शादी के बाद ससुराल से एक बेटी की अपनी माँ को भावनात्मक पाती --
गीत
जिसकी रज ने गोद खिलाया ,
पैरों को चलना सिखलाया .
जहाँ प्यार ही प्यार भरा था - वह आंगन बहुत याद आता है |
सुबह सुबह आँखें खुलते ही ,
तेरा वह पावन सा चुम्बन |
फिर दोनों बांहों में भरकर.
हलका हलका सा आलिंगन |
बाबा की मीठी सी गोदी ,
दादी का हंस हंस बतियाना |
पापा का कांधों पर लेकर .
बाहर फूलों से बहलाना |
कैसे सब घर परिधि बनाकर ,
मेरे लिए खेल रचता था |
और जरा सा गिर जाने पर ,
चींटी के सौ शव गिनता था |
माँ वह बेलों , बूटे वाला ,
पावन मंगल गोटे वाला ,
जिसने मेरे आंसू पोंछे - वह दामन बहुत याद आता है |
कैसे मधुरिम थे वो सब दिन ,
कितनी प्यारी सी सखियाँ थीं |
कैसे चिंता रहित विचरते ,
हर पग पर बिखरी खुशियाँ थीं |
कभी खेलते आँख मिचोनी ,
गुड़ियों की हम शादी करते |
झूठ मूठ के व्यंजन रच कर ,
सबसे आ खाने को कहते |
तीजें आतीं , महदी रचती ,
पेड़ों पर नव झूले पड़ते |
सखियाँ मेघ मल्हारें गाती ,
हम पेंगों से नभ को छूते |
माँ वह मधुर बयारों वाला ,
शीतल मंद फुहारों वाला ,
जिसमें जीवन के सब रंग थे - वो सावन बहुत याद आता है | . तितली जुगनू पाने को जब ,
मैं शूलों में अभय विचरती |
तो अगाध ममता के कारण ,
कभी न क्रोध जरा सा करतीं |
कितना दिल था बड़ा तुम्हारा ,
कैसे सबका मन रखती थीं |
मैं थोड़ा भी सुस्त दिखूं तो ,
सारी रात साथ जगती थीं |
बीस बरस जो हर पल पाया ,
कैसे अब वह प्यार भुलाऊँ |
किसकी गोदी में सर रख कर ,
अपनी हर पीड़ा दुलराऊँ |
माँ वह तेरा भोला भाला ,
सबकी चिंता करने वाला ,
जिसमें ममता ही ममता थी , वो आनन बहुत याद आता है |
स्वरचित – आलोक सिन्हा