मंगलवार, 15 सितंबर 2020

स्कैच -- तीन मित्र तीन बात

 

स्कैच --- तीन मित्र तीन बात  ------------ आलोक सिन्हा   

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              मेरे एक घनिष्ट मित्र हैं -- - अखिल कुमार सरल | ये aअपनी कोई भी छोटी बड़ी बात मुझसे  नहीं छिपाते | वह चाहे ऑफिस की हो या घर की , प्यार की हो या किसी से मन मुटाव की | जब भी मिलते हैं इतने  निःसंकोच होकर मिलते हैं कि कभी कभी लोग हम दोनों को मित्र की जगह सगे सम्बन्धी होने का संदेह  करने लगते हैं |
  मेरे इन मित्र का विवाह हुये वैसे तो एक दशक से अधिक हो गया है , पर ये अपनी पत्नी कनक को अभी दो माह पूर्व ही पहली बार उसके घर से विदा करा कर लाये हैं | दरअसल इन दोनों के माता पिता एक ही गाँव में रहते थे और घनिष्ट मित्र थे | उन्होंने बचपन में ही इन दोनों की शादी कर दी  थी |
पर शादी के कुछ दिन बाद ही पिताजी की आकस्मिक मृत्यु हो जाने से  अखिल  अपने मामा के पास  शहर आ गया और अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद एक  इन्टर कालिज में प्रवक्ता हो गया  | पर कनक गाँव में कोई जूनियर हाई स्कूल न होने के कारण केवल कक्षा ५ तक ही पढ़ पाई | यही कारण था  जो अखिल उसे विदा करा कर लाने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे |                                                                           कनक भाभी के आने के बाद मैं अपने इन मित्र में एक बड़ा परिवर्तन अनुभव कर रहा हूँ | वस्तुतः वह एक प्रवक्ता होने के साथ साथ एक बहुत अच्छे कवि भी हैं | कनक उनकी तुलना में कहीं भी तो जरा सी उनके समकक्ष नहीं बैठती | यही कारण है कि अब अखिल मुझसे पहले की तरह न तो कभी हंस कर मिलते हैं ,न अधिक खुल कर बातें करते हैं |
     एक दिन रविवार को मैं चाय पीकर अपने कमरे में बैठा अख़बार पढ़ रहा था कि अचानक मेरे यही मित्र मेरे पास आये और बिना किसी सन्दर्भ के एक गहरी सांस लेकर बोले -- बन्धु , तुम्हारे मँजे हैं | कहीं आओ , कहीं जाओ , जो मर्जी आये सो करो | और एक हम हैं | किस्मत के मारे | घर की चार दिवारी में बंद | न खुल कर हंस सकते हैं , न रो सकते हैं |                                             
                 मैंने धीरे से अखबार मेज पर खिसकते हुए पूछा ----`` भाभी तो ठीक हैं | ``                            हाँ ठीक हैं | एक मरा सा उत्तर मिला | मैंने फिर उनके मन की बाट टटोलने की दृष्टि से पूछा -- तो फिर सुस्त से क्यों हो ?                                                                                            `` कुछ नहीं ठीक हूँ | ``                                                            उन्होंने वैसे ही नीची गर्दन किये कहा | अब मेरी समझ आ गया कि आज ये हजरत  कुछ ज्यादा ही परेशान हैं | मैं फिर अपनी कुर्सी से उठ कर उनके बराबर ही जाकर बैठ गया और बोला --`` देखो ! जब तुम्हें पता हैं कि भाभी तुम जैसी ज्ञान वान नहीं हैं तो धीरे धीरे उनसे विभिन्न विषयों पर बाँतें करके उनका ज्ञान वर्द्धन  करने की कोशिश क्यों नहीं करते हो | ``                                                                      a मेरी बात  सुनकर वो अपनी गम्भीर मुद्रा छोड़ कर कुछ हल्का सा मुस्कुराते हुए बोले --`` ज्ञान वर्द्धन ! वह भी तुम्हारी भाभी का | भइया जी ! मैं उनका ज्ञान वर्द्धन  क्या करूंगा , वह तो रोज मेरा ज्ञान वर्द्धन कर रहीं हैं | कल ही की बात  बताऊँ | मैं अपने कमरे में बैठा एक नई कहानी लिखने की सोच रहा था कि अचानक तुम्हारी भाभी मेरे पास आकर बैठ गईं और बोलीं --`` आप यहाँ अकेले बैठे क्या कर रहे हैं ? ``                       तो मेरे मुँह से बस वैसे ही सहज भाव से निकल गया कि एक नई कहानी लिखने की सोच रहा था | तो वो बोलीं -- आप कैसे लिखते हैं कहानी | कहानी में कौन कौन होता है |                                  मैंने कहा कि कहानी में एक नायक होता है और एक नायिका | तो वो एक साथ बोलीं -- `` हर कहानी में ये नाई का क्या करता है ? क्या हर कहानी में कलाकारों के नई तरह के बाल काटने की जरूरत होती है |``                       मैंने फिर उन्हें समझाते हुए कहा कि मेरा मतलब हीरोइन से था तो वो पहले से भी दो कदम आगे  बढ़ कर बोलीं ---आप हीरोइन वीरोइन के चक्कर में मत पड़िए | यह तो बहुत बुरी चीज है | हमारे गाँव में दो लडकों की जेबों में बस इसकी एक एक पुडिया मिली थी तो पुलिसे ने उनकी खूब पिटाई भी की और वो अभी तक जेल में बंद हैं |``                                                                     मुझे उस समय हंसी तो बहुत आ रही थी पर मैनें पूरी तरह अपने पर अंकुश रखते हुए अखिल से कहा   `` भाभी का गाँव में रहने के कारण जरा शब्द ज्ञान कम है , इसलिए उन्होंने जो कुछ कहा उस पर अधिक ध्यान नहीं देना चाहिए | धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा |``                                                   `` पर मुझे बिलकुल उम्मीद नहीं लगती |`` वह एक गहरी साँस लेकर बोले - ``आज जब सारी बातें खुल कर हो ही रही हैं तो मैं भी तुम से अब कुछ नहीं छिपाऊंगा | बन्धुवर , गत दो माह में मैंने जो कुछ देखा व अनुभव किया है , उस से मुझे यह बिलकुल नहीं लगता कि कनक के पास मस्तिष्क जैसी भी कोई चीज है | एक दिन की बात  बताऊँ | मैं अपने कमरे में बैठा धर्मयुग पढ़ रहा था कि तभी तुम्हारी भाभी मेरे पास आकर खड़ी हो गई | मैं उनकी तरफ एक उचटती सी निगाह डालते हुए कहा  क्या एक गिलास पानी मिल सकता है | तो वह बिना कुछ उत्तर दिये जल्दी से अंदर रसोई में चली गई और एक क्षण में ही मुझे पानी लाकर दे दिया | मुझे उनकी सरलता देख कर कुछ मजाक करने का मन कर आया A मैंने एक घूट पानी पीकर उनसे कहा -- अरे ! क्या तुम पानी में कुछ डाल कर लाई हो | बहुत ही मीठा लग रहा है |  तो वह तुरन्त आगे बढ़ कर मेरे हाथ से गिलास लेकर बोली -- नहीं ,नहीं हमने तो इसमें कुछ नहीं डाला | आपको अच्छा नहीं लग रहा है तो हम दूसरा लाये देते हैं |                                                                            मैं , उनके शीघ्रता से गिलास ले लेने के बाद एक क्षण के लिए ठगा सा बैठा रह गया | मैं सोच रहा था कि जब वह ये कहेंगी कि हमने तो इसमें कुछ नहीं मिलाया तो मैं कहूँगा कि फिर यह शायद तुम्हारे छूने से मीठा हो गया होगा | कहीं अगर तुम इसे चख कर देख लेतीं तो ये शायद अमृत हो जाता | पर उन्होंने तो एक साथ हाथ से गिलास लेकर सारा प्रसंग ही समाप्त कर दिया |``                                                                                             मैंने कहा कि वह तुम्हें मन से प्यार करतीं हैं | तुम्हें किसी भी बात  का बुरा लगना वह भला कैसे सहन कर सकती थीं |** 
 
