शनिवार, 19 दिसंबर 2020

कोहरा ( कहानी )

            कोहरा  ( कहानी ) आलोक सिन्हा                                                   

           उस दिन हर तरफ कोहरा ही कोहरा था | सर्दी के कारण स्कूलों की छुट्टियाँ कर दी  गई थीं | सड़कों पर  बस गिने चुने लोग ही दिखाई दे रहे थे | बहुत  पास का भी दिखाई न देने के कारण आकाश पैदल ही अपने वकील साहब के घर जा रहा था | क्योंकि अगले दिन उसके मकान के मुकदमें की तारीख थी | वह जैसे ही गंदा नाला पार करके डिप्टी गंज के मोड़ पर पहुंचा कि अचानक एक मुड़े तुड़े कागज का टुकडा उसके सर पर आकर लगा | जब उसने ऊपर की तरफ देखा तो उसे एक हाथ हिलता हुआ दिखाई दिया | कागज में लिखा था –कृपया मेरी सहायता कीजिये | मैं यहाँ दो दिन से बंद हूँ | मेरा अपहरण किया गया है |                                           आकाश तुरन्त आर्य समाज मन्दिर पहुंचा | अध्यक्ष महाशय शिव लाल उसे द्वार पर ही कुछ लोगों से बात करते हुए मिल गये | आकाश ने उन्हें जैसे ही कागज देकर सारा प्रकरण बताया वह तुरन्त  वहां जितने भी समाज के लोग थे उन्हें अपने साथ लेकर उसके साथ चल दिये | पर जब वह सब निश्चित स्थान पर पहुंचे तो वहां विरोध करने वाला कोई नहीं था | जिससे उन्होंने तुरन्त  पास में स्थित पुलिस चौकी की देख रेख में कमरे का ताला तुड़वा कर बंद लडकी को अपने साथ आर्य समाज मन्दिर ले आये |                                                       लडकी का नाम सपना था | वह एटा की रहने वाली थी | चार वर्ष की अल्प आयु में ही उसके माता पिता की मृत्यु हो गई थी | वह तब से अपने मुह बोले चाचा के पास रह रही थी | जब वह १४ साल की हुई तो उसके चाचा ने उसे दस हजार रूपये लेकर जलेसर के एक तेली को बेच दिया | लेकिन कुछ दिन बाद वह किसी तरह वहां से भाग आई | जब वह बस स्टैंड पर बैठी अपनी मौसी के घर जाने के लिए मैनपुरी की बस का इन्तजार कर रही थी तो दो लडके स्वयं को मैनपुरी का बताकर उसे अपनी गाडी में बिठलाकर अपने एक मित्र के कमरे पर ले गये और वहां उन्होंने उसे कई दिन अपने पास रखा | अब वह ही उसे यहाँ बेचने के उद्देश्य से लेकर आये हैं और उन्होंने ही उसे इस अँधेरे कमरे में बंद कर रखा है |                                               महाशय जी व पुलिस ने सपना की सारी कहानी सुनने के बाद उसे सर्व सम्मति से लखावटी में कार्य रत हिन्दी प्रवक्ता आकाश गर्ग के संरक्षण में भेज दिया | आकाश के परिवार में दो भाई दो बहिन व वृद्ध माँ थी | बड़ी बहिन रमा राजकीय इन्टर कॉलिज में इंगलिश की प्रवक्ता थी | छोटी बहिन क्षमा बी.ए. में पढ़ रही थी और उससे बड़ा  पल्लव किंग जार्ज मेडिकल कॉलिज लखनऊ में एम.बी.बी.एस. कर रहा था | वह इस समय तो दो तीन दिन के लिए घर आया हुआ था पर ज्यादा तर लखनऊ में ही रह कर अपना सारा धयान अपनी पढाई  पर ही केन्द्रित कर रहा था | उसकी बहुत बड़ी इच्छा थी कि  वह आगे भी गत दो वर्षों की तरह ही पूरे विश्व विद्यालय में अधिकतम अंक प्राप्त करे | मकान खूब बड़ा था और किसी बात की कोई कमी नहीं थी |                   सपना अपने व्यवहार और कार्य कुशलता के कारण बहुत शीघ्र रमा क्षमा के साथ घुल मिल गई | एक दिन जब बातों बातों में रमा को यह पता चला की जब उसे बेचा गया था तो तब वह कक्षा नौ में  पढ़ रही थी तो उसने आकाश से उसका व्यक्ति गत परीक्षार्थी के रूप में हाई स्कूल परीक्षा का फॉर्म भरवाने को कहा | आकाश बोला – “ सपना का फॉर्म तो मैं अपने ही कॉलिज से ही भरवा दूंगा पर इसकी जन्म तिथि जाति व पिता के प्रमाणिक नाम के लिए कक्षा आठ उत्तीर्ण करने का प्रमाण पत्र कहाँ से मिलेगा |                                                               रमा ने कहा – मैं अभी सपना से पूछ कर तुम्हें  बताती हूँ |”                             सपना से सब विवरण प्राप्त कर आकाश ने स्थानान्तरण प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए एक आवेदन पत्र तुरन्त सपना से भरवा कर उसके स्कूल भेज दिया | जिससे ३१अगस्त से पहले उसका फॉर्म विधिवत भर कर जमा किया जा सके |                            इसके बाद कुछ महीनों के लिए जैसे सारे घर का पूरी तरह वातावरण ही बदल गया | सबको अलग अलग काम बाँट दिए गये और उनका समय भी निश्चित कर दिया गया | जिससे सपना की पढाई  में कोई व्यवधान उत्पन्न न हो |

