मेघ घिर आये गगन में ।
लोचनों का नीर लेकर,
पीर की जागीर लेकर,
सुप्त सब सुधियाँ जगाने,
अन्तर के नन्दन वन में ।
मेघ घिर आये गगन में ।
झुक रहा बैरी अँधेरा ,
घुट रहा घर द्वार मेरा ,
कौन सा यह विष घुला है ,
आज की शीतल पवन में ।
मेघ घिर आये गगन में ।
तुम हमारे , हम तुम्हारे ,
पर नदी के दो किनारे ,
प्राण ! औ’ कितनी कमी है ,
साधना में , अश्रु कण में ।
मेघ घिर आये गगन में ।
आलोक सिन्हा
---
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण गीत
तुम हमारे , हम तुम्हारे ,
पर नदी के दो किनारे ,
प्राण ! औ’ कितनी कमी है ,
साधना में , अश्रु कण में
बहुत बहुत धन्यवाद आभार सुधा जी
जवाब देंहटाएंबड़ी ही उम्दा काव्य कृति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आभार मनोज जी
जवाब देंहटाएंविरह की पीड़ा को व्यक्त करता भावपूर्ण गीत
जवाब देंहटाएं