^^ हाँ , ये बात  तो है **  अखिल ने सहमति जताते हुए कहा ---`` प्यार तो वास्तव में कनक बहुत करती है | फिर कुछ मुस्कुराते हुए बोले --`` एक दिन कह रही थी कि मैं  अपने गाँव में सब से ज्यादा भाग्य शाली हूँ जो मेरी आपसे शादी हुई | मेरे साथ की जितनी भी लडकियाँ हैं सभी के दूल्हे विदेशों में नौकरी कर रहे हैं  और वह सब बेचारी अकेली गाँव में पड़ी हैं | मैंने उसकी बात  सुन कर उससे तो कुछ नहीं कहा पर मन ही मन सोचा कि तुम सबसे दुर्भाग्यशाली हो जिस की मुझ जैसे छोटी सी नौकरी वाले लड़के से शादी हुई |``                 मैंने कहा -- वैसे अखिल , भाभी के ह्रदय में मुझे जो आत्मां दिखाई दे रही है ,वह कोई साधारण आत्मा नहीं है | इतनी लम्बी प्रतीक्षा के बाद ससुराल आना और  फिर इतने समर्पण भाव से माँ  की सेवा  व तुम्हारी हर आवश्यकता का ध्यान रखने का गुण आज कल की लड़कियों में सुगमता से देखने को नहीं मिलता |a           `` पर इस सेवा भाव व थोड़ी सी दबी छिपी प्यार की अनुभूति के सहारे  क्या सारा जीवन काटा जा सकता है | क्या जीने के लिए प्यार की मुखरता तनिक भी आवश्यक नहीं है | चलो ! मेरी कल्पनाओं के पंखों की उडान में कोई परी  बन कर मेरा साथ न दे , पर कम से कम धरती पर तो मैं किसी से अपनी मीठी मुस्कानों के द्वारा सारे दिन की नीरस थकन को सहलाने की अपेक्षा कर सकता हूँ |``                     मैंने फिर इस प्रसंग को अधिक आगे नहीं बढ़ाया | क्योंकि अखिल की पीड़ा यदि बहुत अधिक गम्भीर नहीं थी तो ऐसी भी नहीं थी कि उसे पूरी तरह नकार दिया जाये | इसके बाद हम दोनों काफी दिन तक एक दूसरे से नहीं मिल सके | मैं कार्यालय में राजकीय निरीक्षण के चलते काफी व्यस्त रहा और मेरे मित्र अर्द्ध  वार्षिक परीक्षाओं व् उत्तर पुस्तकों के मूल्यांकन में उलझे रहे | इसी अन्तराल में मुझे एक दिन अपने एक सहयोगी से पता चला कि कवि जी का किसी कवयित्री महोदया  से प्रेम प्रसंग चल रहा है और वो शीघ्र अपनी पत्नी से सम्बन्ध विच्छेद करने जा रहे हैं |                                                                                      मैं जब उसी शाम उनके घर उनसे मिलने पहुँचा तो उन्हें नितान्त अँधेरे कमरे में चुपचाप लेटा  हुआ देख कर मुझे विश्वास हो गया कि वो वास्तव में किसी गहरे अवसाद में हैं और उजाले से मुँह छिपा रहे हैं | पर उनहोंने जैसे ही मुझे देखा तो तुरन्त उठ कर मुझसे हंसते हुए बोले --^ सच आज मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही थी | एक तुम ही तो हो जिस से मैं  अपनी हर बात कह कर मन का बोझ हल्का कर लेता हूँ |                      दरअसल मेरी एक बहुत बड़ी प्रशंसक कवयित्री  मुझसे शादी करना चाह रही है | वह दो भाई व् एक बहिन हैं और इस समय एक कन्यां प्राइमरी स्कूल में सहायक अध्यापिका के पद पर कार्य कर रही हैं | उनका कहना है कि अगर मैं अपनी पत्नी से सम्बन्ध विच्छेद  कर लूं तो वह  मुझसे तुरन्त विवाह करने को तैयार है | ``                                                                             `` तो अब तुम्हारा क्या विचार है ? ``                                                       अखिल ने कहा --- `` मैं जब कुछ दिन पूर्व इस सम्बन्ध में एक अधिवक्ता महोदय से मिला तो उनहोंने मुझसे कहा कि पहले मैं इस विषय में अपनी पत्नी से बात  करके देखूं | यदि वह सहमत हो जाती हैं तो वह मेरे सम्बन्ध विच्छेद का काम बहुत शीघ्र करा देगें | इसके बाद जब एक दिन मैंने  कनक का अच्छा मूड देख कर उससे बड़े प्यार के साथ पूछा -- अगर मैं दूसरी शादी कर लूं तो तुम्हें कैसा लगेगा ? तो मेरी बात  सुन कर वह बड़ी खुश होती हुई मेरी ओर देख कर बोली ---`` क्या आप दूसरी शादी कर रहे हैं | पर किसी खूब पढ़ी लिखी लड़की से कीजिये | मैं तो कम पढ़ी लिखी होने के कारण आपसे अच्छी तरह बात तक नहीं कर पाती | न आपकी  कविताएँ समझ पाती हूँ | न  आपकी कहानियों की प्रशंसा कर पाती हूँ | इसलिए आप घर में सारे दिन अकेले और उदास से रहते हैं | सच  कभी कभी तो मुझे आपको परेशान देख कर बहुत ही रोना आता है | सोचती हूँ कि पत्नी का काम तो हर तरह पति को खुश रखने का होता है | पर मैं चाहते हुए भी आपको जरा सी खुशी नहीं दे पाती | सच आप दूसरी शादी कर लीजिये | फिर मुझे भी एक सहेली मिल जायेगी और मैं अम्मा जी की सेवा भी अधिक अच्छी तरह कर पाऊँगी |`` .                                                                 अखिल ने जब ये सारी बात  अपनी प्रशंसक महोदया को बताई तो वह बहुत खुश होकर उससे बोली ---``  चलिए यह तो बहुत अच्छा हुआ कि कनक अपने आप ही हमारे बीच से हट गई | वैसे आपसे अलगाव हो जाने के बाद भी वह अगर हमारे घर में माँ जी की सेवा करने के लिए रहना चाहती है , तो मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं है | क्योंकि देखिये ! शादी के बाद हम दोनों की नौकरियाँ अलग अलग नगर में होने के कारण हमें माँ जी की देख भाल , खाना , झाड़ू पोंछा , कपड़े आदि  के लिए कुछ न कुछ इंतजाम तो करना ही पड़ेगा | हो सकता है माँ  जी की देख भाल व अन्य कामों के लिए अलग अलग दो नौकरानियां भी रखनी पड़ें | इससे तो यही अच्छा है कि हम  कनक को घर में साथ रख लें | इससे हमारे काफी पैसे भी बच जायेंगे और एक विश्वास पात्र काम करने वाली भी मिल जायेगी |``                                                अखिल ने वैसे ही मरे मन से हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा ---हाँ , ये बात तो है |                            वह फिर आगे बोली--`` देखो ! अगर हम गहराई से सोचें तो कनक के घर में रहने से हम दोनों को भी विवाह के बाद पूर्ण स्वतन्त्रता से हर सुख सुविधा का आनन्द लेने का अवसर मिल जायेगा | आप फिर छुट्टियों में माँ  की चिंता किये बिना आराम से यहाँ कितने ही दिन रह सकेंगे | सच मेरे मम्मी पापा बहुत अच्छे हैं | आप उनसे बातें करके बहुत खुश होंगे | ``                                                                          अखिल ने फिर उससे पूछा ---`` क्या तुम शादी के बाद भी ये छोटी सी नौकरी जारी रखोगी ? ''        तो वह बोली ---क्यों ! इसमें क्या हर्ज है | कुछ पैसे ही तो घर में आएगे  | फिर घर में खाली  पड़े पड़े मैं करूंगी भी क्या |``                                                                        अखिल ने अपना मत स्पष्ट करते हुए कहा - - ``देखो ! मैं सर्विस के खिलाफ नहीं हूँ | पर उससे कुछ लाभ तो हो | जितना तुम कमाती हो उतना तो मैं एक ट्यूशन से घर बैठे कमा सकता हूँ | फिर तलाक के बाद क्या कनक को पूरे घर और माँ की जिम्मेदारी सोंपना हमारे लिए ठीक रहेगा |``                                वह बोली ---`` नहीं , मुझसे अभी नौकरी छोड़ने के लिए अधिक मत कहिये |``                                    इसके बाद मेरे मित्र वहाँ अधिक नहीं रुके और अपने घर के लिए चल दिये | रास्ते भर वो यही सोचते रहे कि कनक अनपढ़ होने पर भी वैवाहिक जीवन की गहराइयों को कितनी सूक्ष्मता से समझती है | जब कि ये इतना पढ़ लिखने के बाद भी किसी दायित्व के प्रति गम्भीर नहीं है | इसे न माँ से कोई लगाव है , न घर से | न मेरे किसी सुख दुःख की चिता है , न मेरे पास रहने की विशेष उत्सुकता | दूसरी ओर एक कनक है , जो हर पल बस इस बात  के लिए परेशान  रहती है कि वह कैसे मुझे व माँ को हर सुख सुविधा प्रदान करे | बताइये ! अभी तलाक नहीं , शादी नहीं , कनक मेरी वैधानिक पत्नी है और वह उसे ही मेरे सामने नौकरानी की संज्ञा दे रही थी | मैं ऐसी पत्नी का क्या करूंगा | इससे तो मेरी कनक लाख गुना अच्छी और समझदार है |
      जब विभिन्न विचारों में डूबे वह अपने घर पहुंचे तो कनक दरवाजे पर खड़ी न जाने कब से उनके आने की प्रतीक्षा कर रही थी | उन्हें देखते ही घोर चिंता से भरी कुछ सलवटें मांथे पर डालती हुई उनसे बोली --- ``
आज आप कहाँ रह गये थे | हमारी तो चिता के मारे जान निकली जा रही थी | डर के कारण न हमसे नहाया गया न सुबह  से अब तक चाय ही पी गयी | बस जैसे ही माँ जी नहा कर , खाना खा कर सोईं , हम यहीं चौखट पर बैठे आपकी राह देख रहे हैं | ``                                                        कनक की भोली सी आक्रति व मन के कोने कोने में बसे प्यार व् समर्पण भाव को देख कर मेरे मित्र एक पल अपने मन पर संयम नहीं रख सके और कनक को तुरन्त बाँहों में भर कर चिपटाते हुये बोले ---`` आज के बाद अब कभी इतनी देर नहीं होगी | ये मेरा तुमसे वादा है | ``            

