमाला डालेंगे |`` जब पंडित जी काजल को मन्दिर वाली फूलों की माला पहनाने के लिए देने लगे तो वह तुरंत उनसे बोली -`` पंडित जी यह तो मन्दिर वाली माला है |`` पंडित जी ने कहा-``देवी ! हमने पहले ही आपको चेतावनी दी थी कि अनुष्ठान के मध्य आप न कुछ बोलेंगी , न कोई प्रश्न करेंगी | फिर आप पवित्र कार्य में क्यों व्यवधान उत्पन्न कर रही हैं | कौन सी वस्तु कहाँ से आई है और क्यों लाई  गई है , यह सब देखने का कार्य हमारा है | देवी ! यह दुर्गा माँ के चरणों पर चढी माला है |  इससे बढ़ कर तो कोई अन्य माला इतनी पवित्र हो ही नहीं सकती | आप इसे निस्संकोच होकर वर महोदय के गले  में डाल  दीजिये | फिर देखिये हर क्षण शुभ ही शुभ होगा |``                                                                          फिर काजल ने कुछ हंसते हुए वर महोदय के गले में  माला डाल  दी | पर जब उसके बाद वह  वस्त्र समेटती हुई धीरे से अपने स्थान पर बैठने लगी तो पंडित जी एक साथ बोले -`` नहीं नहीं अभी बैठना नहीं है | अब आप वर को आगे रख कर अग्नि के तीन चक्कर लगाएंगी | फिर वर महोदय कन्या को आगे रख कर चार फेरे लेंगे |``                     जब दोनों के फेरे पूरे हो गये और दोनों अपने स्थान पर बैठ गये तो पंडित जी कन्यां की अंजली में एक फूल रख कर बोले -`` अब आप अग्नि को साक्षी मान कर अपने होने वाले पति से अगर कुछ  वचन मागना चाहे तो मांग सकती हैं ?                             काजल ने फिर बड़े प्रसन्न भाव से जलज के कंधे पर अपना सर रख कर कुछ  भावुक होते हुए कहा-`` पंडित जी ! मैं तो बस यही चाहती हूँ कि वह जैसे आज हैं बस जीवन भर ऐसे ही बने रहें | मुझे उनसे बस इससे अधिक और  कुछ नहीं चाहिए |``                   इसके बाद पंडित जी ने काजल की अंजुरी का फूल हवन कुंड  के पास बने सतिये पर चढवा कर पास ही  फूलों की पंखुरी से सजे थाल की ओर संकेत करते हुए कहा -`` अब वर महोदय इस पात्र से थोड़ी थोड़ी पंखुरी सीधे हाथ से लेकर सात बार कन्या की मांग में  भरें |`` जब जलज ने मांग भर दी तो पंडित जी बोले-`` अब वर कन्या दोनों खड़े होकर अपनी आँखें बंद कर अपने अपने देवी देवताओं का पूर्ण एकाग्र चित्त होकर दो  मिनट स्मरण कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें  और अपने विवाह के निर्विघ्न प्रसन्न वातावरण में  सम्पन्न होने के लिए उन्हें धन्यवाद दें |``                                    कुछ देर बाद जब दोनों ने आँखें खोली तो पंडित जी ने काजल से बैठने का संकेत करते हुए पूछा -``देवी ! क्या आपको शांति पाठ याद है ? या यह भी हम अकेले ही करें ?``                                                                     `` नहीं , पंडित जी , इसमें तो मैं आपका पूरा साथ दूंगी |``                                                ओम दयो: शांतिरन्तरिक्षम शांति पृथ्वी शान्ति राप:  शान्ति: रोशधय:स हन्ति | वनस्पतय: शांति: विश्व देवा: शांति: ब्रम्ह शान्ति: सर्वगुइशान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि || ओम शान्ति शान्ति शान्ति ||      शान्ति पाठ के बाद पंडित जी काजल के सर पर आशीर्वाद स्वरूप अपना हाथ रख कर खड़े होते हुए बोले -`` अब वर कन्यां का विवाह हर विधि विधान से सम्पन्न हुआ | अब आप दोनों अपने निवास पर जा सकते है और पति पत्नी के रूप में अपना दाम्पत्य जीवन प्रारम्भ कर सकते हैं |``                                           इस पर काजल ने तुरंत पंडित जी को टोकते हुए कहा -`` माननीय महोदय ! कन्या होने के कारण मुझे वैसे तो कुछ कहने का अधिकार नहीं है और दूसरे विवाह अनुष्ठान प्रारम्भ होने से पूर्व मैंने आपको यह वचन भी दिया था कि मैं न तो अनुष्ठान के मध्य कोई प्रश्न पूछूगी न आपके किसी आदेश की अवहेलना करूंगी | पर क्योंकि अब आपके अनुसार अनुष्ठान समाप्त हो गया है और एक बहुत आवश्यक रस्म जिसके बिना सनातन धर्म में हर विवाह अपूर्ण कहलाता है , वह होने से रह गई है इसलिए मुझे कहना पड़ रहा है | माननीय ! सर्व गुण सम्पन्न वर महोदय ने मेरी मांग में सौभाग्य का चिन्ह सिन्दूर तो भर दिया पर उनके किसी सम्बन्धी के द्वारा अभी तक  मेरे पैरों में बिछुए नहीं पहनाये गये हैं | फिर यह विवाह पूर्ण रूप से सम्पन्न कैसे कहा जा सकता है | मेरे तो दोनों पैर ही अभी सूने हैं | मैं  सबके सामने अपने को पूर्ण सुहागिन कैसे कह पाऊँगी | कृपया मेरे पैरों में बिछुए पहनवाने की तो अनुकम्पा कीजिये |``                                                                     काजल की बात सुनकर पंडित जी बोले -`` देवी आप बिलकुल ठीक कह रही हैं | यह बिछुए वाली रस्म तो वास्तव में हमसे छूट गई | पर चलिए वह हम अभी पूर्ण कराए देते हैं |`` इसके बाद उन्होंने देवी के श्रृंगार वाले  डब्बे से कलावे की एक गुच्छी निकाली और फिर जल्दी से उसे उंगली पर लिपेट कर चार छल्ले बनाने के बाद उन्हें काजल को देते हुए बोले-`` देवी ! बिछुए तो वैसे बुआ पहनाती हैं , पर आज न तो वह यहाँ हैं , न आपका अन्य कोई सम्बन्धी | इसलिए यह हर अनुष्ठान में प्रयुक्त होने वाली वस्तु से निर्मित  पावन बिछुए आप देवी माँ की प्रतिमा के सम्मुख बैठ कर  स्वयं धारण कर लीजिये | फिर देखिये आपके इन सुहाग के प्रतीक बिछुओं पर सदा ही  माँ दुर्गा की कृपा रहेगी और कभी किसी की बुरी द्रष्टि आपको छू तक नहीं पायेगी |``  