      परिषदीय परीक्षाएं ७ मार्च से प्रारम्भ होनी थी | पर २५ फरवरी को उसके कथित चाचा चाची उसे खोजते हुये बुलन्दशहर आ गये | शायद एटा स्कूल के किसी कर्मचारी ने उन्हें बुलंदशहर में उसके द्वारा स्थानान्तरण प्रमाण पत्र मगाये जाने की जानकारी दे दी होगी | अत: उन्होंने आते ही स्वयं को सपना का संरक्षक बताते  हुये उसके गत  कई माह से गुम होने की की प्राथमिक सूचना थाने  में दर्ज करा दी | जिससे पुलिस ने आर्य समाज को उसे दो दिन बाद अदालत में प्रस्तुत करने के लिए समन भेज दिया | सपना समाज के लोगों के सामने बहुत गिड़गिड़ाई , बहुत  रोई कि मुझे उनके साथ मत भेजिये , ये मुझे फिर किसी को बेच देंगे | पर किसी ने उसकी कोई बात नहीं सुनी |                                                            आकाश अगले दिन नयायालय नहीं गया | उससे सपना के आंसू सहे नहीं जा रहे थे | पर चुपचाप सब कुछ देखने के अतिरिक्त उसके पास और कोई चारा भी नहीं था |  न्यायालय में चाचा ने बताया कि सपना की एक दिन अपनी चाची से कुछ कहा सुनी हो गई थी तो यह घर से भाग आई थी | वह अगले दिन से ही उसे शहर शहर ढूढ़ रहे हैं | उन्होंने प्रमाण के रूप में उसके साथ खिचे कुछ छाया चित्र और अभिभावक के रूप में स्कूल के प्रमाण पत्रों में लिखा अपना नाम व घर का पता भी प्रस्तुत किया | सपना ने कई बार हाथ जोड़ कर रोते हुए अदालत से कहा –“ जज साहब ! मैं इनकी भतीजी नहीं हूँ | ये मेरे असली चाचा चाची नहीं हैं | पापा मम्मी की मृत्यु के बाद ये मुझे अपने साथ ले आये थे | ये  मुझे एक बार बेच चुके हैं | अब ये मुझे फिर बेच देंगे | आप मुझे कहीं भी भेज दीजिये | पर इनके साथ मत भेजिए | पर अदालत ने नाबालिग मानते हुए प्रस्तुत सबूतों के आधार पर उसे चाचा चाची को ही सौंप दिया |                                                       सपना के अचानक चले जाने के बाद आकाश के घर का वातावरण कई दिन बड़ा शान्त शान्त सा रहा | सपना पिछले सात आठ महीने से बहुत खुशी खुशी उनके बीच रह रही थी | घर से जाते समय वाला उसका रोता बिलखता चेहरा किसी से एक पल भुलाया नहीं जा रहा था | इसके एक सप्ताह बाद जब बोर्ड की परीक्षाएं प्रारम्भ हुई तब जाकर सब कुछ व्यस्त हो जाने के कारण थोडा सा सामान्य हो पाये |                                   इसके बाद समय अपनी गति से बीतता गया | रमा का मेरठ स्थानान्तरण हो गया , क्षमा एम. ए . करने के बाद पी. एच. डी. करने में जुट गई और आकाश अस्वस्थ प्रधानाचार्य के समय से पूर्व सेवा निवृति ले लेने के कारण प्रधानाचार्य के पद पर आसीन हो गया |                          पल्लव का एम. बी. बी.एस करने के बाद अपनी एम.डी. की पढाई पूर्ण करने का यह अंतिम वर्ष था | पढाई पर अधिक धयान देने से उसका शरीर दिन पर दिन स्थूल होने व पेट बढ जाने के कारण वह प्रति दिन सुबह जौगिंग कर रहा था | उस दिन जब वह सुबह सोकर उठा तो चारों तरफ कोहरा ही कोहरा घिरा था | पर उसने तय किया कि वह आज भी अपना नियम नहीं तोड़ेगा | इसके बाद वह अच्छी तरह गर्म कपडे पहन कर धीरे धीरे दौड़ता हुआ हाथी पार्क पहुँच कर एक बैंच पर कुछ देर आराम करने बैठ गया |                  कुछ क्षण बाद एक लड़की गर्म कपड़ों से पूरे तरह ढकी , ठंड से सिकुड़ती हुई उसके बराबर आकर बैठ गई और बोली – “ आज तो वाकई बहुत ठंड है |” जब पल्लव ने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया तो उसने फिर उसकी ओर देखते हुए कहा –“ क्या आपको नहीं लगता कि आज और दिनों की अपेक्षा कुछ अधिक ठंड है |” पल्लव शिष्टाचार वश बोला –“ हाँ , आप ठीक कह रही हैं | मुझे जितनी ठंड आज महसूस हो रही है , उतनी इससे पहले कभी नहीं हुई |” महिला ने पूछा –“ क्या आप जॉगिंग के लिए इधर पह्ल्री बार आये हैं ?  आज से पहले मैंने कभी आपको यहाँ नहीं देखा |"                            पल्लव बोला –“ आप सही कह रही हैं | आज ठण्ड व कोहरा कुछ अधिक होने के कारण मैं पहली बार इधर आया हूँ | क्या आप भी यहाँ रोज जॉगिंग करती हैं ?"                                                       महिला ने कहा –“ मैं जॉगिंग तो नाम मात्र को ही करती हूँ , पर घर पास ही चार कदम पर होने के कारण मन बहलाने अवश्य यहाँ अक्सर आ जाती हूँ |” पल्लव बोला –“ अच्छा आप इसी लोकेलिटी में रहती हैं |”             महिला ने कहा –“ हाँ ,  चलिए मैं आपको अपना घर दिखा दूं | कभी बारिश या  कोई और परेशानी हो तो आप नि:संकोच मेरे घर आ सकते हैं | मुझे पूरा विश्वास है कि वहां आपको हमेशा अपना ही घर जैसा लगेगा | उठिए , एक कप चाय साथ साथ पीते हैं | आपकी भी कुछ सर्दी कम हो जायेगी और मेरा भी कुछ देर  आपसे बातें  करके वक्त कट जायेगा |” पल्लव ने पहले तो काफी मना  किया पर जब वह कुछ अधिक आग्रह करने लगी तो वह उसके साथ चलने को तैयार हो गया |                                            घर बहुत बड़ा नहीं था | मध्यम श्रेणी के तीन कमरे थे | जिनमें दो कमरों को शयन कक्ष बनाया गया था और एक को अतिथि कक्ष | पल्लव को अतिथि कक्ष में सोफे पर आदर से बिठलाने के बाद जब वह चाय बनाने के लिए रसोई की तरफ जाने लगी तो पल्लव ने उससे पूछा –“ कृपया अपना नाम तो बताइए | मैं किस नाम से आपको सम्बोधित करूँ |”                                “ मेरा नाम सुमन है |” उसने कुछ मुस्कुराते हुए कहा –“ मैं  नहीं जानती कि आप मुझसे बड़े हैं या छोटे | पर आप मेरा नाम ही लीजिये | वैसे आपको इतने सारे कपड़ों से ढके होने पर भी ऊपर से देख कर मुझे बिलकुल नहीं लगता कि मैं आपसे बड़ी हो सकती हूँ |"                          “ क्या आप इस घर में अकेली ही रहती हैं |” पल्लव ने कुछ आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा –“ क्या और कोई आपके साथ यहाँ नहीं रहता ?"               