                    

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            मेरे एक और  मित्र हैं - डाक्टर पारिजात जो यहीं राजकीय चिकित्सालय में सर्जन हैं | उनकी पत्नी डा.पल्लवी इंगलिश में एम . ए. व् पी एच् डी हैं | लेकिन मेरे ये मित्र  अपने दाम्पत्य जीवन से संतुष्ट नहीं हैं | उनकी शिकायत है कि उनकी पत्नी किसी भी बात में उनका सहयोग नहीं करतीं | न जरा सा उनका कहना मानतीं हैं , न उनकी किसी आवश्यकता का ध्यान रखतीं हैं| यहाँ तक कि वे जब सारे दिन कम कर के घर लौटते हैं तो अधिक तर घर पर नहीं मिलतीं | या तो सो रही होंगी या पडौस में किसी सहेली के घर गप शप कर रहीं होंगी | अगर किसी कारणवश वो कुछ समय के लिए अचानक दोपहर में घर आ जाएँ तो हमेशा टी वी पर कोई सीरियल ही देखती मिलेंगी और उनसे कितना भी कहो जल्दी अस्पताल वापस जाना है जरा दो मिनट को उठ कर लंच मेज पर लगा दो , पर वो तब तक अपनी जगह से नहीं उठेंगी जब तक उनका सीरियल समाप्त न हो जाये | इस के लिए अगर उनको टोको या शिकायत के रूप में उनसे कुछ कहो तो उसका मतलब है एक लम्बी चौड़ी बहस को निमन्त्रण देना | कहेंगी कि सब सामान मेज पर ही तो रखा है | जरा हाथ हिला कर क्या डोंगों से बाउल में सब्जी दाल नहीं डाल सकते | वैसे तो दुनियां में ढोल पीटते फिरते हो कि मैं अपनी पत्नी को बहुत प्यार करता हूँ | क्या ये ही तुम्हारा प्यार है | जो मैं एक मिनट शान्ति से बैठ कर अपना मन चाहा सीरियल तक नहीं देख सकती |                                                                                               .        आये दिन दोनों की  दिलचस्प शिकायतें अक्सर मेरे सामनें आतीं रहतीं हैं | पर मैं अभी तक न तो उनकी जड़ समझ पाया हूँ , न उनका कोई समाधान ही खोज पाया हूँ | कल ही की बात है , मेरे ये मित्र मुँह लटकाए मेरे पास आये  और बोले : भाई ! बताओ अब मैं क्या करूं ? श्रीमती जी का कहना है कि उन्हें कुत्ते पालने का शौक है और वो उसे जरूर पालेंगी | जब कि कुत्ता मुझे बहुत नापसंद है | मैं एक पल को भी इस गंदे जानवर को सहन  नहीं कर सकता | किन्तु फिर भी उन्होंने कुत्ता मगाने का आर्डर यह कह कर दे दिया कि मेरा भी तो कुछ मन है , मेरे भी तो कुछ अधिकार हैं | जब मैं तुम्हारे कहीं आने जानें पर कुछ नहीं कहती , रोज रोज तुम्हारे मित्रों के घर पर आने के लिए तुम्हें नहीं टोकती तो क्या अपने लिए मैं एक कुत्ता नहीं पाल सकती | और फिर नाराज होकर दुसरे कमरे में चली गयी | अब बताओ मैं क्या करूं ? मैं तो उस घर में एक पल नहीं रह सकता जहाँ कुत्ता रहेगा |                                                                    बात जब बहुत अधिक बढ़ गई और दोनों ने एक दुसरे से बोलना तक बंद कर दिया तो बड़ा होने के कारण मुझे मध्यस्तता के लिए बीच में उतरना पड़ा |                                                      मैं पारिजात से तो प्रायः मिलता ही रहता था | पर पल्लवी से कभी भी मेरी खुल कर बातें नहीं हुई थी | इसलिए उसके विचार जानना मेरे लिए बहुत आवश्यक था |                                                                     अगले दिन जब मैं पल्लवी के घर पहुंचा तो वह सोफे पर बैठी शरद चन्द चट्टोपाध्याय का उपन्यास स्व्मसिद्धा पढ़ रही थी | उसने जैसे ही मुझे देखा , तुरन्त पुस्तक बंद करदी और प्रणाम कर के मेरे लिए पानी लेने रसोई में चली गई | जब वापस आई तो उसके चहरे पर चिंता की गहरी रेखाएं स्पष्ट दिखाई दे रहीं थीं | मैंने उसके हाथ से पानी का गिलास लेने के बाद उसे बैठने का संकेत करते हुए पूछा : ऐसा क्या हुआ है तुम दोनों के बीच कि आपस में बात तक नहीं कर रहे हो |                                          मेरा प्रश्न सुन कर उसकी आँखों में कुछ आंसू छलक आये वह उन्हें जल्दी जल्दी पलकें झपक कर  अपनी आँखों की कोरों में समेटते हुए बोली  भाई साहब ! आप अकेले पारिजात का पक्ष सुन कर यही सोच रहे होंगे कि घर में जो कुछ हो रहा है , बस मैं उस सब के लिए जिम्मेदार हूँ | पर आप ही बताइये क्या कोई लड़की झगड़ा करने के लिए शादी करती है | क्या मुझे यह अच्छा लग रहा है कि पारिजात मेरे साथ बैठ कर खाना तक नहीं खा रहे हैं |  