 बिछुए लेकर काजल पंडित जी से बोली -`` मान्यवर ! बिछुओं जैसा पवित्र व सुहाग का अप्रतिम  अलंकरण , जिसकी रक्षा के लिए मुझे अब अपना सारा जीवन , सुख चैन समर्पित करना है | क्या उसे इस तरह केवल एक औपचारिकता निभाते हुए स्वयं धारण करना आपकी दृष्टि में उचित होगा | महोदय यह सच है कि इस समय यहाँ मेरे माता पिता या  कोई सम्बन्धी  नहीं है | किन्तु फिर भी मैं बहुत विशवास के साथ यह कह रही हूँ कि प्रभु की कृपा व परम सौभाग्य से यहाँ मेरे एक ऐसे सम्बन्धी विद्यमान हैं जो केवल मेरे ही नहीं मेरे समस्त परिवार के सर्वाधिक माननीय व पूज्य हैं | जिनकी तो पैरों की धूल भी मेरे लिए चन्दन से अधिक पवित्र है | जो मेरा भविष्य , मेरे ओठों की हंसी , मेरा जन्म जन्म का सपना हैं | सच कहूं पंडित जी - भगवान के बाद वह मेरे सबसे बड़े आराध्य हैं | क्या आप मुझे उनसे ये बिछुए नहीं पहनवा सकते | उनके पहनाने से तो मेरे इन बिछुओं का महत्व और दुगना चौगुना बढ़ जायेगा |``                                      काजल की बात सुन कर जलज ने मुस्कुराते हुए बिछुए उसके हाथ से ले लिए | पर वह अभी बस उसके एक पैर में ही उन्हें पहनाने जा रहा था कि तभी बराबर के कमरे में अखिल की नींद खुल गई  और अँधेरा होने के कारण वह जोर जोर से काजल को पुकारने लगा | जिससे वह तुरन्त  जल्दी से उठ कर भागती हुई उसके पास चली गई |aअखिल नींद में आँख बंद किये पलंग पर बैठा उसे आवाज दे रहा था | वह जाते ही उसे जोर से चिपटा कर उसके पास रजाई में लेट गई | कुछ देर बाद जब वह फिर गहरी नींद में सो गया तो वह दुबारा जब अपने विवाह वाले कमरे में आई  तो जलज डबल बैड पर दो तकिये लगाये रजाई में पैर फैलाकर बैठा मेज पर रखी  नाश्ते की बची नमकीन खा रहा था | वह भी उसके पास जाकर बराबर बैठ गई और उसके हाथ से ले ले कर नमकीन खाने लगी | पर कुछ देर बाद जब जलज को उसके बराबर बैठ जाने के कारण मेज से नमकीन लेने में असुविधा होने लगी तो वह काजल से बोला -`` लगता है कि आप  तो अभी से पंडित जी की सारी बातें भूल गई | उन्होंने हमेशा पत्नी को पति के बाएं अंग बैठने के लिए कहा था और आप सीधी तरफआ के बैठ गई |`` 
     काजल हंसती हुई उठ कर उसके बाईं तरफ आ गई और रजाई ओढ़ते हुए बोली -`` अभी नई नई शादी हुई है ना | इसलिए मैं जरा भूल सी गई थी | पर विशवास रखिये आगे से अवश्य याद रखूँगी |``इस पर जलज ने उसे तुरंत हल्का सा चिपटते हुए कहा -`` पर मुझे मत भूल जाइए | वरना में तो बिलकुल अधूरा रह जाऊंगा | अब आप मेरी अर्धांगिनी हैं ना | यानी आधा जलज |``                                           काजल बोली-`` आपको तो अब एक पल भी भूलना सम्भव नहीं है | आज आपने जितनी सारी खुशियाँ मुझे दी है और जीवन में अदभुत  मिठास घोली  है , वह क्या कभी भूली जा सकती है | सच इन कपड़ों में दुर्गा मन्दिर जाना व आपका ये विवाह का सरस रूपक तो  मेरे लिए हमेशा एक aअभूतपूर्व  यादगार बना  रहेंगा |``                                                          कुछ देर  बाद जब हवनकुंड की अग्नि बिलकुल शांत हो गई और धीरे धीरे कमरे का तापमान कम होने लगा तो काजल जलज से बोली -`` आप लेटिये | मैं एक बार ज़रा अखिल को देख आऊँ कि कहीं वह बिना रजाई के तो नहीं पड़ा है | और थोड़ा सा पानी भी पीकर आऊँगी | बहुत तेज प्यास लग रही है | क्या आप भी पियेंगे |``            जलज ने कहा-`` क्या कुछ खाने के लिए नहीं है | हल्की सी भूख