सुमन बोली – “ माँ रहती हैं | पर आज वह एक शादी में गई हैं | इसलिए मैं अकेली ही हूँ | मैं उनसे आपको फिर किसी और दिन मिलवा दूंगी |” इसके बाद वह जल्दी से रसोई की तरफ चली गई | पल्लव मेज पर पड़ी एक पुरानी फ़िल्म पत्रिका के पृष्ट उलट कर समय काटने लगा | कुछ देर बाद जब वह कमरे में आई तो उसका सारा रूप ही बदला हुआ था | उसने अपना पूरा चेहरा एक गुलाबी रंग की चुन्नी से दुल्हन की तरह लम्बा घूँघट दाल कर ढक  रखा था और हाथों में नीले रंग की एक सुन्दर सी ट्रे लिए हुए थी | जिसमें एक वाइन की बोतल , नमकीन व दो कांच के गिलास रखे थे | शलवार कुर्ता व सारा शरीर ढकने वाले ओवर कोट व शाल को उतार कर उसकी जगह एक बहुत ही झीने पार दर्शी कपड़े की मैक्सी पहन रखी थी जो ऊपर से नीचे तक आगे से पूरी खुली थी | पल्लव उसके इस अप्रत्याशित रूप को देख कर एक साथ हतप्रभ सा होकर खड़ा हो गया |                             सुमन  वाइन की बोतल व् नमकीन की प्लेट मेज पर रख कर उससे बैठने का संकेत करते हुए बोली –“ इस तेज सर्दी में चाय से पहले अगर आप एक आध पैग ले लेंगे तो आपकी सब ठंड दूर हो जायेगी |”                     पल्लव उसके रंग ढंग देख कर एक पल अपने पर अंकुश नहीं रख सका और उसके गाल पर एक जोर दार तमाचा जड़ने के बाद उससे बोला – “ आप ये ही चाय पिलाने के लिए मुझे यहाँ लाई थीं | तुरन्त ये ट्रे उठाइये और अपने कपड़े बदल कर आइये | मुझे लगता है कि मैं यहाँ किसी गलत जगह आ गया हूँ | मुझे यहाँ से तुरन्त चलना चाहिए |”                                              पल्लव जैसे ही चलने के लिए आगे बढ़ा तो वह एक साथ नीचे बैठ कर उसके पैरों से लिपट गई और गिड़गिड़ाते हुए बोली –“ कृपया ऐसे मत जाइए | मेरे पास चार पांच दिन से एक भी पैसा नहीं है | मैं पिछले कई महीने से  बहुत बीमार हूँ और लाभ होने पर भी होम्योपैथी की सस्ती दवाएं तक नहीं खरीद पा रही हूँ | पैसों की कमी के कारण ही घर में दूध नहीं था तो मैं आपके लिए ये वाइन ले आई थी | प्लीज मुझे माफ कर दीजिये |"                                                               “ अच्छा पहले ये कपड़े बदल कर आओ , फिर बात करना | ``            “ आप जायेंगे तो नहीं | प्लीज मेरा दुःख सुने बिना मत जाइए | अगर आपने मेरी सहायता नहीं की तो मैं शायद एक दो दिन से जयादा जीवित नहीं रह पाऊँगी |”                                                       “ मैंने कहा ना , पहले ये कपड़े बदल कर आओ |”                                          “ मैं आपसे अब कुछ भी नहीं छिपाऊंगी | मैं आपको झूठ बोलकर यहाँ लेकर आई थी | मेरा कोई परिवार नहीं है | मेरी कोई माँ नहीं है | मैं  तो बस कुछ धनी लोगों का एक खिलौना मात्र हूँ | जो जब चाहते हैं , जैसे ठीक समझते हैं , मेरे शरीर से खेलने आ जाते हैं | बस उन्हें हर तरह सुख व् संतुष्टि देना ही मेरा धर्म है | उसके बदले वो मुझे जीवित रहने के लिए थोड़े से पैसे दे देते हैं | पर अब मैं जब से बीमार पड़ी हूँ , कोई मेरे पास नहीं आता | कोई मुझे दवाओं तक के लिए पैसे नहीं देता | अब आप ही मुझे बताइए कि मैं क्या करूँ , किससे सहारा मागूं |” नीचे बैठ कर पैर पकडे पकडे जब उसने कई बार रोते हुए ऊपर पल्लव की ओर देखा तो उसकी मुख ढकने वाली चुन्नी फिसल कर नीचे गिर गई | जिससे उसका पूरा चेहरा स्पष्ट दिखाई देने लगा | अब पल्लव बिलकुल स्तब्ध खड़ा था | पूरी तरह मौन , गुमसुम | फिर कुछ पल चुप रहने के बाद वह धीरे से उसके दोनों कंधे पकड कर उसे ऊपर उठाते हुए बोला –“ तुम सपना | यहाँ इस रूप में |"              सुमन  अपना पुराना नाम सुन कर भौंचक रह गई | पल्लव के कनटोप व मफलर से पूरी तरह ढके हुए चेहरे को धयान से देखने के बाद बोली – “ छोटे भैया आप | सच इतने कपड़ों से ढके होने के कारण मैं आपको बिलकुल नहीं पहचान पाई | प्लीज मुझे माफ कर दीजिये |”                       “ अच्छा पहले ये ट्रे उठाओ और अन्दर जाकर अपने कपड़े बदल कर आओ , फिर बात करते हैं |"                                               कपडे बदलने के बाद सपना पल्लव के पास पड़े एकल सोफे पर आकर बैठ गई | फिर कुछ देर  चुप रहने के बाद बोली –“ भैया ! कृपया मुझे माफ कर दीजिये | सच मैं बिलकुल नहीं समझ पा रही हूँ कि आपके परिवार में इतने दिन रहने के बाद भी मुझसे आपको न पहचान पाने की इतनी बड़ी भूल कैसे हो गई |"                                                                “ अब ये सब बातें छोडो | पहचान तो मैं भी तुम्हें नहीं पाया | फिर जब तुम घर आई  थी तो मैं तब बस दो तीन दिन ही तो तुम्हारे साथ रहा था | हमने एक दूसरे को ठीक से देखा ही कितना था |  पर अब मुझे यह बताओ कि तुम यहाँ आई कैसे ? तुम तो तब अपने चाचा के साथ अपने गाँव गई थी |”                                                         “हाँ ,आप ठीक कह रहे हैं | पर मैं जैसा डर वहां सबके सामने जता रही थी , वही मेरे साथ हुआ | बस एक महीने बाद ही मेरा फिर सौदा कर दिया गया | इस बार मैं पेशा कराने वाले दबंगों को बेची गई | उन्होंने मुझ पर कड़ा पहरा बिठला दिया | मुझसे दिन रात अपना काम कराया | पर मैं उनकी पिटाई के डर से उफ नहीं कर सकती थी | पर अब जब मैं कई गम्भीर बीमारियों से घिर गई हूँ तो सब मुझे अकेला छोड़ कर चले गये हैं | अब न किसी को मेरे कही भाग जाने का डर है , न जरा सी मेरे मर जाने की चिता | मेरे पास चार पांच दिन से एक भी पैसा नहीं है | मैं पिछले तीन चार महीने से बीमार हूँ और दवाएं तो क्या खाने के लिए भी अब बाजार से कुछ नहीं ला पा रही हूँ |"                                                               “तो क्या तुम वास्तव में इस पेशे से थक गई हो और इसे छोड़ना चाहती हो |” पल्लव ने कुछ गम्भीर होकर पूछा | “ मैंने सुना है , जो एक बार इस पेशे में आ जाता है , वह फिर उम्र भर के लिए बस इसी का होकर रह जाता है |"                                                       “ वह केवल बदनामी के कारण |”  सुमन ने कुछ निराशा भरे स्वर में कहा –“ क्योंकि समाज उसे स्वीकार नहीं करता | ताने देता है | नफरत करता है | आस पास बसने की भी उसे अनुमति नहीं देता | तो फिर आप ही बताइए उसके सामने कौन सा विकल्प शेष बचता है | यदि जीना है तो धंधा  करो या फिर किसी नदी में डूब कर मर जाओ | अधिक तर  लडकियाँ पहले विकल्प को प्राथमिकता देती हैं | इसलिए यह सामाजिक कोढ़ का रोग निरंतर फलता फूलता चला आ रहा है और मजे की बात यह है कि पुरुष ही तो लड़कियों को उनके घर से उठा कर या पैसों से खरीद कर इस धंधे में धकेलते हैं और फिर वह ही उन्हें कुलटा  , कुलक्षणी  और न जाने कैसे कैसे विशेषण प्रदान करते हैं | पर उन्हें कोई कुछ नहीं कहता | उन्हें समाज भी कभी कोई नाम नहीं देता | अगर निर्बल मजबूर लडकियाँ अपराधी हैं तो समर्थ पुरुष क्यों नहीं हैं |’`                 पल्लव बोला –“ अगर तुम वास्तव में इस प्रकरण को लेकर इतनी अधिक गम्भीर हो तो मैं तुम्हारी सहायता करने को तैयार हूँ | वैसे निवास व इलाज के खर्च को छोड़ कर तुम कितने रूपये में अपना काम चला सकती हो |”                                                       “ मेरा अनुमान है शायद चार पांच सौ में आराम से काम चल जायेगा | क्योंकि मुझे करना ही क्या है | बस खाना , चाय और रोज के कपड़े धोने के लिए साबुन ही तो चाहिए |"                                                     “ तो ठीक है | मैं एक दो दिन में पहले तुम्हारे कही अन्यत्र रहने का प्रबन्ध करता हूँ | फिर किसी अच्छी महिला होम्योपैथ को तुम्हें दिखा दूंगा | फिर जब तुम ठीक हो जाओ तो धीरे धीरे सिलाई , कढाई , मोमबत्ती बनाना , मसाज करना जैसा कोई काम सीखना शुरू कर देना | बस उसके बाद मैं समझता हूँ तुम्हारी सब परेशानियाँ स्वयं हल हो जायेंगी | और हाँ गंदे लोगों की पहचान से बचने के लिए आज से अपने सुमन , सपना दोनों नाम बदल दो और कलपी बन जाओ | ”                                                   इसके दो दिन बाद उसने उसे अपने मित्र धीरज के घर की छत पर एक कमरा किराये पर दिला दिया और परामर्श देते हुए कहा –“ देखो  यहाँ से तुम बहुत आवश्यकता होने पर ही बाहर जाना और अगर मजबूरी में कभी बाहर निकलना ही पड़े तो मुंह ढक कर या अपना बुर्का पहन कर ही जाना | बस ये सोच लो कि यहाँ तुम मेरे ही परिवार में रह रही हो और प्लीज कोई ऐसा कदम मत उठा देना जिससे फिर तुम्हारी जगह मुझे आत्म करने को बाध्य होना पड़े |”                                                                   “ आप कैसी बात कर रहे हैं |“ कलपी ने तुरन्त पल्लव की बात काटते हुए कहा –“ आप मुझ पर पूरा भरोसा रखिये | मैं खुद को समाप्त कर लूंगी पर आप पर ज़रा सी आंच नहीं आने दूंगी | यह आपसे आज की कलपी व पुरानी सपना दोनों का वादा है | छोटे भैया मैंने एक असहाय कमजोर लड़की होने के कारण मजबूरी में अपना शरीर अवश्य बेचा है पर अभी मेरी आत्मा नहीं मरी है |"                                                   धीरज के घर पहुँच कर दो दिन तो कलपी अपना नया कमरा व्यवस्थित करने में ही लगी रही | फिर अगले  दिन सबसे आँख बचाकर धीरज की छोटी बहिन सीमा को संकेत से पास बुलाकर उससे धीरे से बोली –“ क्या यहाँ आस पास कोई होम्योपैथी की महिला डॉक्टर हैं ?” सीमा ने कहा –“ जी , यहीं तीन चार मकान छोड़ कर अपनी ही गली में एक लेडी डॉक्टर हैं | आप जब भी कहेंगी , मैं आपको उनके पास ले चलूंगी |” कनकी ने पूछा –“ क्या इस समय आप खाली हैं ?” “ हाँ हाँ , चलिए | डा. राधा आंटी बिलकुल पास ही में तो हैं |”   इसके कुछ दिन बाद जब उसे अपनी तबियत कुछ ठीक सी लगी तो वह एक दिन सवेरे सवेरे बड़े संकोच के साथ रसोई में खाना पका रही धीरज की माँ के पास जाकर बोली –“ माँ ! यहीं पास ही गली में एक पार्लर की दुकान है , क्या मैं वहां कुछ देर के लिए चली जाऊं ? माँ , मुझे पार्लर का काम थोडा सा तो पहले से आता है | पर अभी अपने ऊपर पूरा भरोसा नहीं है | कुछ दिन अगर मैं किसी अनुभवी पार्लर के साथ काम कर लूंगी तो मुझमें आत्म विश्वास आ जायेगा |”                                        माँ ने कहा – “ हाँ , बेटी हो आओ | दीपा अपनी पुरानी जान पहचान की है और बहुत अच्छी इन्सान है | वह तुम्हारी पूरी सहायता करेगी | उसे जाते ही बता देना कि तुम धीरज के मकान  में अभी नई नई आई हो |” कलपी जैसे ही वहां जाने के लिए मुड़ी कि तभी सीमा कमरे के अन्दर से तेज आवाज में बोली – “ दीदी ,  बस एक मिनट रुक जाइए | दीपा आंटी के पास तो मुझे भी जाना है | मेरे बाल बहुत छोटे बड़े हो गये हैं , जरा उन्हें ठीक कराऊंगी |”                                                        इसके बाद कलपी धीरज के परिवार में दिन पर दिन घुलती मिलती चली गई | बस जब भी खाली होती धीरज की माँ के पास जाकर बैठ जाती | वह जवे तोड़ रही होतीं तो उनके जवे तुडवाने लगती | वह अगर सिलाई  कर रही होती तो उन्हें हटा कर स्वयं मशीन पर कपडे सिलने बैठ जाती | कहती – माँ मुझे भी तो मशीन चलानी आनी चाहिए |”                                           पल्लव ने कलपी से पाँच सौ रुपये देने का वादा तो कर लिया था पर एक बार देने के बाद वह अब यह नहीं समझ पा रहा था कि आगे इतने रुपयों की व्यवस्था कैसे करे | क्योंकि घर से तो उसे अपने खर्च के लिए हर माह केवल एक हजार रुपये ही मिलते थे | यदि वह उनमें से ५०० कलपी को दे देगा तो अपना काम कैसे चलायेगा | इसलिए पहले तो उसने कई कोचिंग सेंटरों व अस्पतालों से सम्पर्क किया पर जब कही कुछ बात नहीं बनी तो उसने बच्चों के दो ट्यूशन कर लिए | पर इससे उसकी सुबह ५ बजे से रात ८ तक  दिन चर्या इतनी व्यस्त हो गई कि उसके पास अपने लिए कोई समय ही नहीं बचा | यहाँ तक कि वह जो हर सप्ताह अपनी कुशल क्षेम का पत्र घर लिखा करता था वह भी कई बार सोचने पर बहुत  दिन से नहीं लिख पाया | जिससे उसकी माँ और धीरज चिंता में पड़ गये | धीरज ने तो घबराहट में अपने एक लखनऊ के मित्र को उसके विषय में विस्तृत जानकारी देने के लिए पत्र तक लिख दिया कि वह तुरन्त ये पता लगाये कि पल्लव घर पत्र क्यों नहीं लिख पा रहा है | कहीं उसे कुछ समस्या तो नहीं है |                        छ: दिन बाद जब आकाश को अपने मित्र से पल्लव के विषय में जो जानकारी मिली वह उसे पढ़ कर हत प्रभ रह गया | मित्र ने उसे बताया कि पल्लव का इन दिनों किसी लड़की के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा है | वह लड़की की सहायता करने के लिए कई ट्यूशन करने के कारण इतना वयस्त हो गया है कि न अपनी पढाई  पर पूरा ध्यान दे रहा है न कही आ जा रहा है | वह  लड़की कौन है , इसका अभी पता नहीं चल पाया है |                                आकाश अगले दिन ही लखनऊ पहुँच गया | उसने पहले पल्लव से सब कुछ सीधे न पूछ कर उसके मित्रों से बात करने का निश्चय किया | जिससे सच्चाई का गहराई से पता चल सके | पल्लव के साथियों ने उसे बताया कि वह धीरज के बहुत अधिक निकट है अगर वो उससे उसके बारे में पूछेंगे तो वह दो पल  में सब कुछ बता देगा | वैसे हम पिछले कुछ दिन से यह अवश्य देख रहे हैं कि वह किसी बात को लेकर काफी परेशान है | कमरे पर भी खाली समय में बहुत कम रुकता है |                                             धीरज लखनऊ का स्थानीय निवासी था | उसके व आकाश के पिता काफी अच्छे मित्र थे | उनकी मृत्यु के बाद भी दोनों परिवारों  के बच्चों में सौहार्द पूर्ण सम्बन्ध ज्यों के त्यों चले आ रहे थे | आकाश जैसे ही धीरज के घर की गली में पहुँच कर धीरे धीरे आगे बढ़ा कि उसे कुछ दूर से एक महिला बुर्का पहने उसके द्वार से बाहर निकलती हुई दिखाई दी | वह यह सोच ही रहा था कि यह मुस्लिम महिला धीरज के घर क्या करने आई होगी कि तभी वह उसके पास आकर अपना नकाब उठाते हुए उससे बोली –“ बड़े भैया ! आप यहाँ कैसे ?”                                                   “ अरे सपना तुम “ आकाश ने बड़े विस्मय के साथ पूछा – “ क्या तुम यहाँ धीरज के घर में रह रही हो ?”                                           “ जी “ सपना ने हलका सा मुस्कुराते हुए कहा – “ यहाँ पल्लव भैया मुझे इलाज कराने के लिए छोड़ गये थे | दरअसल बड़े भैया आपसे अलग होने के बाद मैं जैसा कह रही थी वैसा ही मेरे साथ हुआ | मुझे फिर बेच दिया गया | इस बार मैं  पेशा  कराने वाले दबंगों को सौंपी गई | अब मैं कुछ  दिन से बहुत बीमार थी कि अचानक एक दिन पल्लव भैया मुझे पार्क में मिल गये | वह ही मेरा इलाज करा रहे हैं |”                                              आकाश ने धीरे से कहा –“ मुझे घर पर उसकी बदनामी के बारे में कुछ सूचनाएँ मिली थी | शायद यहाँ कुछ लोग तुम्हें और पल्लव को लेकर उल्टी सीधी बातें इधर उधर फैला रहे हैं | मैं उसी की जानकारी लेने के लिए यहाँ आया था | वैसे तुम्हारा यहाँ कितने दिन इलाज और चलना है | क्या ये इलाज लखनऊ से कहीं बाहर रह कर भी चल सकता है | तुम खर्च की चिता मत करो | उसका सारा प्रबन्ध मैं कर  दूंगा | “                                  “ अभी तो राधा जी मुझसे १५ – २० दिन दवा  और खाने की बात कह रही थीं | अगर आप ठीक समझें तो आप ही उनसे पूछ कर देख लीजिये | यही पास में ही तो है उनका क्लीनिक |” “ अरे ! क्या तुम डा. राधा से इलाज करा रही हो ? वह तो मुझे भी बहुत अच्छी तरह जानती हैं और बहुत ही अनुभवी व योग्य चिकित्सक हैं |  तुम वास्तव में बहुत अच्छी जगह पहुँच गई हो | वह तुम्हें जो भी सलाह देंगी , वह तुम्हारे अच्छे के लिए ही देंगी | क्योंकि उनका उद्देश्य धन कमाना नहीं , जनता की सेवा करना है | अब मैं  आगे तुमसे इस विषय में कुछ नहीं कहूँगा |”                                “ भैया ! आप विशवास रखिये मैं ठीक होते ही यहाँ से चुपचाप चली जाऊंगी | मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि मैं अब किसी भी सम्भ्रांत परिवार में रहने लायक नहीं हूँ | मेरी तो सारी खुशियाँ उसी दिन समाप्त हो गई थी जिस दिन मुझे आपका स्वर्ग जैसा घर छोड़ कर झूठे चाचा चाची के साथ जाना पड़ा था | सच आप सबने कितने उत्साह और पवित्र मन से मुझे पढ़ा कर मेरा भाग्य बदलने की कोशिश की थी | पर भूकम्प के एक झटके में सब खंढहर हो गया |”                                                              “ सच सपना मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि तुम्हारी किस तरह सहायता करूँ ? मुझे तो तुम आज भी बिलकुल वैसी ही लग रही हो जैसी पहली बार हमारे घर आई थी |”                                              ``  बड़े भैया ! मुझे तो अब वह सब एक सपना सा लगता है | पता नहीं किस जन्म के पापों का फल भोग रही हूँ |”                                                               आकाश बोला –“ मेरे विचार से अब तुम्हें किसी ऐसे शहर में चला जाना चाहिए जहां तुम्हें कोई पहचानने वाला न हो और वहां अपना कोई काम शुरू कर देना चाहिए | उसके लिए तुम्हें जो भी आर्थिक सहायता की आवश्यकता होगी उसका सब प्रबन्ध मैं कर दूंगा | सपना यह समाज बहुत बुरा है | यह किसी की बरबादी पर तो खूब ताली बजाता  है , पर उसे ऊपर उठाने के लिए उसकी कोई सहायता नहीं करता | मैं जानता हूँ कि जो भी  तुम्हारे साथ हुआ उसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है | फिर भी मैं क्या करूँ , बहुत चाहते हुए भी मैं तुम्हारी खुल कर कोई सहायता नहीं कर पा रहा हूँ | पर मेरी पूरी सहानुभूति तुम्हारे साथ है |”                                 आकाश के चले जाने के बाद कलपी ब्यूटी पार्लर सेन्टर नहीं गई | वह अपने कमरे पर आकर चुपचाप बिस्तर पर लेट कर अपने जीवन के विषय में सोचने लगी | भगवान ने लडकियों को ऐसा क्यों बनाया है | कभी अपनी तरफ से मैंने कोई गलत कदम नहीं उठाया | कभी कोई अपराध नहीं किया  कभी भूले से भी किसी के मन को जरा सी ठेस नहीं पहुचाई | जो भी गलत काम किये , वो दूसरों ने किये | पर गलत और बुरी मैं हूँ | मेरी सहायता करने वाला भी आलोचना का पात्र क्यों है ?                            समाज क्यों  उसे घ्रणा व सन्देहास्प्रद दृष्टि से देखता है | ऐसे ही अनगिन प्रश्नों में उलझे उलझे उसे कब नींद आ गई उसे कुछ पता ही नहीं चला |             जब काफी देर बाद  उसकी आँख खुलीं तो मौसम एक साथ बदला हुआ था | दूर तक काले घने बादल घिरे हुए थे  और हल्की हल्की बूंदों के साथ ठंडी हवा चल रही थी | जब वह बहुत जल्दी से सर पर चुन्नी डाल  कर माँ के काम में कुछ सहयोग करने के उद्देश्य से नीचे पहुँची तो  माँ की तबियत बहुत खराब थी | वह दो बार टॉयलेट जाने के बाद अभी अभी तीसरी बार उल्टी करके धीरे धीरे दीवार पकड कर अपने कमरे की ओर जा रही थीं | इस समय घर पर और कोई नहीं था | सीमा कोचिंग के लिए गई हुई थी और धीरज  अभी अपने कॉलिज से नहीं लौटा था |  वह  तुरन्त भाग कर माँ के पास पहुँची और उन्हें सहारा देकर बिस्तर पर आराम से लिटाने के बाद जल्दी से बिना बुर्का पहने ही डा राधा के पास दवा लेने चल दी | पर वह उस समय दुकान पर नहीं थीं | इसलिए वह फिर तेज चाल से सडक पार एक अन्य चिकित्सक के पास पहुँच गई | वहां पहले से कई मरीज बैठे हुए थे | वह जब अपनी बारी की प्रतीक्षा किये बिना सीधे डॉक्टर साहब से अपनी समस्या कहने के लिए आगे बढ़ी तो उसे लगा कि जैसे एक कौने में बैठा व्यक्ति उसे बड़े ध्यान से देख रहा है | जैसे वह उसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो | और वास्तव में यह किसी सीमा तक सच भी था | क्योंकि जब वह दवा लेकर घर के लिए चली तो वह तुरन्त अपनी जगह से उठ के उसके पीछे पीछे चल दिया और कुछ दूर चलने के बाद पीछे से बोला –“ तुम सुमन हो ना |” कलपी ने चलते चलते ही थोडा सा पीछे मुड़कर  कर कहा –“ नहीं ,मैं सुमन नहीं मेरा नाम कलपी है | आप शायद मुझे गलत समझ रहे हैं | मेरी माँ बीमार हैं | मैं उनकी दवा लेने आई थी |” किन्तु वह फिर भी तब तक उसके पीछे चलता रहा जब तक वह अपने घर के अन्दर नहीं चली गई | घर पहुँच कर उसने पहले तो तुरन्त माँ को दवा पिलाई फिर उनका माथा सहलाते हुए बोली –“  अब बस आपको कुछ ही देर में लाभ हो जायेगा | डॉक्टर साहब कह रहे