हम दोनों के बीच कई दिन से कोई सम्वाद तक नहीं है |                     गला भर आने के कारण जब पल्लवी कुछ देर के लिए चुप हो गई तो मैंने धीरे से कहा ---`` पर तुम दोनों के बीच ऐसी क्या समस्या है जो सम्बन्धों में इतनी कटुता आ गई | दोनों पढ़े लिखे हो , समझदार हो |                        फिर पल्लवी अपने आंचल से आंसू पोंछते हुए बोली _  दरअसल पारिजात मुझसे तो अपनी हर बात  मनवाना चाहते हैं , पर मेरी एक छोटी सी इच्छा तक पूरी करने को तैयार नहीं होते | मैं  अपने घर में रात दिन बस जीन्स ही पहना करती थी , पर इन्हें यह बिलकुल पसंद नहीं है | हमारे घर सप्ताह में दो दिन नान वैज अवश्य खाया जाता था , पर यहाँ कभी होटल पर खाने  की बात  तो छोड़िए , पारिजात घर लाकर भी नहीं खाने देते | भाई साहब आपको क्या बताऊँ यहाँ गोल गप्पे ( पानी पुरी  ) जैसी छोटी चीज की भी खाने की अनुमति नहीं है | क्योंकि खोमचे वाला हमें एक एक गोल गप्पा अपने गंदे नाखूनों वाले हाथ को कांजी के पानी में  घंगोल घगोल कर देता है | कहते हैं --- घी मत खाओ | रिफाइंड खाओ |यह हार्ट अटैक से बचाता है | अरबी गरिष्ट है | जिमिकंद कब्ज करता है | बस रोज एक ही तरह का उबला हुआ खाना खाये  जाओ और चुप चाप आँख बंद कर के ससुराल के गुण गाये जाओ |                      .                                              कुछ रुकने के बाद वह फिर बोली --- भैया ! एक क्लब भी हमारे बीच झगड़े का बहुत बड़ा कारण है |  सच मेरी क्लब विलब में कोई रूचि नहीं है | पर ये अपना स्टेट्स बढ़ाने के लिए मुझे रोज अपने साथ क्लब ले जाना चाहते हैं | कहते हैं जब तुम धारा प्रवाह इंगलिश में सबसे बात  करती हो ना तो कुछ अधिकारियों पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है | पर आप ही बताइये वहाँ न तो मेरी उम्र की कोई महिला सदस्य हैं , न मुझे ताश या कोई खेल खेलना आता है , तो मैं वहाँ रोज जाकर क्या करूं ? फिर वहाँ मन हो या न हो लोगों से बात करो , फिर उनसे घर आने का आग्रह करो और जब वो सपरिवार आयें तो उनके लिए अच्छी सी चाय की व्यवस्था करो |``  ``मैंने कहा ये कुत्ते वाली क्या समस्या है ?``                      पल्लवी इस प्रश्न पर कुछ हंसते हुए बोली - यह प्रसंग तो भाई साहब मैंने वैसे ही छेड़ दिया था | मैं सच कह रही हूँ , इसके लिए मेरी कोई जिद नहीं है | जिस दिन मैंने कुत्ता पालने की बात कही थी , उस दिन मुझे इन पर बहुत गुस्सा आ रहा था | मैंने शादी के बाद पहली बार इनसे अपनी एक मात्र सहेली के विवाह की वर्ष गाँठ में जब इनसे चलने के लिए कहा तो इन्होने साफ मना कर दिया | बोले -- आज तो भई बिलकुल हिम्मत नहीं हो रही कहीं जाने की | मैंने इनसे यहाँ तक कहा  कि मैंने उससे वादा किया है , मैं झूठी पड जाऊंगी | मैं  आपकी थकन समझ रही हूँ | आप बस गाडी में बैठे रहिये | दस किलो मीटर ही तो जाना है | गाडी मैं ड्राइव कर लूंगी | पर ये फिर भी जाने को तैयार नहीं हुए |                                                            जब कि आप पारिजात से पूछ कर देखिये कि मैंने कभी भी चाहे मेरा कितना भी मन न हो इनके किसी भी मित्र  के किसी आयोजन में जाने के लिए जरा सा मना किया हो |``                                                        पल्लवी की बाँतें  सुनकर मुझे लगा कि उसकी कुछ शिकायतें तो  वास्तव में बहुत विचार करने योग्य हैं और उनका समाधान भी शीघ्र अति शीघ्र होना चाहिए | पर साथ ही उसे भी अपने आपसी सम्बन्धों में फिर से नई मिठास घोलने के लिए अपने व्यवहार में कुछ और अधिक अपनापन प्रदर्शित करने की आवश्यकता है | जिसके लिए मुझे दोनों को बड़े प्यार से समझाना होगा | वह भी गोलमोल शब्दों में , बिना यह प्रदर्शित किये कि मुझे दोनों की घरेलू शिकायतों का पता है |  मेरी दोनों से इस विषय पर अलग अलग विचार विमर्श हुआ है |                                                                  पर मैं अपने मिशन के प्रथम चरण में ही विफल हो गया | क्योंकि दोनों ने ही मेरे सुझाव ऊपर से तो अक्षरशः मान लिए पर वो शायद अति शिक्षित व् बुजुर्गों की अनुपस्थिति में स्वतंत्र जीवन यापन करने के कारण भीतर से उन्हें स्वीकार नहीं कर पाए |