लग रही है |``             अखिल गहरी नींद में सो रहा था | उसने पहले तो दो पल उसके पास लेट कर उसका सिर सहलाया फिर उसे ठीक से रजाई उढाने के बाद एक गिलास दूध   व्  पेटीज लेकर जलज के पास आ गई | वह कुछ थका सा आँख बंद किये लेटा  था                              काजल ने उससे खड़े खड़े ही पूछा -`` क्या नींद आ रही है | मैं ये दूध व पेटीज लाई  हूँ | इन्हें लेकर सो जाइये | पेट भरा होगा तो  फिर अच्छी नींद आयेगी |``               जलज कुछ ऊपर खिसक कर दूध का गिलास लेते हुए बोला-``नहीं नींद तो नहीं आ रही पर थकन  बहुत लग रही है | आज बिलकुल आराम नहीं किया ना |`                           काजल ने कहा -`` थकन तो आपको इन कपड़ों के कारण भी लग  रही होगी | मेरा विचार है अब आप भी इन्हें बदल लीजिये और मैं भी बदले लेती हूँ | फिर आराम से लेट कर बातें करेंगे |``                                                                    जलज बड़ी विनती करता हुआ सा बोला -`` प्लीज मेरे सो जाने के बाद बदल लेना | अभी बस थोड़ी सी देर और रुक जाओ |``                                                          `` चलिए मैं नहीं बदल रही | पर आप तो बदल लीजिये | इतने कसे कपड़े पहन कर बदन को  कैसे आराम मिलेगा |``                                                                        पेटीज व दूध दोनों समाप्त हो गये थे | जलज  काजल को खाली गिलास देते हुए बोला -`` प्लीज अभी मुझे ऐसे ही  रहने दो ना | मैं कह तो रहा हूँ मैं बदल लूँगा |``                                 खाली गिलास लेकर काजल हंसते हुए बोली -`` आपने सारा दूध अकेले पी लिया | मुझे जरा सा भी नहीं छोड़ा | मान्यवर आज हमारी शादी की पहली रात है | आज के दिन पति पत्नी साथ साथ  एक गिलास में दूध पीते हैं , पत्नी अपने हाथ से पति को खाना खिलाती है और पति पत्नी को | आपने तो पेटीज भी अकेले अकेले ही खाली | कहते हैं आज के दिन एक दूसरे का जूठा खाने से प्यार बढ़ता है, अपनापन जनमता है ,आसक्ति पनपती है , और सबसे बड़ी बात एक दूसरे के लिए समर्पित होकर जीने की भावना जगती है  | पर आपने तो सब  समाप्त कर दिया |`` 
  जलज तुरन्त अपने दोनों कान पकड़ कर कुछ लज्जित होता हुआ सा बोला-`` साँरी , मुझे बिलकुल याद नहीं रहा | मेरी भी तो आपकी तरह आज नई नई शादी हुई है ना | अब आगे से अवश्य इन बातों का ध्यान रखूंगा |``                                                    काजल तुरन्त गिलास मेज पर रख कर उसके पास बैड पर पहुंच गई और उसके दोनों हाथ कानों से अलग करके उससे बोली -`` आप मेरे सामने कान पकड़ेंगे | मैं तो आपसे वैसे ही मजाक कर रही थी | प्लीज आगे से कभी ऐसा मत कीजिये |`'                                            इसके बाद उसने ऐसे ही लेटे लेटे  जलज की शेरवानी के बटन खोल कर उसे धीरे से उतार दिया और फिर उसे बिस्तर पर लिटाते हुए बोली-`` अब आप बस एक अच्छे इंसान की तरह चुप चाप सो जाइये | हमें कल कार्य क्रम भी तो करना है | सोयेंगे नहीं तो सुबह समय से कैसे उठेंगे ``|                                                कुछ देर बाद जब वह सो गया तो उसने फिर जल्दी से  पहले तो अपने वस्त्र आभूषण उतार कर बोस साहब के बाक्स में रखे और फिर  सारा अस्त व्यस्त कमरा पहले की तरह स्वच्छ व व्यवस्थित करके दूसरे कमरे में अखिल के पास जाकर सो गई |                          अगले दिन सुबह ११ बजे कार्य क्रम था | जिसे समाप्त कर सब तीन बजे अपने घर के लिए चल दिए | जलज जब अपने पार्टी कार्यालय पहुंचा तो वहाँ सब बड़ी बेचेनी से उसका इन्तजार कर रहे थे | हाई कमान ने उसे आगामी चुनाव में विधायक का चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी चुना था और दो माह में बीस हजार रूपये कार्यालय में जमा करने को कहा था | इतनी छोटी आयु में टिकिट मिलना वैसे तो उसके लिए अत्यंत गर्व की बात थी | पर इतने कम समय में बीस हजार रूपये एकत्र करना भी उसके लिए एक बड़ी चुनोती से कम नहीं था |                                                                                  एक सप्ताह सारे दिन घूमने पर भी जब उसे चंदा एकत्र करने व लोगों को पार्टी का सदस्य बनाने में विशेष सफलता नहीं मिली तो उसने अपनी सारी समस्या काजल को बताने का निर्णय किया | काजल बोली -`` मैं आपकी हर सम्भव सहायता करूंगी | अब आप बिलकुल चिंता न करें | अब कल से मैं इस दायित्व को संभालती हूँ |``                                          पर जब वह पहले दिन एक दो गाँवों में सम्पर्क करने गई तो उसे लगा कि जैसे वहाँ सब स्त्री पुरुष उसे बड़ी अजीब अजीब सी दृष्टि से देख रहे हैं | अधिकतर स्त्रियाँ पहले उसकी सूनी मांग ध्यान से देखती हैं , फिर पैरों के बिछुए | कुछ ने तो उस पर ताना भी कस दिया - `` अभी तुम क्वारी ही हो | क्या बुढया कर ब्याह करोगी ?`` उसने सोचा कि अभी तो वह दिन में ही कुछ कार्य कर्ताओं के साथ गाँवों में जा रही है , पर आगे तो उसे जलज के इस सबसे बड़े सपने को पूर्ण करने वाले  महत्व पूर्ण कार्य के लिए  कभी रात को भी  परिस्थितिवश कहीं रुकना पड़ सकता है | अत: किसी भी व्यर्थ की चर्चा व बदनामी से बचने के लिए उसने अगले दिन से ही सिर पर पार्टी की टोपी पहननी शुरू कर दी और बाजार से कुछ बिंदी  व एक सस्ता सा बनावटी मंगल सूत्र और चार बिछुए  खरीद कर अपने पर्स में रख लिए | बस वह फिर जब भी किसी बहुत पिछड़े गाँव या हरिजन बस्ती में जाती या कहीं रात को रुकने की सम्भावना होती तो भ्रमण स्थल पास आते ही गाडी में बैठे बैठे पर्स से निकाल कर उन्हें पहन लेती और फिर उसके बाद जब काम समाप्त कर घर लौटती तो उन्हें फिर उतार कर अपने पर्स में रख लेती |   प्रारम्भ में तो लोगों ने उसकी तरफ अधिक ध्यान नहीं दिया पर जैसे जैसे वह अपनी  सरलता , वाक् पटुता व आत्मीय व्यवहार से लोगों में घुलती मिलती गई वह उससे जुड़ते चले गये | इस तरह उसने बहुत कम दिन में केवल जलज की धन राशि ही एकत्र नहीं कर दी , पार्टी के सदस्यों की संख्या भी पहले से दुगनी कर दी |                                              जलज बहुत खुश था और एक तरह से काजल का बहुत कृतग्य भी | उसने तुरन्त अपने चुनाव कार्य के कारण उसे होने वाले आर्थिक  नुक्सान की भरपाई के लिए प्रयत्न करने प्रारम्भ कर दिए | जिसके कारण उसकी जहां भी  जरा सी जान पहचान थी वहाँ से काजल को योग सिखाने के लिए  निमन्त्रण पत्र आने लगे | वह पहले तो कुछ दिन छोटे भाई अखिल को साथ लेकर आयोजनों में जाती रही पर फिर जब उसकी पढ़ाई पर अधिक असर पड़ने लगा तो उसने जलज को साथ ले जाना प्रारम्भ कर दिया |                     इस पर काजल की माँ ने एक दिन जलज के पिताजी को बुला कर कहा -`` देखिये अब बच्चों की शादी तय हुए दो साल से अधिक होने जा रहे हैं | इनके जरूरत से ज्यादा साथ रहने व अक्सर साथ साथ शहर से बाहर