थे कि बहुत तेज दवा दे रहा हूँ | इसकी एक खुराक लेने बाद कुछ देर हलका सा पेट में दर्द तो अवश्य होगा पर उलटियाँ , लूज मोशन बिलकुल रुक जायेंगे |”                 जब माँ काफी देर आँख बंद किये चुपचाप लेटी रहीं और उनके चेहरे से यह  लगा कि वह अब कुछ पहले से अच्छा अनुभव कर रही हैं तो वह उनसे धीरे से बोली – “ माँ ! क्या मैं छत पर जा कर दो मिनट में अपने कपडे बदल आऊँ | बारिश में बहुत भीग गये हैं |”  माँ ने कहा –“ जा बेटी , आराम से बदल आ | अगर तू भी बीमार पड़  गई तो फिर मुझे कौन देखेगा |”                छत पर पहुँच कर जब उसने नीचे झाँक कर देखा तो शायद वह व्यक्ति काफी देर उसके द्वार से निकलने की प्रतीक्षा करने के बाद धीरे धीरे वापस जा रहा था | जिससे कलपी एक गम्भीर  चिता से ग्रसित हो  गई | उसे लगा कि इस व्यक्ति ने अवश्य उसे पहचान लिया है और वह अब कभी भी कुछ लोगों को साथ लेकर यहाँ आ सकता है | अगर ऐसा हुआ तो धीरज भैया की सारी इज्जत मिट्टी में मिल जायेगी | इसलिए अब उसका यहाँ रुकना न तो स्वयं उसके लिए अच्छा है , न धीरज के लिए |                          कपडे बदल कर जब वह नीचे पहुँची तो माँ काफी ठीक लग रही थीं | उसे देखते ही कुछ तकिये का सहारा लेकर बैठते हुए बोली –“ तेरी दवा खाकर तो कुछ ही देर में चैन पड़ गया | न अब पेट में दर्द है न उबकाईयाँ आ रही हैं | सच जब तू मेरी ख़राब  हालत देख कर घबराई  हुई ऐसे ही घर के कपड़े पहने बारिश में दवा लेने गई तो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था | पर क्या करती ? पेट में इतना तेज दर्द था कि तुझे रोक नहीं पाई | पर अब तेरे लिए मन से कितनी दुआयें निकल रही हैं कि क्या बताऊँ |”                   तभी सीमा और धीरज घर आ गये और माँ को बिस्तर पर लेटा  देख कर आश्चर्य से बोले –“ अरे माँ आपको क्या हुआ ?”                          “ हलका सा हैजा हुआ था | पर इस लड़की ने बारिश की चिता किये बिना ऐसी भाग दौड़ की कि मैं मरने से बच गई | तुझे पता है , जब इसे डा. राधा नहीं मिली तो ये चौराहे वाले डाक्टर गुप्ता से दवा लेकर आई | भगवान् भला करें इसका | सोच नहीं पा रही हूँ कि इसे कौन सा आशीर्वाद दूं |”                   “ माँ आपने मुझे जन्म ही तो नहीं दिया है पर माँ का पूरा प्यार तो दिया है | क्या यह मेरे लिए कोई छोटी बात है |”                        धीरज बोला – “ नहीं कलपी , जिस स्थिति में पल्लव तुम्हें यहाँ छोड़ कर गया था , तब मैं बिलकुल नहीं सोच पा रहा था कि तुम इतनी बीमार होने पर यहाँ कैसे रहोगी | पर सच कह रहा हूँ कि जिस तरह तुमने सबके साथ निर्वाह किया उससे घर में किसी को ज़रा सी असुविधा नहीं हुई | अपितु यह कहू कि सबको एक तरह से सहारा ही मिला तो अतिउक्ति न होगी |”                माँ और धीरज की अपनेपन की बातें सुन कर कलपी का मन और अधिक भावुकता से भर गया | वह रात भर करवटें ही बदलती रही और एक पल चैन से नहीं सो पाई |                                              दो दिन बाद जब माँ ठीक हो गई तो वह बिना किसी को कुछ बताये बुर्का पहन कर घर से निकल पड़ी | जब वह चलते चलते बुरी थक गई और प्यास से गला सूखने लगा तो एक ऊंचे पेड़ों के घने झुरमुठ में कुछ देर विश्राम करने बैठ गई | पर कुछ ही देर बाद वहां जुआ खेलने वाले चार पांच लोग आ गये और उसे अकेला देख कर उसकी ओर आगे बढ़ने लगे | कलपी उनकी भावना को भांप कर तुरन्त  वहां से चल दी  | पर फिर भी उन्होंने उसका पीछा नहीं छोड़ा और पहले से अधिक तेज चाल से उसकी ओर बढने लगे | निराश होकर फिर उसने तेज गति से दौड़ना शुरू कर दिया और भागते भागते एक चारों तरफ पेड़ों से घिरे मकान पर पहुँच गई | वहाँ दो व्यक्ति चारपाई पर बैठे हुक्का पी रहे थे | उन्हें देख कर फिर जुआरियों की आगे बढने की हिम्मत नहीं हुई और वह चुप चाप दबे पाँव वहा से लौट गये |                               ठाकुर एदल सिंह ने जब कलपी को बुरी तरह हांपते हुए देखा तो वह अपने एक सेवक से बोले –“ जा ! भीतर से एक लोटा ठंडा पानी लेकर आ | छोरी बहुत डरी घबराई हुई है | फिर कलपी की ओर मुड़ कर पूछा –“  बेटी क्या नाम है तेरा और क्यों इतनी घबराई हुई है ?” जी मेरा नाम कलपी है | मैं काम की तलाश में बस्ती की तरफ जा रही थी | कुछ थक जाने के कारण जब मैं  बाग़ में कुछ देर आराम करने बैठी तो तीन चार लोग मुझे अकेला देख कर गलत नीयत से मुझे पकड़ना चाह रहे थे |”                               ठाकुर एदल सिंह लखीमपुर खीरी के रहने वाले थे और दस साल पहले ही अपने घरेलू झगडे के कारण चार बीघा जमीन व दो फलों के बाग़ खरीद कर यहाँ रह रहे थे | उनके कोई सन्तान नहीं थी और पत्नी दो माह से कैंसर की बीमारी से लड़ रही थी | जब कलपी ने उन्हें बताया कि उसका अब दुनियां में कोई नहीं है  और वह अमीर घरों में काम करके अपना जीवन यापन कर रही है तो उन्होंने उसे अपनी पत्नी की देख भाल करने के लिए उसे अपने पास रख लिया |                                                      कलपी घर के तो सारे काम काफी दिन से स्वयं कर ही रही थी , खेती बाडी व पशुओं का भी कोई ऐसा काम नहीं था जो उसने अपने गाँव में न किया हो | इसलिए बस तीन चार दिन में ही उसने ठाकुर साहब के पशुओं व बागों के सारे काम सुगमता से संभाल लिए | उसकी कार्य शैली , लगन व् दक्षता को देख कर ठाकुर साहब ही नहीं दैनिक मजदूर भी दांतों तले  उंगली दबा गये | किसी को विश्वास नहीं हो रहा था कि इतने दिन से शहर में रहने वाली लडकी दूध निकालना , सानी करना , बिना डरे पशुओं को नहलाने का काम इतनी चुस्ती से कैसे कर रही है |                                           एक दिन जब ठाकुर साहब अपनी पत्नी से कलपी के कार्य व् व्यवहार की तारीफ करने लगे तो वह उनका हाथ अपने हाथ में लेकर बोलीं –“ मैं भी पिछले  कई दिन से आपसे एक बात कहने की सोच रही थी | मुझे भी कलपी बहुत अच्छी लड़की लग रही है | देखो ! मैं तो अब पता नहीं चार दिन की हूँ या छ: दिन की और मेरे जाने के बाद  तुम्हारी भी इस उमर में दूसरी शादी होने से रही | फिर तुम कैसे अपनी जिन्दगी काटोगे | कैसे अपना काम और घर संभालोगे | इसलिए मैं सोच रही थी कि तुम मेरे जाने के बाद कलपी को ही अपना लेना | वह तुम्हें कभी कोई तकलीफ नहीं होने देगी |”                   तभी कलपी कमरे में आ गई और ठाकुर साहब से बोली –“  मैं आपको सब जगह ढूंढ आई | मुझे क्या पता था आप यहाँ बैठे हैं | आपका हुक्का कब का ताजा किया हुआ रखा