                                      

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मेरे एक और मित्र हैं -- उन्मुक्त पाण्डेय | जिन्होंने प्रेम विवाह किया है | लेकिन मेरे ये मित्र भी अपनी पत्नी ` रचना सेखड़ी ` से अब संतुष्ट प्रतीत नहीं होते हैं  | उन्हें अपनी पत्नी से ढेर सारी शिकायतें हैं | जो वह सीधे पूछने पर तो नहीं बताते , पर कभी कभी बांतों बातों में उनका संकेत अवश्य दे जाते हैं | उनका कहना है कि अब रचना उन्हें पहले जैसा प्यार नहीं करती | शुरू शुरू में तो शादी के बाद वह घंटों घंटों घर पर उनकी प्रतीक्षा करती थी | जरा सी देर हो जाने पर जोर दार डांट तक लगा देती थी | पर अब तो उसके मन में दो पल भी बात करने की उत्सुकता नहीं रह गई है | अगर शिकायत करो तो कहती है कि अब मैं कालिज में पढने वाली रचना  नहीं हूँ | जो सुबह ही कपड़े पहन कर तैयार हो जाऊं , माँ  के हाथ का बनां जल्दी जल्दी नाश्ता करूं और पंन चक्की वाले  मोड़ पर पहुँच जाऊं | अब मुझे घर के दस काम करने हैं | अपने छोटे से बच्चे को देखना है | उसके लिए सर्दियों के सूती ऊनी कपड़े तैयार करने हैं | स्वेटर बुनने हैं | ऊँन घर में रखी है , पर सलाई में फंदे तक नहीं डाल पाई हूँ | पर  तुम तो मुझे सहारा देने के बजाय अपने काम बता कर मेरी व्यस्तता और बढा देते हो | क्या दो मिनट बैठ कर अपनी कमीज में बटन भी नहीं लगा सकते |                                                                  रचना अपने विद्यार्थी जीवन से ही एक अत्यंत मेधावी व् लोक प्रिय छात्रा रही है  | वह बी .ए से ले कर एम .ए तक जितने समय कालिज में रही , हर वर्ष सर्व सुन्दरी व् सर्वाधिक नियमित छात्रा का पुरूस्कार उसी ने अर्जित किया | उन्मुक्त व् रचना बी .ए से ही साथ साथ एक कक्षा में पढ़ते थे | बस वहीं से इनकी जान पहचान हुई और फिर वह धीरे धीरे शादी के पवित्र बंधन में परिवर्तित हो गई | रचना एक पंजाबी परिवार से होने के कारण उन्मुक्त का समस्त परिवार इस शादी के पक्ष में नहीं था | किन्तु फिर भी जब उन्मुक्त नहीं माना तो शादी में घर के कुछ लोग बारात में तो गये पर चढत होने के बाद कोई भी बुजुर्ग व् घर का व्यक्ति फेरों पर जाने के लिए नहीं रुका | जिससे फिर मुझे ही मण्डप में केवल बड़े भाई की भूमिका ही नहीं , सप्त पदी के बाद वर वधु को पुष्प वर्षा कर आशीर्वाद देने की रस्म भी पूरी करनी पड़ी |                                                                            इन दोनों की  विवाह के बाद वैसे तो मैं आठ दस दिन में अवश्य ही एक दो बार इनके घर अवश्य हो आया करता था | पर इस बार कुछ पारिवारिक समस्याओं के कारण मैं एक माह तक उधर नहीं जा सका | इसके बाद जब एक दिन मैं अचानक वहाँ पहुँचा तो द्वार में प्रवेश करते ही सामने उपस्थित द्रश्य को देख कर चकित रह गया | ठीक बीच आंगन में रचना की अटेची रखी थी और वह वरांडे में अपने एक वर्षीय बेटे के कपड़े बदल रही थी | उन्मुक्त उसके पास खड़ा कभी कान पकड़ कर , कभी हाथ जोड़ कर उससे बार बार माफी मांग रहा था |`` प्लीज रचना इस तरह घर छोड़ कर मत जाओ | ऐसी गलती अब फिर कभी नहीं होगी | यह मेरा तुमसे पक्का वादा है |``                                                                     पर रचना उसकी किसी बात का कोई उत्तर नहीं दे रही थी | जब वह बच्चे को कपड़े पहना कर अपनी अटेची उठाने के लिए आगे बढी तो मुझे सामने पाकर एक साथ मुझसे जोर से चिपट गई और कंधे पर सर रख कर फफकते हुए बोली -- `` बड़े भैया ! अब मैं बहुत थक गई हूँ | अब मुझसे और नहीं सहा जाता | ऐसा लगता है जैसे सारी जिन्दगी ही हाथ से फिसल गई है | सारे सपने टुकड़े टुकड़े हो गये हैं | आपने तो मुझे बहुत मन से सदा प्रसन्न रहने का आशीर्वाद शादी पर दिया था | पर शायद वह भी मेरे कुण्ठित भाग्य के सामने बौना पड़ गया |``                              `` रचना `` मैंने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा --`` नहीं , आशीर्वाद कभी व्यर्थ नहीं जाते | वह तो प्रति पल हर बुरी दृष्टि से रक्षा करने के लिए एक सशक्त कवच का काम करते हैं | हाँ ! कभी कभी कोई प्रदूषित हवा का झोंका अवश्य हमारी जिन्दगी को कुछ क्षण के लिए झकझोरने में सफल हो जाता है | पर हमें उससे विचलित नहीं होना चाहिए | वह क्षण तो हमारे मानसिक संतुलन की परीक्षा के क्षण होते हैं | अगर हम उन क्षणों में जरा सा भी बहक  गये तो यह समझो कि हमने प्यार ,सम्मान , सहानुभूति के रूप में संचित की हुई अपनी समस्त पूंजी को हमेशा हमेशा के लिए खो दिया |``                          मेरी बात सुनकर रचना कुछ नहीं बोली | हम फिर अतिथि कक्ष में जाकर बैठ गये | रचना बड़े सोफे पर मेरे बराबर ही बैठी | उन्मुक्त भी हमारे पीछे पीछे आकर चुप चाप पास वाले एकल सोफे पर बैठ गया | उसके मुरझाये चेहरे पर चिंता व् ग्लानि की गहरी रेखाएं स्पष्ट दिखाई दे रहीं थी | कुछ देर मौन रहने के बाद मैंने बड़े प्यार से उन्मुक्त से पूछा --`` क्या हुआ था तुम  दोनों के बीच ?