जाने से हम दोनों को ही बदनामी का सामना करना पड़ सकता है | इसलिए अच्छा है कि हम वह दिन देखने से पहले दोनों का विवाह कर दें | जहां तक इनकी मकान की समस्या की बात है , ये दोनों जब तक आपका मकान नहीं बनता है , यहीं मेरे छत वाले कमरों में रह लेंगे |``                            जलज के पिताजी ने कहा -`` आप बिलकुल ठीक कह रही हैं | मैं आज ही पंडित जी से शादी के लिए दिन और कोई शुभ मुहूर्त निकलवाता हूँ |``                           माँ के प्रस्ताव से जलज के पिताजी इतने खुश थे कि घर जाते समय उन्हें जो भी परिचित मार्ग में मिला वह सभी को शादी की खुश खबरी देते चले गये | जिससे दो दिन में ही पार्टी के बड़े नेताओं के पास भी जलज की शादी की सूचना पहुंच गई | उन्होंने तुरंत उसे अपने दफ्तर में बुला लिया और कहा -`` तुम अगर यह शादी करना चाहते हो तो राजनीति तुरंत छोड़ दो | यह शादी करके तुम कभी कोई चुनाव नहीं जीत पाओगे | यहाँ चुनाव व्यक्ति पर नहीं जाति की वोटों पर निर्भर करता है | तुम अगर गैर वर्ग की लडकी से शादी करोगे तो एक भी ठाकुर तुम्हें वोट नहीं देगा | कल तक विचार करके तय करलो कि तुम्हारे लिए ये शादी अधिक महत्वपूर्ण   या यह चुनाव जीतना | जलज ने कहा -`` मैंने देश सेवा के लिए अपना जीवन दान किया है , किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं | यह सच है कि मैं काजल को बहुत पसंद करता हूँ , पर वह मेरे लिए पार्टी से बड़ी नहीं है |’’   इस तरह जलज ने अपने चुनाव को अधिक प्राथमिकता दी और काजल को नकार दिया | पर बात यही समाप्त नहीं हुई | एक पक्ष बाद ही उसे चुनाव में असर जमाने के लिए अपने वरिष्ठ नेताओं के दबाब में नगर के एक प्रभावशाली धनी व्यक्ति की एकमात्र  पुत्री ममता ठाकुर से विवाह भी करना पड़ा | ममता बी.ए पास थी पर अत्यधिक स्थूल शरीर व श्याम वर्ण होने के कारण उसका कहीं अच्छी जगह विवाह नहीं हो पा रहा था | इसलिए पार्टी ने सोचा कि अगर जलज उससे शादी कर लेगा तो उसके पिता  खुल कर चुनाव में पैसा भी खर्च करेंगे और उनके कारण नगर के व्यापारी वर्ग का उसे पूर्ण समर्थन भी प्राप्त हो जाएगा |                                      चुनाव के छ: सप्ताह रह गये थे | प्रचार कार्य चरम सीमा पर था | ममता व उसके पिता पूरे दल बल के साथ जलज के लिए  समर्थन जुटाने में  मन से जुट गये थे | पर जलज को फिर भी जैसा वह सोच रहा था वैसा समर्थन  अपने पक्ष में कहीं दिखाई नहीं दे रहा था | उसे हर पल काजल की सभाओं में उमड़ता जन समूह व् उत्साह भरा समर्थन रह रह कर याद आ रहा था |                                                              कुछ दिन बाद चुनाव का शोर समाप्त हो गया | फिर दो दिन बाद वोट डाले गए | और फिर अंत में उनकी गिनती हुई | जलज दूसरे स्थान पर रहा और कांग्रेस के प्रत्याशी से ८ हजार मतों से हार गया | पर वास्तव में वह केवल चुनाव ही नहीं हारा था अपितु अपनी पूरी जिन्दगी हार गया था | अब उसके पास जीवन में बस तनाव व खालीपन  के अतिरिक्त कुछ नहीं बचा था |                                                                                                समाप्त                         स्वरचित आलोक सिन्हा                                                                           नोट ---टिप्पणी  लिखने का स्थान थोड़ा सा नीचे है |                                                 