है | पता नहीं अब उसमें कुछ बचा भी होगा या नहीं |” ठकुराइन बोली –“ अरी ! अब दो चार दिन तो इन्हें मेरे पास बैठ कर बात कर लेने दे | पता नहीं अब इनका मेरा कितनी घड़ी का साथ और बचा है | “                                                                    जब ठाकुर साहब चले गये तो ठकुराइन ने कलपी को अपने पास ही चारपाई पर बिठला लिया और उसे वक्ष से चिपटाते हुए बोलीं –“ देख ! अब मेरा तो कुछ पता नहीं कि एक दिन की हूँ या दो दिन की | क्या तू मुझे एक वचन देगी कि जैसे तू अब ठाकुर साहब का ध्यान रख रही है वैसे ही मेरे मरने के बाद भी रखेगी | देख मरने वाले व्यक्ति के सामने कभी झूठ नहीं बोलते |”                                                                 कलपी ने कहा –“ माँ आप कैसी बात कर रही हैं | मैं आपको कभी नहीं मरने दूंगी , चाहे मुझे कुछ भी क्यों न करना पड़े |”                वह तो मुझे तुझसे पूरी उम्मीद है | पर बेटी भगवान की मर्जी के सामने किसी की नहीं चलती |”                                         “ माँ ! मैं  आपको वचन दे रही हूँ कि में ठाकुर साहब का हमेशा ऐसे ही ख्याल रखूँगी और उन्हें कभी कोई कष्ट नहीं होने दूंगी |”                                          इसके दो महीने बाद ठकुराइन की मृत्यु हो गई | जिससे कलपी के सामने फिर एक संकट उपस्थित हो गया | अब वह कहाँ जायेगी और क्या करेगी ? क्योंकि ठाकुर साहब के मन में क्या है , वह उसे अब  घर में रखना चाहेंगे या नहीं  कुछ पता नही चल रहा था | वह न किसी से कुछ कह रहे थे , न कोई बात कर रहे थे |                                         आरिष्टि सम्पन्न हो जाने के बाद जब उसे अपने भविष्य के सम्बन्ध में कोई संकेत नहीं मिला तो उसने अपना सामान समेटना प्रारम्भ कर दिया | अब ठाकुर साहब का ध्यान  तुरन्त उसकी ओर गया और वह उसे पास बुलाकर उससे बोले –“  तुम अगर चाहो तो अभी भी इस घर में रह सकती हो | मैंने गत छ: सात महीनो में तुम्हारा जो व्यवहार और अपनापन भरा आचरण देखा है उससे मुझे लगता है कि तुम ठकुराइन के बिना अकेली  भी इस घर की हर जिम्मेदारी आसानी से संभाल सकती हो | पर देखो मैं गाँव के अनपढ़ पिछड़े समाज से जुड़ा  होने के कारण और तुम्हारे गैर ठाकुर होने की वजह से अपने समस्त सगे सम्बन्धियों को आमंत्रित कर विधि वत तो तुमसे विवाह नहीं कर सकता | पर हाँ ! तुम अगर कहो तो मन्दिर में माला पहना कर तुम्हें वैधानिक पत्नी का दर्जा अवश्य दे सकता हूँ |”               ठाकुर साहब की अप्रत्याशित बात सुन कर कलपी को ऐसा लगा जैसे उसे धरती के सारे सुख मिल गये हैं | अब वह निर्भय होकर एक सम्मानित जीवन जी सकती है | उधर कलपी के रुक जाने से ठाकुर साहब भी कुछ कम खुश नहीं थे | उन्हें नई  संगिनी के साथ साथ  एक देखी परखी गृहणी का संसर्ग जो मिलने जा रहा था |                                                      दोनों के नये जीवन का एक वर्ष कब कैसे व्यतीत हो गया कुछ पता ही नहीं चला | इसी बीच जब एक दिन कलपी ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया तो ठाकुर साहब की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा | उन्होंने शादी के बीस साल बाद अपने घर में किसी बच्चे की किलकारियां सुनी थीं | कभी सपने में भी  यह नहीं सोचा था कि उन्हें इस जन्म में कोई पापा कहने वाला भी दुनियां में आ सकता है | अब ठाकुर साहब  की सारी दिन चर्या ही बदल गई | वह पहले जो खाली समय इधर उधर बैठ कर बिताया करते थे अब कलपी व अपने बच्चे के पास रह कर बिताने लगे |                             पर शायद खुशियाँ दोनों के भाग्य में अधिक नहीं लिखी थीं | बस जैसे ही बेटी दो साल की हुई कि ठाकुर साहब गम्भीर रूप से अस्वस्थ हो गये | उनकी दोनों किडनियाँ बेकार हो गई थीं |  शरीर पर सूजन आनी शुरू हो गई थी | चिकित्सकों ने उन्हें डायलेसिस पर रख कर बचाने की भरसक कोशिश की पर वह उन्हें छ: महीने से अधिक जीवित नही रख सके | इस समय कलपी एक माह बाद ही अपने दूसरे बच्चे को जन्म देने वाली थी |                ठाकुर साहब के छ: सात महीने बीमार रहने  के कारण उसने अपनी ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया था | जिससे वह कई विटेमिन्स की कमी हो जाने से अत्यधिक दुर्बल हो जाने के साथ साथ कई अन्य  विकारों से भी ग्रसित हो गई थी | इसी स्थिति में जब अचानक ठाकुर साहब का मृत शरीर उसके सामने आया तो वह एक पल अपने पर संयम नहीं रख सकी | जिससे देर तक बेसुध होकर विलाप करने से उसका  शीघ्र जन्म लेने वाला बच्चा टेढ़ा होकर असामान्य स्थिति में आ गया | जिससे उसे अगले दिन ही अस्पताल में दाखिल कराने के लिए ले जाना पड़ा |                                   सौभाग्य से पल्लव इन दिनों इसी अस्पताल में था | उसने जैसे ही कलपी को देखा ,  उसका तुरन्त इलाज शुरू करा दिया | कलपी जब कुछ सामान्य सी हुई तो वह पल्लव को अपने बिल्कुत निकट बुलाकर धीरे से बोली –“   भैया मुझे लगता है शायद भगवान् मुझे आज  आपसे ही एक बार और मिलाने के लिए यहाँ लाये हैं | क्या आप मेरा एक काम करेंगे ? देखिये मना मत कीजिये | बहुत उम्मीद के साथ आपसे कह रही हूँ | अगर मुझे कुछ हो जाये तो मेरी इस बच्ची को असहाय मत छोड़िये | कृपया इसे मेरी जैसी गन्दी जिन्दगी जीने को मजबूर मत होने दीजिये | सच अब मेरी और कोई बड़ी इच्छा नहीं है | बस इस छोटी सी , प्यारी सी बच्ची की एक साफ सुथरी जिन्दगी की आपसे भीख मांग रही हूँ |”                                        पल्लव ने कहा – “ तुम ऐसी बहकी बहकी बातें क्यों कर रही हो | अभी तो तुम्हारा प्राथमिक इलाज ही शुरू हुआ है | जहां तक मैं समझता हूँ , तुम जल्दी ही पूरी तरह ठीक हो जाओगी | और  हाँ अगर तुम्हें कुछ हो गया तो तुमसे यह मेरा वादा है कि तुम्हारी यह बेटी मेरी अपनी बेटी की तरह हमेशा मेरे साथ रहेगी और कभी मैं इस पर  कोई दुःख की की छाया नहीं पड़ने दूंगा |“                                                           कलपी बोली- “ भैया ! आप ये बाहर दूर तक फैला कोहरा देख रहे हैं ना | यह कोहरा जब भी मेरे आस पास घिरता है , मेरे जीवन में अवश्य ही कोई न कोई बड़ा तूफान आता है | इसलिए मुझे नहीं लगता कि मैं अब जीवित बच पाऊँगी |”                                                         अगले दिन चिकित्सकों ने आपरेशन कर मृत बच्चे को तो बाहर निकाल लिया पर वह बहुत प्रयत्न करने पर भी कलपी को नहीं बचा सके |