``                 उन्मुक्त बोला --``भैया ! कल ` चन्दन ` के विवाह की वर्ष गाँठ थी | उसने हम सबको ही उसमें बुलाया था | रचना जब चलने के लिए शाम को तैयार होने लगी तो मुझसे बोली --`` देखो , मैं  पार्टी में चल तो रहीं हूँ , पर तुम जितना हो सके मेरे आस पास ही रहना | मेरी कमर का नचका अभी ज्यादा ठीक नहीं है | मैं न अभी ठीक से झुक पा रही हूँ , न  शीघ्रता से मुड़ पा रही हूँ | इसलिए मैं न तो  दक्ष को  अधिक देर गोदी में ले पाऊँगी और न इसके बिचलने पर उसे संभाल पाऊंगी |`` तो मैंने कहा--`` अगर तुम्हारी तबियत ज्यादा ठीक नहीं है तो तुम पार्टी में मत जाओ | क्योंकि वहाँ तो मेरे  नये पुराने सब दोस्त आयेंगे | अगर मैं उनसे बातें करने में घिर गया तो तुम्हें बहुत परेशानी हो जायेगी | बस भैया मेरा इतना कहना था कि रचना ने तुरन्त अपने पार्टी वाले सारे कपड़े  उतार कर , घर के कपड़े पहन लिए और बोली --`` अब तुम आराम से जाओ और अपने दोस्तों के साथ पार्टी एन्ज्वाय करो |``                        इतना कह कर जब उन्मुक्त कुछ चुप सा हुआ तो मैंने धीरे से पूछा --`` बस इतनी ही बात  हुई थी |`` फिर रचना बोली -- `` उन्मुक्त डरो मत | सब कुछ भैया को सच सच बतादो | मैं यहाँ बैठी हूँ | तुम्हारी सत्य निष्ट पतिव्रता पत्नी | अगर उन्हें असह गुस्सा भी आया तो अपने पति देव के साथ अपने सामने कुछ अनिष्ट नहीं होने दूंगी | यह मेरा तुमसे वादा है |``                                                  रचना की बातें सुन कर उन्मुक्त जैसे पूरी तरह टूट गया | वह एक साथ अपने सोफे से उठा और मेरे पास बैठी रचना की गोद में सर रख कर फूट फूट कर रोते हुए टूटे बिखरे शब्दों में बोला --`` प्लीज रचना | रचना प्लीज |``                                                                        वातावरण बहुत गम्भीर हो गया था | कुछ देर शांत रहने के बाद मैंने रचना से धीरे से पूछा --`` क्या बात  हुई थी ?`` रचना भी इस समय पूरी तरह सामान्य नहीं थी | वह अपनी गोदी में रखे उन्मुक्त के सर पर उँगलियाँ फिराते हुए बोली--`` ये जब पार्टी से देर रात बाद घर लौटे तो बुरी तरह पैर डगमगा रहे थे | आँखें मशाल की तरह जल रहीं थीं | मुँह से इतनी शराब की गंध आ रही थी कि आपको क्या बताऊँ | मैंने तब तो इनसे कुछ नहीं कहा | पर मुझे अपने भाग्य पर सोच सोच कर रात भर नींद नहीं आई | बस सुबह  तक हर पल अपनी ज़िन्दगी के पुराने पृष्ट उलटती रही | उन्मुक्त कैसे मेरे जीवन में आया था | हम दोनों ने अपने बी .ए . के पूरे दो वर्ष बस  एक दूसरे को कक्षाओं में चोरी से देखने में बिता दिये थे | एम.ए. पूर्वार्द्ध में पहली बार बड़े संकोच के साथ डरते डरते इसने एक दिन मुझसे कालिज नोट्स की एक कापी माँगी थी | फिर यह धीरे धीरे घर आने लगा था | पर जब तक माँ जोर दे कर अंदर आने को न कहें , यह कभी घर में कदम नहीं रखता था |                   एक दिन तो भैया इसने ऐसा काम किया कि कोई सोच नहीं सकता | उस दिन जब यह घर आया तो मैं अपनी चप्पलों की उधडी सिलाई ठीक करानें मोची के पास जा रही थी | मैंने बस जैसे यह बात  इसे बताई तो ये तुरन्त मुझसे बोला --`` अरे ! आप ये टूटी चप्पलें पहन कर इतनी दूर कैसे जायेंगी | अगर गिर गईं तो क्या चोट नहीं लगेगी | लाइए , इन्हें मुझे दीजिये | मैं अभी साइकिल से दो मिनट में इन्हें ठीक करा कर लाता हूँ | जब मैंने चप्पलें देनें में आनाकानी की तो इसने तुरन्त नीचे बैठ कर मेरे पैरों से दोनों चप्पलें उतार ली और ऐसे ही उन्हें हाथ में लेकर तेजी से उन्हें बनवानें चला गया | सच कितना सज्जन व् सीधा था तब ये | इसकी हर बात में कितनी मिठास और भोलापन भरा होता था | मेरे हर सुख दुःख का कितना ध्यान रखता था |                                             एक बार की बात मैं आपको और बताऊँ | यह मेरी उपेक्षा को देख कर  बहत परेशान था | दरअसल उन दिनों  मेरी तबियत अधिक ठीक नहीं चल रही थी | तो मैं बस मरे मन से ही काँलिज जा रही थी | इसलिए एक दिन मैंने न तो कक्षा में एक भी बार इसकी तरफ देखा , न छुट्टी के बाद घर लौटते समय इस बात पर ध्यान दिया कि यह लगातार मेरे पीछे पीछे चल रहा है | बस मेरी इस बात  से यह बुरी तरह परेशान हो गया | इसे लगा कि मैं इससे किसी बात को लेकर बहुत नाराज हूँ और इससे बात नहीं करना चाह रही हूँ | तो ये हमारे घर  के बराबर लगे नीम के पेड़ के नीचे आकर बैठ गया और बेचैनी से मेरे बालकनी में आने की प्रतीक्षा करने लगा | जब काफी देर बाद मैं बालकनी में सूखे कपड़े डोरी से उतारने आई तो पहले तो इसने अपने दोनों कान पकड़ कर मुझसे माफी सी माँगी फिर अपना पत्र एक छोटे से पत्थर में लिपेट कर मेरे पास बालकनी में फ़ेंक दिया |