 

 

 

 

 

 

 

 

 





 

24 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया और संदेशपरक कहानी है आलोकजी। सादर बधाई।

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  2. बहुत सुंदर कथानक आलोकजी। बधाई!!

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  3. भाई साहब ! बहुत बहुत धन्यवाद आभार |

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  4. आप बहुत-बहुत अच्छा लिखते हैं आदरणीय सिन्हाजी..हर कविता कहानी ज्ञानवर्धक होती है..

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  5. जिज्ञासा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार आपकी इस सुखद टिप्पणी के लिए |

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  6. बहुत ही लाजवाब कथानक।
    शीर्षक कुँआरे बिछुए एकदम सटीक ए्वं पूर्ण।
    बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  7. सुधा जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार सटीक टिप्पणी के लिये

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  8. जलज ने काजल को जो धोखा दिया उसका प्रतिफल तो उसे मिलना ही था। सुंदर प्रस्तुति।

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  9. ज्योति जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  10. बहुत सुन्दर और संदेशपरक कहानी ।

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  11. मीना जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  12. अति महत्वाकांक्षी का ऐसा ही हश्र होता है । अति सुन्दर प्रवाह जो प्रारंभ से अंत तक उत्सुकता को बनाए रखता है । शुभकामनाएँ ।

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    1. अमृता जी सच कहा आपने | बहुत बहुत धन्य्वा आभार |

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  13. कथा अत्यन्त रोचक एवं सराहनीय तो है ही, प्रेरक एवं नेत्र खोल देने वाली भी है । अभिनंदन आलोक जी ।

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  14. जितेन्द्र जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद अच्छी टिप्पणी के लिए |

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  15. अत्यन्त रोचक, सराहनीय,प्रेरक एवं आंख खोल देने वाली रचना माननीय।
    सादर।

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  16. बहुत अच्छी कहानी है आपकी..

    सादर प्रणाम

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  17. विभारती जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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