                        समाप्त

21 टिप्‍पणियां:

  1. प्रणाम आलोक स‍िन्हा जी, आपका ब्लॉग मैंने बुकमार्क कर ल‍िया है ...इसकी उम्दा कहान‍ियों के ल‍िए..मैं इसे बुकमार्क क‍िए ब‍िना रह नहीं सकी..धन्यवाद

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद , आभार रवीन्द्र जी कहानी को सम्मान देने के लिए |

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  3. बहुत बहुत आभार इस अपनेपन के लिए |

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  4. मीना भरद्वाज जी , बहुत बहुत धन्यवाद |

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  5. बहुत ही हृदयस्पर्शी कहानी...अद्भुत एवं लाजवाब लेखन शैली..कहानी में शुरू से अन्त तक तारतम्यता स्थापित कर पाठक को बाँधे रखने में पूर्णतः सक्षम है....साधूवाद एवं नमन इतनी विस्तृत एवं बेहतरीन कहानी लेखन हेतु।

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  6. सुधा जी कहान्री अचछी लगने के लिए बहुत बहुत ह्रदय से आभार ।

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  7. हमारे बीच की एक मर्मस्पर्शी कहानी।
    बहुत सुंदर ।
    सादर।

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  8. स धु जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार ।

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  9. दिल को छूती बहुत सुंदर कहानी।

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  10. बहुत बहुत धन्यवाद आभार जयोति जी ।

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  11. पढ़ते-पढ़ते पाठक कब सपना , सुमन कलपी होने लगते हैं इसका भान भी नहीं आता । अत्यंत प्रवाही ... हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  12. सुविचारित,समाज की वास्तविकता दर्शाती हुई कहानी .

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  13. ह्रदय स्पर्श करती हुई कहानी,

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  14. मधुलिका जी बहुत बहुत धन्यवाद आभार

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  15. कितने उतार चढ़ाव आए कलपी के जीवन में ! कहानी को अंत तक पढ़े बिना अपनी जगह से हिल भी ना पाए कोई! झकझोर देनेवाला कथानक। सादर प्रणाम।

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  16. मीना जी बहुत बहुत आभार सार्थक टिप्पणी के लिए

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