 .        पर दुर्भाग्य से उस समय नीम पर एक कौवा बैठा था | उसने उन्मुक्त के पत्र वाले कागज में कुछ खाने की चीज समझी और वह उसे मेरे उठाने से पहले ही झपट्टा मार कर चोंच में दबा कर पेड़ पर ले गया | अब तो इन महाशय के होश उड़ गये | कहीं यह पत्र कौवा हमारे घर में न गिरा दे | कहीं यह मेरे पापा के हाथ में पड़ गया तो क्या होगा | ये रात के बारह बजे तक पेड़ के नीचे घूम घूम कर बस यह प्रतीक्षा करते रहे कि कब पत्र कौवे के पंजे से छूट कर नीचे गिरे और ये उसे उठा कर अपने घर जाएँ | पर रात को उसने पत्र नीचे नहीं डाला | फिर ये घर तो चले गये | पर रात भर नींद नहीं आई और अगले दिन सुबह पांच बजे ही उठ कर पेड़ के नीचे पत्र खोजने आ गये | पर इस बार सौभाग्य से इन्हें अपना पत्र सुरक्षित एक कोने में पड़ा मिल गया |``                                                 
 इसके बाद रचना काफी देर के लिए चुप हो गई | पर उसने उन्मुक्त के सिर पर उँगलियाँ फिराना बंद नहीं किया | शायद अब उसका गुस्सा काफी कम हो गया था | जब बहुत देर तक किसी ने कोई बात  नहीं की तो वह ही उन्मुक्त का गोदी में रखा सर चूमते हुए उससे बोली --`` उठो ! मैं बड़े भैया के लिए चाय बना कर लाती हूँ |`` पर उसने उसे और अधिक बांहों में जकडते हुए कहा --`` नहीं , मैं नहीं उठूंगा | पहले मुझसे वादा करो कि तुम घर छोड़ कर कहीं नहीं जाओगी |``                                    अब रचना उसकी कमर सहलाते हुए बोली--`` मैं तुम्हें छोड़ के भला कहाँ जाऊंगी | तुम्हारे सिवा अब इस दुनियाँ में मेरा है कौन | मम्मी नराज हैं  | सासू माँ नाराज हैं | बस रह गई इन भैया की मम्मी | तो उन्हें भी मैं कितना परेशान करूं |``                                     रचना की बात  सुन कर जब उन्मुक्त ने अपना सिर उसकी गोदी से उठाया तो वह अपना कुर्ता बुरी तरह उसके आंसुओं से भीगा देख कर चकित रह गई | उसने तुरन्त मेरी चिता किये बिना उसे अपने वक्ष से लगा लिया और उसे प्यार करते हुए बोली--`` अरे , तुम तब से लगातार रो रहे हो | जब तुम मुझे इतना प्यार करते हो तो कभी कभी मेरा मन इतना क्यों दुखा देते हो | क्या मेरा रोना तुम्हें बहुत अच्छा लगता है | उन्मुक्त मैं सच कह रही हूँ , अब तुम्हारा भी मेरे सिवा दुनियां में और कोई नहीं है | अगर तुमने मुझे संभाल कर नहीं रखा और मैं किसी दिन मर गई तो जीवन भर बस ऐसे ही याद कर कर रोते रहोगे  |``                                                                          उन्मुक्त बोला --`` अब कल से देखना तुम्हें घर के हर द्वार पर अपना पुराना वाला उन्मुक्त खड़ा दिखाई देगा | वही भोला भाला , तुम्हारी हर सेवा के लिए तैयार रहने वाला  | मुझे तुम्हारी हर आदत का पता चल गया है | तुम न तो मुझे अपनी कोई समस्या बताना चाहती हो , न कोई छोटी बड़ी इच्छा | तुम्हें मेरा पार्टी में न जाने वाला सुझाव अगर अच्छा नहीं लगा था  तो क्या तुम मुझसे यह बात  जोर दे कर नहीं कह सकती थी | तुमने तो मुझे कई बार खूब डांट तक लगाई है |``                       ``यह बात  शादी से पहले की है |``                                                `` तो अब क्या हो गया | रचना ! तुम मेरी पत्नी तो बहुत बाद में हो | सबसे पहले तुम मेरी बहुत अच्छी दोस्त और हर पल सही मार्ग दर्शन करने वाली मेरी गाइड हो और यह मेरा तुम्हारा रिश्ता सच कह रहा हूँ , जब जीवित हूँ तब तक रहेगा | सच , अगर कल तुम साथ होतीं तो कोई मुझे जबरदस्ती शराब नहीं पिला पाता | पर  मैं  यह सब कह कर अपनी गलती की कोई सफाई नहीं दे रहा हूँ | गलती तो मुझसे एक नहीं दो हुई हैं | एक तुम्हें अकेला छोड़ कर जाने की , दूसरे शराब पीने की | पता नहीं यह सब कैसे और किस मानसिकता में हो गया | पर मैं भैया के सामने तुमसे वादा कर रहा हूँ कि आगे ऐसा फिर कभी नहीं होगा | मैनें तुम्हें चार साल कड़ी  तपस्या कर के पाया है , मैं  तुम्हें ऐसे नहीं खो सकता | तुम तो मेरा सबसे सुन्दर सपना हो | अब कल से  तुम दक्ष की देख रेख के अतिरिक्त घर का और कोई  काम नहीं करोगी | मैं अभी सडक पार वाली बाई से जाकर बात करता हूँ | और हाँ , तुम सुबह  से बहुत तनाव में हो | तुम्हें आराम की सख्त जरूरत है | तुम भैया के पास बैठ कर बात करो , बढिया सी तुलसी अदरक वाली चाय मैं  बनाकर लाता हूँ |``                                                                                  जब उन्मुक्त चाय बनाने रसोई में चला गया तो मैंने रचना की ओर देखते हुए हंस कर कहा --`` अब मेरे आशीर्वाद के विषय में तुम्हारा क्या विचार है ?``                           `` भैया `` वह सोफे पर बैठते हुए बोली --`` आप बिलकुल सच कह रहे थे कि बड़ों के आशीर्वाद आपत्तियों में एक अभेद कवच का काम करते हैं | आज तो यह बात  मेरे लिए पूरी तरह सच हो गई  | आप विश्वास नहीं करेंगे कि आपके आने से पहले मैं कितनी अधिक निराश थी | मुझे कुछ पता नहीं था कि मैं कहाँ जा रही हूँ , क्या करने वाली हूँ | अगर  आप समय पर न आते तो पता नहीं क्या होता |``    

                * * * *            * * * *             * *                                           

16 टिप्‍पणियां:


  1. मंत्रमुग्ध कर देने वाली कहानियाँ जिनसे बहुमूल्य सीख भी मिलती है। एक बार शुरू करने के बाद पूरा पढ़े बिना छोड़ ही नहीं पाई। आज एक्ल परिवारों में ऐसे शुभचिंतकों और उनके आशीर्वादों की बहुत आवश्यकता है। सादर।

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  2. मंत्रमुग्ध कर देने वाली कहानियाँ जिनसे बहुमूल्य सीख भी मिलती है। एक बार शुरू करने के बाद पूरा पढ़े बिना छोड़ ही नहीं पाई। आज एक्ल परिवारों में ऐसे शुभचिंतकों और उनके आशीर्वादों की बहुत आवश्यकता है। सादर।

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  3. पढ़ाई लिखाई से इंसान की सोच भी अच्छी हो जाएगी यय जरूरी नही है। सुंदर शिक्षाप्रद कहानी।

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    1. ज्योति जी ! सार्थक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार |

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  4. बहुत सुन्दर शिक्षाप्रद कहानियां... सच में पाठक शुरू से अंंत तक को बाँधे रखने वाली लेखन शैली
    बहुत ही लाजवाब।

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  5. सुधा जी ! एक बहुत अच्छी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत ह्रदय से आभार |

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  6. तीन मित्र और तीन बात के माध्यम से ज़िन्दगी को समझने का अवसर मिला । प्रवाह मय लेखन ।

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद आभार संगीता जी

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  8. आपकी लिखी रचना 30 मई 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  9. बहुत बहुत धन्यवाद आभार संगीता जी

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  10. बहुत सुन्दर संदेशप्रद कहानियां एवं प्रभावी लेखन शैली ।
    आज दुबारा पढ़ी उतनी ही रौचक लगी।

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  11. बेहद सार्थक कहानी ,लेखन का प्रवाह बाँधे रख रही पाठक को।
    दुबारा अवश्य पढ़ेगे।

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